वीडियो एडिटर- वरुण कुमार
बिहार में एनडीए की बहार है, एक बार फिर मोदी सरकार है. ये नारा बीजेपी के लिए हिट साबित हुआ और विपक्ष हिट विकेट. 2014 लोकसभा चुनाव में बिहार में 40 में से 22 सीट जीतने वाली बीजेपी और 31 सीट लाने वाली एनडीए ने एक बार फिर बिहार का किला फतह कर लिया है. पहले से और भी बड़ी जीत. क्योंकि इन नतीजों ने इस बार कांग्रेस-आरजेडी समेत पांच पार्टियों के महागठबंधन की राजनीति का पोस्टर उतार कर ब्रांड मोदी का झंडा लगा दिया है. बीजेपी के लिए ये जीत 2015 विधानसभा चुनाव की हार का बदला भी है.
आइये अब आपको एनडीए की इस जीत के पीछे का गणित समझाते हैं.
1. पीएम मोदी का नाम बोलता है
विपक्ष पीएम मोदी के सामने अल्टरनेटिव देने में नाकाम रहा. बीजेपी हर मुद्दे का पीएम मोदी के नाम पर पैकेजिंग करती गई और विपक्ष पैकेट के रैपर की गिनती में ही व्यस्त. पीएम मोदी ने नोटबंदी से लेकर जीएसटी के फैसले को सही साबित करने के लिए कांग्रेस के 70 साल बनाम बीजेपी के 5 साल, उज्ज्वला योजना, जन धन जैसी स्कीम जैसे तमाम मुद्दों को भुनाया. मोदी गरीब हैं, पिछड़े हैं, जो कर रहे हैं देश के लिए ये तमाम मुद्दे उनकी जीत का मंत्र बन गए.
2. नीतीश का नाम और मोदी का जादू
2014 चुनाव में एनडीए से अलग हुए नीतीश कुमार की वापसी 2019 लोकसभा चुनाव की जीत में अहम भूमिका निभाती दिखी. नीतीश कुमार की ‘सुशासन-बाबू’ और मोदी की ‘विकास-पुरुष’ वाली छवि ने एनडीए की जीत में चार चांद लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ा.
3. गठबंधन पर विश्वास
इस लोकसभा चुनाव में जेडीयू-बीजेपी और एलजेपी की तिकड़ी ने सीट शेयरिंग से लेकर चुनाव के आखिरी फेज तक एक-दूसरे के प्रति विश्वास बनाए रखा. बीजेपी और जेडीयू बराबर-बराबर 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ी वहीं राम विलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी ने छह सीटों पर चुनाव लड़ा. गठबंधन को कामयाब बनाने के लिए बीजेपी ने अपनी 5 जीती हुई सीटें तक छोड़ दी. जबकि इसके ठीक उलट महागठबंधन सीट शेयरिंग से लेकर टिकट बंटवारे में ही उलझी रह गई.
4. इधर सब मिल गए, उधर बिखराव
जेडीयू ने पिछली बार महज 2 सीटें जीती थीं. इस बार इससे कई गुना ज्यादा सीटें मिलीं. साफ है कि बीजेपी का वोट जेडीयू को ट्रांसफर हुआ. दूसरी तरफ भले ही कांग्रेस, आरजेडी, आरएलएसपी, जीतन राम मांझी की हम और विकासशील इंसान पार्टी साथ लड़ रही थीं, लेकिन ये पार्टियां एक दूसरे को अपना वोट ट्रांसफर नहीं कर पाई.
यहां तक कि कुछ सीटों पर आपस में ही लड़ बैठीं. मिसाल के तौर पर सुपौल की सीट पर कांग्रेस की रंजीता रंजन के खिलाफ आरजेडी समर्थित कैंडिडेट. यही नहीं गठबंधन का सही कैंडिडेट ना उतारना भी एनडीए की राह आसान बनाने के लिए काफी रहा. बेगूसराय में RJD और सीपीआई की लड़ाई गिरिराज की जीत की वजह बनी.
5 . लालू का जेल में होना
जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू. इस बार लालू बिहार में नहीं थे. वो रांची की जेल में थेे. अगर लालू बिहार में होते तो गठबंधन के सबसे बड़े स्टार प्रचारक होते. लालू के नहीं होने से लालू परिवार में झगड़ा भी उभरा. तेजस्वी और तेज प्रताप की लड़ाई खुलकर सामने आई. हालांकि बाद में पैचअप की कोशिशें हुईं. तेज प्रताप ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ कुछ सीटों पर अपना कैंडिडेट उतार दिया.
बिहार के ये नतीजे इसलिए भी अहम हो जाते हैं, क्योंकि अगले साल यहां विधानसभा चुनाव होने हैं. राज्य में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं. लोकसभा चुनाव में जो पार्टी बाजी मारेगी उसका मनोबल ऊंचा रहेगा. बिहार में फिलहाल जेडीयू और बीजेपी की एनडीए सरकार है. 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधन की सरकार बनाई थी और नीतीश कुमार सीएम बने. लेकिन 2017 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया और बीजेपी के साथ मिलकर एनडीए की सरकार बनाई. अब महागठबंधन को मोदी मैजिक का तोड़ ढूंढने में और हार से उबरने में वक्त जरूर लगेगा.
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