वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
5 अगस्त को मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया और जम्मू-कश्मीर राज्य को 2 केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया. कर्फ्यू और टेलीकम्युनिकेशन ब्लैकआउट 10 दिनों से ज्यादा वक्त से जारी है.
पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और शाह फैसल जैसे कई नेता हिरासत में हैं. इसके अलावा भी सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया है.लेकिन क्या ये कानूनी रूप से सही है? इन्हीं कई मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई है.
आर्टिकल 370 को हटाना असंवैधानिक
पहली पीआईएल एमएल शर्मा ने दायर की. इसके बाद कश्मीरी एडवोकेट शब्बीर शकीर ने भी याचिका दायर की. सबसे विस्तृत याचिका नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद मो. अकबर लोन और हसनैन मसूदी ने दायर की.उनका तर्क था कि आर्टिकल 370 का इस्तेमाल खुद इसी आर्टिकल को बदलने के लिए नहीं किया जा सकता, जैसा कि सरकार ने राष्ट्रपति के आदेश में किया.
गवर्नर और जम्मू-कश्मीर की सरकार एक बात नहीं हो सकती. इसलिए आर्टिकल 370 को बदलने के लिए जरूरी शर्तें पूरी नहीं की गईं.
जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर केंद्रशासित प्रदेश बनाना असंवैधानिक
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसदों ने जो याचिका दायर की, उसमें जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल 2019 को लेकर भी तर्क हैं. उनका कहना है कि संसद के पास शक्ति नहीं है कि वो राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदल दे.पुनर्गठन का फैसला संघीय व्यवस्था पर हमला है.राज्य की स्वायत्तता और राज्य का दर्जा हटाना जम्मू-कश्मीर के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है.
गिरफ्तार लोगों को रिहा करो और कर्फ्यू-ब्लैकआउट खत्म करो
एक्टिविस्ट तहसीन पूनावाला ने 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.इसमें उन्होंने सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किए जाने के तरीके पर सवाल उठाया और कर्फ्यू और फोन, इंटरनेट बैन वगैरह हटाए जाने की मांग की. दावा है कि ये जम्मू-कश्मीर के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है. सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं पर सुनवाई हुई जिसमें सरकार ने कहा कि इस कदम को उठाए जाने की जरूरत थी. जजों ने तुरंत दखल देने से मना कर दिया लेकिन 2 हफ्ते बाद इस पर फिर से सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा.
मीडिया की आजादी पर प्रतिबंध गैर-कानूनी
कश्मीर टाइम्स की एग्जीक्यूटिव एडिटर अनुराधा भसीन ने भी याचिका दायर की. याचिका में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंधों और इंटरनेट, टेलीकॉम सर्विस बंद करने के फैसले को चुनौती दी.
उनके मुताबिक, इसकी वजह से पत्रकारों को काम करने में दिक्कतें आ रही हैं.
उनका तर्क है कि ये प्रतिबंध पत्रकारों के अधिकारों आर्टिकल 14 (समानता) और आर्टिकल 19 (बोलने की स्वतंत्रता) का हनन है. जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों को लेकर इन्फॉर्मेशन ब्लैकआउट के फैसले को भी चुनौती दी गई. इस फैसले ने इलाके में खौफ और घबराहट का माहौल बना दिया. सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करेगा. लेकिन अदालत ने इस मामले में तुरंत दखल नहीं दिया.
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