वीडियो एडिटर: संदीप सुमन और वरुण शर्मा
कैमरापर्सन: आकांक्षा कुमार
मध्य प्रदेश के श्योपुर को ‘कुपोषण’ का केंद्र माना जाता है. यहां मिड डे मील और ICDS जैसी योजनाएं भी बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाने में नाकाम रही हैं. हाल ही में शुरू किया गया राष्ट्रीय पोषण मिशन भी अभी तक यहां सही से लागू नहीं हो पाया है. राष्ट्रीय पोषण मिशन या 'पोषण अभियान' का लक्ष्य आंगनबाड़ी सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाना है.
राष्ट्रीय पोषण मिशन के एक प्रोग्राम के दौरान 8 मार्च 2018 को झुंझुनू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "साल 2022 में जब आजादी को 75 साल हो जाएंगे, तब हम गर्व के साथ कह सकेंगे कि देश में कुपोषण से एक बच्चा ग्रस्त नहीं होगा. हमारे बच्चे तंदुरुस्त होंगे, अच्छा वजन होगा और अच्छी ऊंचाई होगी."
लेकिन क्या है सच्चाई ?
सच्चाई ये है कि मध्य प्रदेश के श्योपुर में कई बच्चे अभी भी कुपोषण का शिकार हैं. भोजन, दवाइयों की कमी और भूख से बच्चे मर रहे हैं. यहां सरकारी योजनाएं नाकाम हैं. क्विंट पहुंचा ग्वालियर से 160 किमी दूर कराहल ब्लॉक. यहां क्विंट ने मध्य प्रदेश के सहरिया जनजातियों से मुलाकात की. सबसे पहले हम सरकार की ओर से संचालित न्यूट्रिशन रिहैबिलिटेशन सेंटर (NRC) पहुंचे. यहां कुपोषित बच्चों को मदद के लिए भेजा जाता है.
यहां हमने कुपोषण की शिकार 2 साल की बच्ची बसंती की मां हसीना से बात की. बच्ची की मां इसे समस्या नहीं मानती है, लेकिन कुपोषण श्योपुर जिले की एक बड़ी समस्या है. कुपोषण यहां की वास्तविकता है.
2016 में श्योपुर में कुपोषण से 116 बच्चों की मौत हो गई थी. लेकिन क्या सरकार ने इससे कोई सीख ली है? क्या ये न्यूट्रिशन सेंटर इमरजेंसी हालात संभाल सकते हैं?
क्विंट पनार गांव के एक आंगनबाड़ी सेंटर पहुंचा. इस चाइल्ड केयर सेंटर में 95 बच्चे हैं. साल 2001 से इस आंगनबाड़ी सेंटर में गजरीबाई काम कर रही हैं. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गजरीबाई स्थानीय बच्चों को खिचड़ी से भरा थैला और मिल्क पाउडर का पैकेट देती हैं. जब गजरीबाई को मिल्क पाउडर का पैकेट दिखाने को कहा गया तो उनके पास स्टॉक में सिर्फ तीन पैकेट थे.
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