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सरकार इकनॉमी में जरूरत से ज्यादा दखल दे रही: अजय शाह, इकनॉमिस्ट

भारत की आर्थिक नीतियों पर इकनॉमिस्ट अजय शाह और विजय केलकर से खास बातचीत 

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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दू प्रीतम

अपनी नयी किताब और भारत में आर्थिक नीति निर्माण को लेकर जाने-माने इकनॉमिस्ट अजय शाह और विजय केलकर ने क्विंट से खास बातचीत की. उन्होंने अर्थव्यवस्था से जुड़े सवालों से लेकर सरकार की आर्थिक नीतियों में सुधार की गुंजाइश पर अपने विचार रखें.

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अपनी किताब के बारे में बताते हुए अजय शाह ने कहा- “मोटे तौर पर किताब में कहा गया है कि भारत सरकार कई ऐसी चीजें कर रही है, जो इसे नहीं करना चाहिए. भारत सरकार जरूरत से ज्यादा अर्थव्यवस्था में दखल दे रही है. 90 के दशक की शुरुआत में जो बहस और चर्चा हुई थी उस मुताबिक हमारी आर्थिक आजादी बहुत कम है. वास्तविक आर्थिक आजादी जमीनी स्तर पर नहीं मिल पायी है. राज्य की भूमिका को लेकर एक बड़ी लकीर खिंची हुई है. संक्षेप में, अर्थशास्त्र में एक शानदार तकनीकी सोच है-बाजार की विफलता. सरकार की भूमिका वहां है जहां बाजार विफल हो जाता है अन्यथा हमें सब कुछ लोगों पर छोड़ देना चाहिए. लोग जो चाहते हैं, करने देना चाहिए, आजादी के अच्छे नतीजे निकलते हैं.”

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जब पूछा गया कि क्या कॉरपोरेट टैक्स में कमी जैसे हालिया सुधार सही हैं? तो विजय केलकर इसके जवाब में कहते हैं-

जब बिजनेसमैन निवेश करता है तो वो जोखिम उठाता है और अगर आप जोखिम बढ़ा देते हैं तो समझिए कि वास्तव में निवेश नहीं होने जा रहा है. इसलिए  मैं समझता हूं कि ये सही क्षेत्र में सही कदम है. लेकिन बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है और आने वाले दशकों में बड़ी संख्या में ऐसी चीजें हैं जो होनी चाहिए. लेकिन पूंजी के जोखिम को कम करना सबसे महत्वपूर्ण है.
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वहीं अजय शाह इसके जवाब में कहते हैं,

सुधारों के लागू होने और उसके नतीजे आने के बीच का समय बड़ा होता है. उदाहरण के लिए, अगर आप 1999 की तरफ मुड़कर देखें तो उस समय टेलीकॉम रिफॉर्म हुआ था और वास्तव में अगले 20 साल तक इसकी धमक बनी रही. चीजें तुरंत नहीं होतीं इसलिए किसी को तुरंत जीत की ओर नहीं देखना चाहिए. किसी को तत्काल नतीजे नहीं खोजना चाहिए. बहुत सारी चीजें करनी होती हैं. इसमें समय लगता है और नतीजे मिलने में भी देरी होती है.

वीडियो में देखें पूरी बातचीत.

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