डॉ. कफील खान ने 7 महीने उस गुनाह के लिए जेल में गुजारे जो उन्होंने किया ही नहीं.
“हमें यह निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं है कि नेशनल सिक्योरिटी एक्ट, 1980 के तहत डॉक्टर कफील खान को हिरासत में लेना और हिरासत को बढ़ाना कानून की नजर में सही नहीं है.”
ये बातें इलाहाबाद हाइकोर्ट ने गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्रवक्ता डॉक्टर कफील के खिलाफ लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पर फैसला सुनाते हुए कही हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉक्टर कफील खान पर लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA को हटाने का आदेश दिया है. साथ ही कफील खान को तुरंत रिहा करने का फैसला सुनाया है.
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई की कमी के चलते बच्चों की मौत की घटना के बाद चर्चा में आए कफील खान पर भड़काऊ बयान देने का आरोप लगाया गया. लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में जो कहा वो उन आरोपों की बुनियाद पर ही चोट करती है.
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा,
“कफील खान का भाषण सरकार की नीतियों का विरोध था. उनका बयान नफरत या हिंसा को बढ़ावा देने वाला नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश देने वाला था.”
जी हां, भड़काऊ बयान नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश.
डॉक्टर कफील खान पर नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में 13 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया था. जिसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने कफील खान को 29 जनवरी को मुंबई से गिरफ्तार किया था.
चलिए आपको 13 दिसंबर 2019 को AMU में कफील खान के भाषण के कुछ हिस्से को पढ़कर सुनाते हैं. फिर वो कहानी भी बताएंगे कि कोर्ट ने क्या कहा और कैसे उनके खिलाफ एनएसए लगाया गया.
कफील का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिया हुआ भाषण
डॉक्टर कफील ने AMU में अपने भाषण की शुरुआत मशहूर शायर अलामा इकबाल के शेर से की थी, उन्होंने कहा था, "कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमाना हमारा."
कफील खान ने कहा,
“बचपन से हम सभी को सिखाया जाता है कि हम न तो हिंदू बनेंगे और न ही मुसलमान, लेकिन इंसान बनेंगे और हमारे मोटा भाई हमें सिखाते हैं कि हम हिंदू बने, मुसलमान बनें लेकिन इंसान नहीं. आरएसएस के अस्तित्व में आने के बाद से वह संविधान पर यकीन नहीं रखते हैं. नागरिकता कानून मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना रहा है और इसके बाद उन्हें एनआरसी के जरिए परेशान किया जाएगा.”
इसी तरह कफील खान नागरिकता संशोधन कानून की कमियां गिनाते हैं, सरकार पर हमला बोलते हैं.
बेल के बाद लगा NSA
इस भाषण के ठीक एक दिन बाद डॉक्टर कफील के खिलाफ 13 दिसंबर को अलीगढ़ के सिविल लाइंस पुलिस थाने में IPC की धारा 153-ए (धर्म, भाषा, नस्ल के आधार पर लोगों में नफरत फैलाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. लेकिन करीब डेढ़ महीने बाद 29 जनवरी को यूपी पुलिस उन्हें गिरफ्तार करती है. कमाल तो तब होता है जब इस केस में भी कफील खान को बेल मिल जाती है, लेकिन जेल से बाहर आने से पहले उन पर NSA लगा दिया जाता है.
कफील खान को 10 फरवरी 2020 को जमानत मिल गई थी, लेकिन जमानत मिलने के 72 घंटे बाद भी उन्हें जेल प्रशासन ने रिहा नहीं किया. जिसके बाद परिवार के लोगों ने 13 फरवरी को अलीगढ़ में सीजेएम कोर्ट में कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट की अपील की. सीजेएम कोर्ट ने जेल प्रशासन को फटकार लगाते हुए तुरंत रिहाई के स्पेशल ऑर्डर जारी किए. लेकिन जेल प्रशासन ने फिर भी रिहा नहीं किया. और रिहाई से पहले ही उन पर NSA लगा दिया गया.
कोर्ट ने जो कहा वो सुनने के काबिल है
7 महीने एक इंसान को झूठे आरोपों में जेल में रखा गया. अब एक सितंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं हैं. कोर्ट ने कहा,
“एडिशनल एडवोकेट जनरल की तरफ से बताया गया है कि कफील खान जेल में रहते हुए भी AMU के छात्रों के संपर्क में हैं और अलीगढ़ का मौहाल खराब करने की कोशिश की जा रही है. कोर्ट ने कहा कि ये आरोप किसी तरह से साबित नहीं किया गया है इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है.”
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा,
''कफील खान का पूरा भाषण पढ़ने से पृथम दृष्टया कहीं जाहिर नहीं होता कि नफरत या हिंसा को बढ़ाने का प्रयास किया गया है. साथ ही इससे अलीगढ़ शहर की शांति को भी कोई चुनौती नहीं दिखाई देती है. भाषण राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देने वाला है. ऐसा लगता है कि अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने भाषण का कुछ हिस्सा पढ़ा और भाषण के असल मकसद को दरकिनार कर कुछ हिस्से वहां से ले लिए.
कोर्ट ने आदेश में कहा,
“13 फरवरी, 2020 को अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया आदेश, जो कि यूपी सरकार ने भी कंफर्म किया था, रद्द किया जाता है. डॉक्टर कफील को जेल में रखना गैर-कानूनी करार दिया जाता है. उन्हें तुरंत रिहा किया जाए.’’
लेकिन सवाल ये है कि कफील खान का मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच सका तब जाकर इंसाफ मिला, लेकिन कितने लोग वहां तक पहुंच पाते हैं. दूसरा सवाल, कफील खान के 7 महीने कौन लौटाएगा? तीसरा सवाल, बोलने की आजादी को दबाने की कोशिशें कब तक चलेंगी?
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