पिछले कुछ दिनों से ताजमहल को लेकर कुछ ना कुछ विवाद चल रहा है. कभी उत्तर प्रदेश के टूरिज्म बुकलेट से ताज महल का नाम गायब हो जाता है. तो कभी बीजेपी के नेता संगीत सोम ताजमहल को भारत की संस्कृति पर धब्बा बता देते हैं. तो ऐसे में उर्दू के मशहूर शायर वसीम बरेलवी ने ताजमहल के दर्द पर एक कविता लिखी है.
वसीम बरेलवी ने ताजमहल के दर्द को अपने शब्दों में ऐसे उतारा जैसे खुद ताजमहल अपना दर्द बयां कर रहा हो. मुहब्बत की निशानी ताजमहल को विदेशी मुगल बादशाहों से जोड़ने वालों को जवाब देते हुए वसीम बरेलवी ने लिखा है,
इसी मिट्टी के तो हाथों ने बनाया मुझको ,
कौन दुनिया से नहीं देखने आया मुझको
भारतीय होने का अहसास मेरे काम आया ,
विश्व के सात अजूबों में मेरा नाम आया
बैठे बैठे ये हुआ क्या, क्यों रुलाते हो मुझे ,
अपने ही देश में परदेस दिखाते हो मुझे...
चलते चलते लिख डाला ताजमहल का दर्द
वसीम बरेलवी बताते हैं कि वो गोरखपुर के लिए ट्रेन पकड़ने निकले तो रास्ते में उन्होंने ताजमहल का दर्द लिख डाला. उन्होंने अपनी इस कविता में ताजमहल की न सिर्फ तकलीफ सुनाई है बल्कि कई सवाल भी उठाये हैं.
ये है उनकी कविता
प्यार की बात चली है तो दिखाया मुझको
चाहतें ऐसी कि सरताज बताया मुझको,
इसी मिट्टी के तो हाथों ने बनाया मुझको
कौन दुनिया से नहीं देखने आया मुझको
भारतीय होने का अहसास मेरे काम आया
विश्व के सात अजूबों में मेरा नाम आया
बैठे बैठे ये हुआ क्या, क्यों रुलाते हो मुझे
अपने ही देश में परदेस दिखाते हो मुझे
मुझको नजरों से गिराते हो , तुम्हें क्या मालूम
अपने ही कद को घटाते हो, तुम्हें क्या मालूम
गैर आंखों ने तो पलकों पर बिठाया मुझको
कैसे अपने हुजूर कहते हो पराया मुझको...
वीडियो एडिटरः मोहम्मद इरशाद आलम
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