ADVERTISEMENTREMOVE AD

आपने सोचने का काम, मार-काट की बात करने वालों को तो नहीं सौंप दिया?

सोचने का काम आउससोर्स हो चुका है क्या?

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

देश में एक शोर उठा है. आपके कानों तक भी जरूर पहुंचा होगा. मारने का...काटने का...इनामों का...नामों का...ऐलानों का...कोई कह रहा है, दीपिका पादुकोण की नाक काट देंगे...कोई भंसाली के सिर पर 5 करोड़ का इनाम रख रहा है...कोई पीएम मोदी के विरोधियों के हाथ काटने पर आमादा है तो कोई फारूक अब्दुल्ला की जुबान की कीमत लगा रहा है. सुबह का अखबार देखने पर एकबारगी लगता है कि हम भारत में रह रहे हैं या तालिबान के असर वाले किसी इलाके में.

ये क्या हो रहा है? या उससे बड़ा सवाल--ये क्यों हो रहा है? और शायद सबसे जरूरी सवाल---ये क्यों होने दिया जा रहा है? इस मानसिकता को समझना जरूरी है जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को कुछ वक्त के लिए किसी पिछड़े, दुनिया से कटे तालिबानी इलाके में तब्दील करती लगती है.

आपने क्यों और कैसे सोचने का काम आउटसोर्स कर दिया?

तमाम जरूरी मुद्दों पर सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक फूटे गुस्से को देखकर लगता है कि हमने सोचना बंद कर दिया है. हजारों दूसरे कामों की तरह ये काम भी आउटसोर्स हो चुका है. कुछ लोग हैं जो आपके लिए सोचने का दावा कर रहे हैं. और फिर उसे आपकी सोच बनाकर, जहर फैला रहे हैं. चंद लोगों के ऐसे विचार, इस मुल्क की सोच हो सकती है, ये हो नहीं सकता. इन लोगों को आप बताते क्यों नहीं कि ये आपकी सोच नहीं है. जिसे आपकी आवाज बताकर बुलंद किया जा रहा है, वो आपके दिल के भीतर से निकली आवाज नहीं है. जिसे आपकी भावना बताया जा रहा है, वो आपके असल जज्बात से बहुत अलग है.

ये सब का सब आपको बताना होगा. वरना, मार्टिन नीमोलर की उस कविता की तरह..

जब वो आपके लिए आएंगे

आपके लिए बोलने वाला कोई नहीं होगा

और अब दूसरा सवाल?

आपको गुस्सा आता है? कब?

जब आप ट्रैफिक में फंस जाते हैं...जब आपकी शुरू की 5 मिनट की फिल्म निकल जाती है...अगर आप पेरेंट हैं तो बच्चे के मनचाहा ग्रेड न लाने पर गुस्सा आता होगा...

इन सब के अलावा आपको गुस्सा नहीं आता क्या? क्या आपको ऐसे लोगों पर गुस्सा नहीं आता जो  दुनिया में भारत की तालिबानी तस्वीर बनाने पर तुले हैं. अगर आता है तो आवाज उठाना भी सीखना होगा. सभ्य तरीके से इन जहर उगलते बयानों के खिलाफ गुस्से को एकजुट कर जवाब देना सीखना होगा. उन बहकी-बहकी आवाजों को बताना होगा कि तुम्हारी असभ्यता हमारी सभ्यता का हिस्सा नहीं हो सकता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुछ जरूर होगा, अगर आप बोलेंगे

अगर आप सोचते हैं कि इससे क्या होगा तो एक और कवि रघुवीर सहाय आपके लिए कुछ लिखकर गए थे...वो याद करने का वक्त है.

कुछ तो होगा

कुछ तो होगा

अगर मैं बोलूंगा

न टूटे, न टूटे

तिलिस्म सत्ता का

मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा

टूट मेरे मन टूट

अब अच्छी तरह टूट

झूठ-मूठ अब मत रूठ

इस देश में लोकतंत्र जिंदा है....धड़कता हुआ लोकतंत्र. ये देश एक किताब से चलता है...जिसका नाम संविधान है. ये किन्हीं ऊलजुलूल, जहर बुझे बयानों से डर नहीं सकता. डर कर बैठ नहीं सकता.

एंकर- नीरज गुप्ता

वीडियो एडिटर- मोहम्मद इब्राहिम

स्क्रिप्ट-प्रोड्यूसर- प्रबुद्ध जैन

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×