कैमरा: संजॉय देब
वीडियो एडिटर: वीरू कृष्णन मोहन
'द लंचबॉक्स' के डायरेक्टर रितेश बत्रा की फिल्म 'फोटोग्राफ' कल रिलीज हो रही है. इस फिल्म के एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी से क्विंट ने खास मुलाकात की, और उनसे पूछे कुछ दिलचस्प सवाल. नवाजुद्दीन के साथ कई मुद्दों पर हुई इस बातचीत को देखिए इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में.
हम रितेश बत्रा के बारे में बात से शुरू करेंगे. आपने उनके साथ ‘द लंचबॉक्स में काम किया. आपने अनुराग कश्यप और श्रीराम राघवन के साथ भी काम किया है. आप क्या कहते हैं कि रितेश और अन्य निर्देशकों के बीच क्या अंतर है?
बेशक, एक बड़ा अंतर है. तीनों शानदार निर्देशक हैं और उनके पास एक अलग प्रोसेस है और एक अभिनेता को यह पसंद है जब प्रत्येक फिल्म को करने के लिए एक अलग प्रोसेस होता है. द लंचबॉक्स की तुलना में फोटोग्राफ में रितेश के पास एक बहुत अलग प्रोसेस था. रितेश ने फिल्म में उन पलों को कैद किया है जो हम आमतौर पर अपनी फिल्मों में नहीं देखते हैं. बहुत सारी एक्शन्स और रिएक्शंस को उन्होंने कैमरे में कैद किया है, जिन्हें हम सामान्य जीवन में करते हैं, लेकिन इसे नहीं देखते हैं.
एक अन्य इंटरव्यू में आपने कहा था कि रितेश अपने एक्टर्स से बार-बार एक ही सीन दोहराने को कहते हैं. ये तकनीक क्या है?
जब निर्देशक ‘एक्शन’ कहता है, तो एक्टर अभिनय के जोन में पहुंच जाते हैं. एक्टिंग के उस जोन को तोड़ने में उसे कई टेक्स लगते हैं. छह या सात टेक्स के बाद, एक्टर ज्यादा सहज होते हैं. उन्होंने उसी सहजता को कैमरे में कैद किया है.
क्या आपने कभी गेटवे ऑफ इंडिया पर कोई तस्वीर क्लिक की है?
जब मैं शुरुआत में मुंबई आया, तो मैंने गेटवे ऑफ इंडिया पर दो तस्वीरें खिंचवाई. वो पेजर वाले दिन थे और हम इसे बेल्ट के पास पहनते थे. उसके बाद बड़े साइज वाले फोन आए, जिसे फेंक कर मारने पर आप इससे किसी को भी आसानी से मार सकते थे. मैंने वो फोन भी खरीद लिया लेकिन कभी भी कॉल अटेंड नहीं करते थे, क्योंकि इनकमिंग कॉल बहुत महंगी थी और इसकी कीमत 17 रुपए प्रति मिनट थी. इनकमिंग और आउटगोइंग दोनों कॉल्स का चार्ज लिया जाता था. सब लोग खरीद रहे थे तो मैंने भी खरीद लिया. मैं अहम कॉल भी अटेंड नहीं करता था. लेकिन फिर फोन बदल गए, दरें भी सस्ती हो गईं और फिर लोगों ने इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.
फोटोग्राफ की कहानी एक अमीर लड़की और गरीब लड़के की कहानी की तरह लगती है और हमने 80 और 90 के दशक में ऐसी ही कहानियों को देखा है और वे भरोसा करने लायक नहीं लगते हैं. क्या फोटोग्राफ में एक अलग नजरिया है?
वे अलग लोग हैं. लड़का गरीब नहीं है. उसके कपड़ों को देखिए और उसके पास एक महंगा कैमरा है और वह अच्छा खाना खाता है. वे अलग-अलग लोग हैं, अलग-अलग मानसिकताएं हैं, अलग परम्पराएं, संस्कृतियां और धर्म हैं. वे अलग-अलग दुनिया से आते हैं. सान्या द्वारा निभाई गई ‘मिलोनी’ के किरदार की अपनी एक अलग दुनिया है, जिसे वह अपने साथ लेकर चलती है. पुरुष किरदार के पास फिल्म में अपनी अलग दुनिया है और तब क्या होता है जब ये दोनों लोग मिलते हैं.
सान्या ने कहा है कि वह बहुत नर्वस थीं क्योंकि वह एक न्यूकमर हैं और आप एक शानदार एक्टर हैं. तो आपने यह कैसे सुनिश्चित किया कि कोई नर्वस न हो या डरे नहीं?
जब मैं उसके साथ एक्टिंग कर रहा था, तो मैं वाकई में इस बारे में सोच रहा था कि कैसे सीन को सही किया जाए, क्योंकि मैं खुद बहुत नर्वस था. पहले ही दिन मुझे लगा कि वह एक बहुत ही गिफ्टेड एक्टर हैं और उसमें वो कूलनेस और ठहराव है जो अविश्वसनीय है. वह मल्टी-टैलेंटेड हैं. वह एक डांसर भी हैं. आप उसे एक न्यूकमर नहीं बता सकते, वह एक अनुभवी कलाकार की तरह लगती हैं. मैंने उसे यह नहीं बताया कि उसके पास सभी खासियत मौजूद है. उसके अंदर एक जुनून है जो बहुत परिपक्वता के बाद आता है. मैंने ‘दंगल’ देखी थी और मुझे लगा कि वह उस फिल्म में बहुत ईमानदार और सच्ची थीं.
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