3 मई 2023... ये वही तारीख है जब मणिपुर, जल उठा था. अब 5 महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन फिर भी शांति नहीं सिर्फ शोर है.. दो तरह के शोर. एक जो मणिपुर (Manipur) की सड़कों पर और लोगों के अंदर है. दूसरा शोर संसद में हुआ, सरकार और विपक्ष के बीच सवाल-जवाब का शोर. संसद में हमारे मानीनय नेताओं के भाषणों को दिए 2 महीने होने को हैं, लेकिन अबतक मणिपुर दर्द से कराह रहा है. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
मणिपुर में फिर से इंटरनेट शुरू किया गया तो फिर से हिंसा की खबरें आने लगीं, मौत का मातम दिखने लगा, फिर से लोग सड़कों पर दिखे, फिर से स्कूल बंद कर दिए गए, फिर से AFSPA लगा दिया गया.
थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं..
मणिपुर पर पीएम मोदी की कई महीनों की चुप्पी तुड़वाने के लिए विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लिया था. मणिपुर मे हिंसा की शुरुआत के 4 महीने बाद पीएम मोदी ने पहली बार संसद में मणिपुर पर 10 अगस्त को अपना बयान दिया. ये सब भी तब हुआ जब जुलाई के महीने में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें मैतेई समुदाय से आने वाले पुरुषों की भीड़ कुकी-जो समुदाय की दो महिलाओं को निरवस्त्र कर परेड कराती है, उसका रेप करती है.
यहां एक और अहम बात जान लीजिए, रेप की घटना 4 मई को हुई थी. जिसके बाद इंटरनेट बंद कर दिया गया था. लेकिन जैसे ही इंटरनेट की पहुंच में लोग आए तो हैवानित की वीडियो बाहर आ गई. देश में निंदा, एक्शन की बात शुरू हुई.
संसद में भाषण हुए, लेकिन फिर मानो मणिपुर को देश भूल गया. हां, देश उन निर्वस्त्र बेटियों के दर्द को ऐसे भी भूल चुका तो था ही. सोचिए अगर उस दर्द का ऐहसास होता तो हमारे नेता सदन में खड़े होकर इतनी संवेदनशील मुद्दों पर कटाक्ष, तंज और हंसी मजाक नहीं कर रहे होते.
खैर एक बार फिर इंटरनेट खुला तो मणिपुर की भयावह तस्वीर सामने आ गई. 6 जुलाई को लापता हुई दो स्टूडेंट्स हिजाम लिनथोइनगांबी और फिजाम हेमजीत के शवों की तस्वीर सोशल मीडिया पर सामने आई. सरकार ने फिर इंटरनेट बंद कर दिया. मतलब जहां सरकारों को ऐसी घटनाओं को बंद करना था, वहां इंटरनेट बंद हो रहे हैं.
आप मणिपुर के दर्द को समझना चाहते हैं तो मारे गए 17 वर्षीय हिजाम लिनथोइनगांबी के पिता कुलजीत हिजाम की बात पढ़िए, वो कहते हैं,
"वे उन मासूम बच्चों को कैसे मार सकते थे, जो ट्यूशन से वापस आ रहे थे और उनके बैग में एडमिट कार्ड थे? हमने तस्वीरें देखी हैं. न्याय होना चाहिए. हम कोई बहाना नहीं सुनना चाहते. कानून में यह नियम नहीं है."
हिजाम मणिपुर हिंसा के दौरान जुलाई 2023 में लापता हो गई थी. सोशल मीडिया पर शव की तस्वीर वायरल हुई, तो मानो परिवार का सब कुछ छिन गया.
हालांकि 25 सितंबर को राज्य सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपी. CBI ने 4 लोगों को गिरफ्तार किया है. वहीं दो नाबालिगों को हिरासत में लिया है. इस मामले में भी तब सीबीआई, सरकारें करीब दो महीने बाद जागी.
एक और दर्द की कहानी
26 सितंबर को हिजाम और हेमजीत के शव की तस्वीरें वायरल हुईं, जिसके बाद दोनों की हत्या के विरोध में फिर से हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. छात्रों ने सीएम एन बीरेन सिंह के घर के बाहर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस में झड़प भी हुई. जिसमें 50 से ज्यादा छात्र घायल हो गए.
राष्ट्रीय स्तर के वुशू खिलाड़ी के जिस्म से 61 छर्रे निकाले गए
अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए, 21 साल के राष्ट्रीय स्तर के वुशू खिलाड़ी उत्तम सोइबम का आरोप है कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की एक शाखा, रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) ने भीड़ को कंट्रोल करने के लिए पैलेट गन चलाए. वही पैलेट गन जिसका इस्तेमाल जम्मू और कश्मीर में होता रहा है. इंफाल में राज मेडिसिटी अस्पताल के डॉक्टर बताते हैं, "61 छर्रे निकाल लिए गए हैं और अभी भी निकाले जाने बाकी हैं."
बीजेपी की ऑफिस, सीएम के घर और प्रदेश अध्यक्ष के घर पर हमला
ये सब तब हो रहा है जब सरकार बार-बार दावा कर रही है कि सब कंट्रोल में है, सीएम बीरेन सिंह के इस्तीफे की कहानी सबने देखी और सुनी, चिट्ठी फाड़ी गई. लेकिन हालात इतने भयावाह हैं कि 27 सितंबर की शाम को उग्र भीड़ ने थोबुल जिले में बीजेपी मंडल कार्यालय को आग लगा दी. मणिपुर बीजेपी की अध्यक्ष ए शारदा देवी के घर पर भी उग्र भीड़ ने हमला किया. अब हाल ये हुआ कि इम्फाल पूर्व के हेनगिंग इलाके में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के घर पर उग्र भीड़ ने हमला करने की कोशिश की. लेकिन सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों को रोक लिया. सीएम के घर के इलाके सुरक्षित नहीं हैं तो बाकी राज्य में रहने वाले कैसे सुरक्षित महसूस करेंगे.
सरकार से नाराज मणिपुरी फिल्म अभिनेता राजकुमार कैकू उर्फ सोमेंद्र ने बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और सरकार पर आरोप लगाया कि मौजूदा जातीय संघर्ष से निपटने में नाकाम रही है.
कई अहम सवाल लेकिन जवाब...
अब आते हैं कुछ अहम सवाल पर. मणिपुर के सात जिलों के 19 पुलिस स्टेशन को छोड़कर मणिपुर के सभी हिस्सों में AFSPA (Armed Forces Special Powers Act) को 1 अक्टूबर से अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया है. AFSPA को ऐसे समझिए कि भारतीय सेना को अशांत क्षेत्रों में कार्रवाई की विशेष शक्तियां मिली होती हैं. मतलब बिना वॉरंट के भी कहीं जाकर छानबीन या गिरफ्तारी की जा सकती है.
आरोप लग रहे हैं कि सरकार ने जिन 19 थाना क्षेत्रों को AFSPA से बाहर रखा है उसमें ज्यादातर मैतेई-बाहुल इलाके हैं, इसके पीछे सरकार की क्या वजह है? ये इलाके हिंसा प्रभावित रहे हैं, फिर इन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट क्यों?
सवाल है कि ये हिंसा कब रुकेगी?
संसद में दिए भाषणों को बीते 50 दिनों से ज्यादा वक्त बीत चुका है, फिर भी हालात क्यों नहीं सामान्य हो रहे हैं? कहां चूक हो रही है?
मणिपुर में मैतेई और कूकी आमने-सामने हैं, तो क्या पहल की गई इन दूरियों को कम करने के लिए?
अगर कोई पहल हुई तो वो दिख क्यों नहीं रहा?
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने NIA के हवाले से कहा कि "मणिपुर में हुई घटना म्यांमार और बांग्लादेश के कुकी उग्रवादियों द्वारा भारत के कुछ उग्रवादियों के साथ मिलकर भारतीय संघ के खिलाफ छेड़ा गया युद्ध है."
क्या ये बातें हमारी सेना पर सवाल नहीं उठाती है? हमारे जवान बॉर्डर पर तैनात हैं, फिर विदेशी उग्रवादी हथियार कैसे पहुंचा सकते हैं? ये भी सवाल उठता है कि हाई कोर्ट ने मैतेई समाज को आरक्षण देने पर विचार करने को कहा था जिसके बाद ये हिंसा भड़की, तो क्या हमारी एजेंसियों के पास ऐसी हिंसा को लेकर कोई इंपुट नहीं था? क्या इंटरनेट बंद करने से हिंसा रुक गई?
मणिपुर को भाषण नहीं सुशासन की जरूरत है. 'देश साथ है' ये कहने से नहीं, दिखना भी चाहिए. मणिपुर में 170 से ज्यादा लोग इस हिंसा का शिकार हो चुके हैं, 5 महीने बाद भी मणिपुर शांत नहीं हो सका है, पीएम ने आश्वासन दिया था कि 'निकट भविष्य में शांति का सूरज निकलेगा', लेकिन भाषण के करीब दो महीने बाद भी मणिपुर में अंधेरा है. इसलिए मणिपुर ही नहीं पूरा देश पूछ रहा है जनाब ऐसे कैसे?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)