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पुलिस टॉर्चर, 4 साल जेल, 11 साल कानूनी लड़ाई, फिर मिला ‘आधा इंसाफ’

पुलिस किसी आदमी को शक के आधार पर पकड़ती है. लेकिन उसे आतंकी बनाने में सबसे बड़ा हाथ मीडिया का होता है

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"पुलिस किसी शख्‍स को शक के आधार पर पकड़ती है. लेकिन उसे आतंकी बनाने में मीडिया का सबसे बड़ा हाथ होता है. पुलिस ज्यादा से ज्यादा कोर्ट में कहेगी कि यह आतंकवादी है. लेकिन मीडिया बिना सबूत के, बिना कोर्ट के फैसले के घर-घर खबर पहुंचा देता है कि यह शख्‍स आतंकी है." यह कहना है इरशाद का.

अवैध गिरफ्तारी, टॉर्चर, पुलिस इन्फॉर्मर, आतंकी का ठप्पा, चार साल की जेल और 11 साल की कानूनी लड़ाई के बाद 22 दिसम्बर, 2016 को दिल्ली के ट्रायल कोर्ट ने इरशाद अली को बा-इज्जत बरी कर दिया.

पहली नजर में इरशाद अली की कहानी बॉलीवुड की फिल्मों जैसी लगती है. लेकिन इरशाद बताते हैं कि पुलिस ने उन्हें झूठे इल्जाम में अवैध तरीके से हिरासत में लिया, फिर लगातार टॉर्चर किया. पुलिस ने इन्फॉर्मर बनने के लिए मजबूर किया. इरशाद ने कुछ सालों तक इंटेलिजेंस ब्यूरो के लिए इन्फॉर्मर का काम भी किया. इनका दावा है कि उन्‍हें इंटेलिजेंस ब्यूरो हर महीने 7000 रुपये भी देती थी.

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मुस्लिम लड़कों को बनाना था टारगेट

इरशाद को आईबी ने मुस्लिम इलाके में रहकर मुस्लिम लड़कों को आतंकी बनाने के लिए पाकिस्तान भेजने की बात कही. इरशाद ने बताया, “मुझे आईबी की यह बात गलत लगी. यह एक तरह से मासूम लड़कों को फंसाने की चाल थी. मैंने इस काम के लिए मना कर दिया और आईबी के पास जाने से बचने लगा.”

फिर 12 दिसंबर को मेरे पास आईबी के अफसर माजिद दीन का फोन आया. उन्होंने मुझे मिलने के लिए धौलाकुआं के पास बुलाया. जब मैं वहां पहुंचा, तो उन्होंने मुझे गाड़ी में बैठने को कहा. गाड़ी में बैठते ही मेरी आंखों पर पट्टी डाल दी गई और बंदूक की नोंक पर मुझे उठा लिया गया. फिर किसी खुफिया जगह पर रखा गया.
इरशाद अली

कुछ दिन बाद पुलिस ने इरशाद के मामू के लड़के मौरिफ कमर को भी उठा लिया. मौरिफ को भी इरशाद के साथ ही रखा गया था.

मीडिया ने कहा- अल बद्र के दो आतंकी गिरफ्तार

इरशाद ने बताया, "9 फरवरी 2006 को मुझे और मौरिफ को करनाल बाइपास ले जाया गया. वहां दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मीडिया के सामने हम दोनों को पेश कर कहा कि अल बद्र के दो आतंकी गिरफ्तार किए गए हैं. अब हम कानूनी तौर पर हिरासत में थे.

जब हमारी गिरफ्तारी की खबर बाहर आई, तो एक एडवोकेट सूफियान साहब मेरा केस लड़ने के लिए तैयार हो गए. साथ ही मौरिफ के भाइयों ने भी अच्छा वकील किया.

कोर्ट को स्पेशल सेल की कहानी पर हुआ शक

मौरिफ के भाई ने इस केस में दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की. हाईकोर्ट को स्पेशल सेल की कहानी पर शक हुआ, तो उसने सीबीआई से पूरे मामले की जांच का आदेश दिया. 11 नवंबर, 2008 को सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में इरशाद अली की मुखबिरी से लेकर अवैध गिरफ्तारी तक का पूरा सबूत कोर्ट के सामने रखा.

सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट के आधार पर इरशाद को 2009 में जमानत मिली. फिर ट्रायल चलता रहा और 22 दिसंबर, 2016 को ट्रायल कोर्ट ने इरशाद और मौरिफ को बा-इज्जत बरी कर दिया.

अभी मिला है केवल आधा इंसाफ

भले ही इरशाद को कोर्ट ने बरी कर दिया हो, लेकिन उसका मानना है कि उसे सिर्फ आधा इंसाफ ही मिला है, क्योंकि उसके जिंदगी के 11 साल, उसकी जवानी और उसके सपने सब बर्बाद हो गए. और तो और, जिन पुलिस और आईबी अफसरों ने इरशाद को फंसाया था, उन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

अब पूरे इंसाफ का है इंतजार

इरशाद ने अब पूरे इंसाफ के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. इरशाद और मौरिफ को कथित रुप से फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच की मांग की है, जिस पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है.

इरशाद अली की अर्जी पर जज, ए के पाठक ने दिल्ली पुलिस और स्पेशल सेल के अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. और उनसे चार हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने को कहा है. अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख पांच मई तय की है.

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