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बिहार के छात्र ने माफी मांगी-कोर्ट ने क्लीनचिट दी,फिर भी गुजरात की MSU ने निकाला

Kundan Kumar Mahto ने अपना आर्टवर्क MSU के अपने शिक्षकों को दिखाया था,लेकिन उसकी तस्वीर ABVP तक पहुंचा दी गई

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गुजरात में PG की पढ़ाई करने वाले कुंदन कुमार महतो एक बिहारी दिहाड़ी मजदूर के बेटे हैं. यहां तक कि बचपन से ही कुंदन कुमार महतो अपने गांव फुलकाहा गोदान में मिट्टी की मूर्तियां बनाने लगे थे. इसी जुनून और जोश से वो आगे जाकर महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी MSU वडोदरा पहुंच गए. लेकिन 22 साल के इस कला छात्र के आर्ट वर्क पर विवाद ने उनके सपने को मटियामेट कर दिया.

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पिछले महीने कुछ दक्षिणपंथी समूहों के इशारे पर उनके खिलाफ FIR दर्ज हुई. दरअसल, उन्होंने एक इंस्टालेशन लगाया था जिसमें अखबारों में छपी कुछ रेप और हत्या की कतरनों का इस्तेमाल किया गया था. इसे हिंदू देवी-देवताओं के साथ रेप और हत्या के तौर पर दिखाया गया था. FIR दर्ज किए जाने के बाद उन्हें गुजरात पुलिस ने 4 जून को गिरफ्तार कर लिया. चार दिन जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत दे दी गई. लेकिन, उन्हें अभी तक यूनिवर्सिटी से प्रतिबंधित रखा गया है.

यहां ध्यान देने की बात ये है कि इंस्टालेशन केवल एक सालाना एग्जिबिशन के लिए MSU के एक इंटरनल ज्यूरी को ही दिखाई गई थी. इसकी सार्वजनिक प्रदर्शनी की इजाजत नहीं दी गई थी. इसलिए ये पब्लिक के देखने के लिए भी नहीं थी. फिर भी इंस्टालेशन का फोटो लेकर सर्कुलेट किया गया. हालांकि, ये साफ नहीं है कि किसने फोटो लिया और सर्कुलेट किसने किया.

महतो, जो कि मास्टर ऑफ स्कल्पचर में पहले साल के छात्र हैं ने क्विंट से बताया कि मैं एक ऐसे गांव से आता हूं जहां लोग स्कूल खत्म होने के बाद दिहाड़ी करते हैं. मैंने इस यूनिवर्सिटी में आने और कला को नई ऊंचाई पर पहुचांने का सपना लंबे वक्त से देखा. लेकिन, कोर्स शुरू होने के 4 महीने के भीतर ही मैं जेल पहुंच गया.

आखिर उसका आर्ट वर्क क्यों स्कैनर में आया ?

9 मई को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक सदस्य ने गुजरात पुलिस में केस दर्ज कराया. महतो के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 295 A (जानबूझकर और खराब इरादे से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए ) और सेक्शन 298 (जानबूझकर ऐसे शब्दों को इस्तेमाल करना जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचे) में मामला दर्ज किया गया.

महतो इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि उनका इरादा किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का नहीं था. बल्कि वो आर्ट वर्क के जरिए महिला सुरक्षा के मुद्दे को उठाना चाहते थे.
महतो

कुंदन महतो पूछते हैं कि समाज कहता है कि महिलाएं देवी होती हैं, लेकिन हकीकत में वो रोजाना हमलों का शिकार होती हैं. मैं उस विडंबना को सामने लाना चाहता था और यह एक कोशिश थी महिला सुरक्षा को मजबूत करने की. क्या ऐसा करना गलत है?

महतो ने विश्वविद्यालय से कई बार माफी मांगी है, इस उम्मीद में कि उसकी पढ़ाई जारी रहे लेकिन अभी तक कोई फायदा नहीं हुआ.

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महतो ने वर्षों से एक प्रसिद्ध मूर्तिकार बनने का सपना देखा है. उसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं. मां गृहिणी हैं. महतो ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से ललित कला में स्नातक की डिग्री हासिल की थी.

अपने काम के प्रति समर्पित, वह हर दिन सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक कॉलेज में काम करते थे. हालांकि उसका पूरा फोकस मूर्तिकला पर है, लेकिन वो पेंट भी करते हैं.

कुंदन कुमार महतो कहते हैं कि मैं इतने सालों से इसके बारे में सपना देख रहा था. मैं देश को गौरवान्वित करना चाहता था. एक सफल मूर्तिकार बनना चाहता था और भारतीय कला में सकारात्मक योगदान देना चाहता था. मैं वर्षों से MSU के बारे में सुन रहा था और मैं भी मंजीत बावा और सुबोध गुप्ता जैसे कलाकार के नक्शेकदम पर चलना चाहता था.

उनके पिता, महतो ने बताया, उन्हें इस बात का गर्व था कि कुंदन अपनी आगे की पढ़ाई के लिए आगे बढ़े, मास्टर की डिग्री में एडमिशन लेने वाले वो परिवार में पहले शख्स थे.

उनके वकील हितेश गुप्ता ने कहा कि महतो चूंकि कमजोर और कम साधन संपन्न थे, इसलिए उन्हें प्रताड़ित किया गया था. उन्होंने द क्विंट को बताया कि उनका कोई राजनीतिक इरादा नहीं है.

महतो के वकील हितेश गुप्ता कहते हैं...

इस केस को ठीक से समझने के लिए महतो के बैकग्राउंड को ठीक से समझना बहुत जरूरी है. वो एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखते हैं. लेकिन उन्होंने पूरी मेहनत की और यहां तक पहुंचे.
महतो के वकील
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घटना की टाइमलाइन

जब महतो ने आंतरिक जूरी को 2 मई को अपनी कलाकृति दिखाई तब से चीजें बदलने लगीं. तस्वीरें कथित तौर पर इसके तुरंत बाद प्रसारित की गईं, जिसके कारण 5 मई को दक्षिणपंथी समूहों ने विरोध किया.

महतो, बिहार में अपने गांव लौट आए थे क्योंकि उन्हें लगा कि वह कैंपस में सुरक्षित नहीं हैं. वार्षिक प्रदर्शनी 6 मई को तय किया गया था.

एक फैक्ट फाइंडिंग कमिटी बनाई गई . महतो को 7 मई को पत्र लिखकर 8 मई को समिति के समक्ष उपस्थित रहने के लिए कहा गया था. बिहार वापस लौटे महतो ने विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर कहा....

मेरा किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था. मेरे काम के कारण जो भी समस्या हुई है, मैं उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं. मैं भविष्य में ऐसा कुछ नहीं करूंगा.

लेकिन, इस माफीनामे के बाद भी 13 मई को महतो को नोटिस मिला कि उन्हें विश्वविद्यालय से स्थायी रूप से हटा दिया गया है. इसमें कहा गया कि महतो ने 12 मई के कारण बताओ नोटिस का जवाब नहीं दिया. कुंदन से सवाल पूछते हुए कहा गया कि आखिर क्यों नहीं उन्हें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, असहमति पैदा करने और विश्वविद्यालय परिसर की प्रतिष्ठा और शांति को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.

उनके वकील ने क्विंट को बताया कि महतो ने विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर कहा था कि वह ट्रेन से घर जा रहे थे और जब तक वो वापस वहां से लौटकर आते तब तक उन्हें स्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था.

इस बीच, उन्हें कोर्ट से जमानतमिल गई. इसमें कोर्ट ने कहा कि धार्मिक भावनाओं को आहत करने का कोई जानबूझकर या दुर्भावनापूर्ण कोशिश के सबूत नहीं मिलते.

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कोर्ट में कुंदन की तरफ से दलील रखी गई

"विचाराधीन कलाकृति पब्लिक के लिए नहीं बनाई गई थी. यह एमएस विश्वविद्यालय, वडोदरा के ललित कला संकाय के जूरी के लिए बनाई गई थी, जो आर्ट वर्क की जांच करती है. जूरी ने आवेदक को आर्ट वर्क हटाने की सलाह दी और फिर आवेदक ने इसे हटा दिया. आवेदक ने इस आर्ट वर्क को सर्कुलेट नहीं किया है. इसलिए किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर या फिर दुर्भावना से आहत करने का इरादा आवेदक का नहीं था.

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