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जस्टिस अभिजीत बने नेता लेकिन राम मंदिर-ज्ञानवापी पर फैसला देने वाले जज रिटायरमेंट बाद क्या बने?

पांच जजों की बेंच ने अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था. 5 जजों में से तीन जज रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद पर नियुक्त किए गए हैं.

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कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने 5 मार्च को अपने पद से इस्तीफा दिया और 48 घंटे के अंदर आधिकारिक तौर पर बीजेपी में शामिल हो गए. ऐसे तो पहले भी कई जज रिटायरमेंट के बाद संसद पहुंचे हैं लेकिन सुबह लोगों की जिंदगी पर फैसला देने वाले जज शाम को सत्ताधारी पार्टी के ऑर्डर-ऑर्डर पर 'यस मीलॉर्ड' कहेंगे तो सवाल उठेगा कि क्या हमारे देश में ज्यूडिशियरी राजनीति से आजाद है?

इस सवाल का बहुत से लोग जवाब देंगे कि हां, बिल्कुल आजाद है.. जज सबूत के आधार पर फैसले करते हैं.. भारत के कानून में जजों का राजनीति में आने पर रोक नहीं है, बात सही है लेकिन सवाल गंभीर है.. आज मैं आपको इस आर्टिकल में जो बताने वाले हैं, उसे देखकर आप भी सोचेंगे कि इस सवाल का असल में सही जवाब क्या है? इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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''मैंने भी बीजेपी से संपर्क किया और बीजेपी ने भी मुझसे संपर्क किया.'' ये कहना है जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय का.

अब आप ये पढ़िए-

"र‍िटायरमेंट के बाद पद पाने की इच्‍छा र‍िटायरमेंट से पहले के फैसलों को प्रभाव‍ित करती है. यह न्‍यायपाल‍िका की स्‍वतंत्रता के ल‍िए खतरा है.."

5 स‍ितंबर, 2013 को बीजेपी नेता और पूर्व कानून मंत्री अरुण जेटली ने राज्‍यसभा में ये बयान दिया था.. मतलब जो बीजेपी 2013 तक जजों के रिटायरमेंट के बाद किसी पद के खिलाफ थी वो जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय के चट जज से पट नेता बनने से खुश है.

चलिए बिना 'कंटेप्ट ऑफ जज' किए हम आपको पहले जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय के कुछ फैसले और विवादों से मिलवाते हैं फिर उन माननीय न्यायाधीशों के बारे में बताएंगे जिन्हें राम मंदिर, ज्ञानवापी केस, तीन तलाक, आधार, नोटबंदी जैसे केस के फैसले के बाद कोई पद मिले हैं.

अभिजीत गंगोपाध्याय और विवाद

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार और अभिजीत गंगोपाध्याय के बीच तकरार की कहानी मीडिया और अदालती फैसले में खूब नजर आई हैं. दैनिक भास्कर के मुताबिक, जस्टिस गंगोपाध्याय ने ममता बनर्जी सरकार से जुड़े कुल 14 मामलों को ED-CBI को सौंपा था, जिनकी जांच पश्चिम बंगाल पुलिस कर रही थी. पश्चिम बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाला, क्लास 9 और 10 के लिए सहायक शिक्षक की नियुक्ति में गड़बड़ी जैसे केस भी शामिल हैं.

अप्रैल 2023 की बात है-- टीचर भर्ती घोटाले से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान ही अभिजीत गंगोपाध्याय ने एक लोकल बंगाली न्यूज चैनल को इंटरव्यू दे दिया. इसमें उन्होंने TMC नेता और ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लेकर बयान दिया. मामला आगे बढ़ा.. सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई.

तब CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था,

‘मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि जज को उन मामलों पर इंटरव्यू नहीं देना चाहिए जो लंबित हैं. अगर उन्होंने याचिकाकर्ता के बारे में ऐसा कहा है तो उन्हें कार्यवाही में हिस्सा लेने का कोई अधिकार नहीं है."

चलिए बिना कंटेप्ट ऑफ कोर्ट, बिना ओपिनियन रखे.. आपको ऐसे कुछ जजों से मिलवाते हैं जिन्हें पोस्ट रिटायरमेंट कोई पोस्ट मिले हैं.

ज्ञानवापी मस्जिद केस में पूजा शुरू कराने का फैसला देने वाले जज बने लोकपाल

ताजा मामला है.. वाराणसी डिस्ट्र्किट और सेशन जज अजय कृष्ण विश्वेश का.

पहले ज्ञानवापी मस्जिद केस में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI को  “scientific survey” का आदेश दिया और बाद में अपने रिटायरमेंट के दिन 31 जनवरी 2024 को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने को हिंदू पक्ष को सौंपने और वहां पूजा शुरू कराने का फैसला सुनाया. डिस्ट्रिक्ट जज के पद से रिटायर होने के एक महीने के अंदर ही अजय कृष्ण विश्वेश को योगी सरकार ने डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय का लोकपाल नियुक्त कर दिया.

ये संयोग है या प्रयोग? इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा.

राम मंदिर पर फैसला सुनाने वाले 5 में से 3 जजों को पोस्ट रिटायरमेंट पद मिला

अब आते हैं अयोध्या के राम मंदिर से जुड़े फैसले और जजों पर. पांच जजों की बेंच ने अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था. जस्टिस अशोक भूषण, एसए बोबडे, रंजन गोगोई, डीवाई चंद्रचूड़, एस अब्दुल नजीर. 5 जजों में से तीन जज रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद पर नियुक्त किए गए हैं.

1. जस्टिस रंजन गोगोई

पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई, अयोध्या पर फैसला सुनाने वाली बेंच का नेतृत्व कर रहे थे.

रिटायरमेंट: 17 नवंबर, 2019

रिटायरमेंटे के बाद नए पद पर नियुक्ति : 19 मार्च, 2020

टाइम गैप: चार महीने

जस्टिस गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था.

2. जस्टिस एस अब्दुल नजीर

रिटायरमेंट: 4 जनवरी, 2023

रिटायरमेंट के बाद नए पद पर नियुक्ति: 12 फरवरी, 2023

टाइम गैप: एक महीना

रिटायरमेंट के बाद, जस्टिस नजीर आंध्र प्रदेश के 24वें राज्यपाल बनाए गए थे.

बाबरी मस्जिद मामले के अलावा, जस्टिस नजीर उन बेंच में शामिल थे जिन्होंने कई बड़े फैसले दिए थे, जिसमें निजता के अधिकार, तीन-तलाक मामले शामिल हैं. इसके अलावा उन संवैधानिक पीठ का भी नेतृत्व किया, जिसने केंद्र की नोटबंदी को बरकरार रखा और कहा कि इस कार्रवाई को रद्द नहीं किया जा सकता.
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3. जस्टिस अशोक भूषण

रिटायरमेंट: 4 जुलाई, 2021

रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति: 8 नवंबर, 2021

टाइम गैप- 3 महीने

जुलाई 2021 में रिटायरमेंट के तीन महीने बाद अशोक भूषण को National Company Law Appellate Tribunal के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था.

साल 2023 में बार एंड बेंच में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक 5 सालों में सुप्रीम कोर्ट के 21% जजों ने रिटायरमेंट के बाद कहीं न कहीं कोई पद संभाला है. यहां बात सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की हो रही है.

इसके अलावा कुछ और जजों के पोस्ट रिटायरमेंट जॉब पर भी नजर डालते हैं..

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल- 6 जुलाई 2018 को रिटायर हुए और उसी दिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए गए.

जस्टिस अरुण मिश्रा- 2 सितंबर, 2020 को रिटायर हुए और रिटायरमेंट के करीब एक साल बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए गए.

जस्टिस पी. सदाशिवम- 26 अप्रैल 2014 तक भारत के 40 वें मुख्य न्यायाधीश रहे. रिटायरमेंट के 5 महीने बाद केरल के राज्यपाल बनाए गए.

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कांग्रेस के वक्त जजों को क्या-क्या मिला?

अब कुछ लोग कहेंगे कि सिर्फ बीजेपी के सरकार की बात करेंगे क्या? जी नहीं.. कांग्रेस की सरकार के जमाने में भी ऐसे मामले हुए हैं, जजों को सरकारी पद, राज्यसभा की सीट मिली है. लेकिन सवाल ये है कि अगर तब उनके फैसले के खिलाफ थे तो अब आपके वही फैसले सही कैसे हो गए?

जस्‍ट‍िस एस फजल अली: 18 स‍ितंबर, 1951 को र‍िटायर हुए और 7 जून, 1952 को ओड़‍िशा के राज्‍यपाल बनाए गए.

जस्‍ट‍िस फात‍िमा बीवी: 29 अप्रैल, 1992 को सुप्रीम कोर्ट से र‍िटायर हुईं और 5 साल बाद 1997 में तम‍िलनाडु की राज्‍यपाल बनाई गईं.

जस्‍ट‍िस रंगनाथ म‍िश्रा: 1992 में सीजेआई के पद से रिटायर हुए. नरसिंह राव सरकार में 1993 में राष्‍ट्रीय मानवाधि‍कार आयोग के अध्‍यक्ष बनाए गए. अटल सरकार के दौरान 1998 में कांग्रेस के ट‍िकट पर राज्‍यसभा गए. तब कांग्रेस व‍िपक्ष में थी. तब आरोप लगे क‍ि जस्‍ट‍िस म‍िश्रा को रंगनाथ आयोग र‍िपोर्ट के जर‍िए स‍िख दंगों के आरोपी कांग्रेस के बड़े नेताओं को बचाने की कोश‍िशों का इनाम दिया गया है.

यहां एक बात साफ कर दूं कि कई ट्राइब्यूनल और कमीशन ऐसे होते हैं जिनके लिए पूर्व जजों को नियुक्त किया जाता है क्योंकि ऐसे पदों पर जजों की लीगल समझ और एक्पीरियंस की जरूरत होती है. लेकिन चट जज और पट नेता बनने पर सवाल ज्यादा गंभीर हैं इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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