दूर एग्जाम सेंटर, यातायात की अव्यवस्था, बढ़ते कोरोना के मामले, महामारी का तनाव कुछ कारण हैं NEET और JEE की परीक्षा के विरोध के. लाखों छात्रों ने इस विरोध के लिए सोशल मीडिया से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया.
सोशल मीडिया पर फैले गुस्से के बीच छात्रों के पास एग्जाम देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा. लेकिन हर कोशिश करने के बाद भी हम तीन छात्र 13 सितंबर को हुए NEET एग्जाम में नहीं बैठ पाए.
एग्जाम 2 बजे शुरू हुआ और शाम 5 बजे तक चला. उन तीन घंटों में हम बस घर पर बैठ कर पछताते रह गए. हम वैसे तो देश के तीन अलग अलग हिस्सों में रहते हैं, लेकिन हमारी कहानी एक ही है: पूरे साल मेहनत करने के बाद भी सिर्फ हालातों के वजह से परीक्षा नहीं दे पाना.
मैं उत्तर प्रदेश से हूं लेकिन मेरा NEET का सेंटर असम गुवाहाटी दिया गया. 10 सितंबर को मैं अजय कुमार वाराणसी से गुवाहाटी तक की फ्लाइट से गुवाहाटी पहुंचा. लेकिन एयरपोर्ट पर पहुंचते ही मुझे क्वारंटीन सेंटर ले जाकर कहा गया कि अगर मैं अगले 24 घंटे में गुवाहाटी से वापस नहीं जाता तो मुझे 10 दिन के लिए क्वारंटीन रहना होगा.
मुझे असम के क्वारंटीन की व्यवस्था के बारे में कोई अंदाजा नहीं था. मैंने अपना एड्मिट कार्ड दिखाया लेकिन उन्होंने कहा कि 72 घंटे होते ही मुझे क्वारंटीन कर दिया जाएगा. और तब ना मैं परीक्षा दे पाउंगा, ना ही वापस घर लौट पाउंगा. उनका कहना था कि वो MHA की गाइडलाइन्स फॉलो कर रहे हैं. और उन्हें NEET के लिए कोई अलग गाइडलाइन नहीं दी गई.
मैंने CM, MP, MLA सबको कॉल करके मदद मांगी. लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ. मैंने तीन गुना पैसे देकर अपनी वापसी की टिकट करवाई और वाराणसी वापस आ गया.
यातायात की समस्या
मध्यप्रदेश के सतना के राजदीप त्रिपाठी की समस्या भी कुछ ऐसी ही है. उन्हें अपने सेंटर तक पहुंचने का कोई साधन ही नहीं मिला.
मैंने मध्यप्रदेश सरकार की फ्री ट्रांसपोर्ट सर्विस के लिए भी रजिस्टर किया था. लेकिन उनका कहना था कि मुझे मेरे ब्लॉक अपने गांव से आना होगा, उसके बाद ही मुझे सुविधा मिल सकती है. वो भी 13 सितंबर को ही सुबह 4.30 बजे. लेकिन वो दूरी भी 35 किमी थी. मैं नहीं जा पाया.
राजदीप आगे बताते हैं कि,
मेरी तैयारी पूरी थी. मेरे पास एड्मिट कार्ड था. बस हालात ऐसे हो गए कि मैं कुछ नहीं कर पाया. सरकार को पहले से व्यवस्था ऐसी रखनी थी कि सभी छात्रों को बराबर मौके मिलें. मेरे गांव से 35 किमी जाने का भी साधन नहीं था. और मेरी परीक्षा छूट गई.
लक्षण वाले छात्रों का क्या हुआ?
NTA के नियमों के मुताबिक, लक्षण वाले छात्रों को खाली कमरे में परीक्षा देने की इजाजत है. लेकिन एक छात्रा को ऐसा कोई मौका नहीं दिया गया. सेंटर में सुबह 9 बजे से पहुंचने के बाद भी उसे परीक्षा नहीं देने दी गई. उसे कहा गया कि बाकी छात्रों के लिए ये खतरा हो सकता है.
सेंटर हेड ने मुझे सिटी कॉर्डिनेटर का नंबर दिया, उनसे बात करने पर उन्होंने कहा कि लक्षण होने की वजह से मुझे परीक्षा में नहीं बैठने दिया जाएगा.
सिटी कॉर्डिनेटर ने ये भी कहा कि NTA दोबारा परीक्षा करवाने का आदेश भी लाएगी. इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो क्या होगा? शिक्षा मंत्री डॉ पोखरियाल का कहना है कि 85-90 फीसदी छात्रों ने परीक्षा दी है. लेकिन हम जैसे जो बच्चे परीक्षा नहीं दे पाए उनका क्या होगा?
हम तीनों को एक साल दोबारा तैयारियां करनी होंगी. हमें विश्वास है कि हमारे जैसे और भी बहुत लोग हैं. हम चाहते हैं कि हमारी परेशानियां भी सुनी जाएं, हमें दूसरा मौका मिले.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)