वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
कोरोना वायरस की दूसरी लहर (Coronavirus Second Wave) के कारण आगरा (Agra) में दशकों से जूता बना रहे लोगों की जिंदगी थम से गई है. COVID-19 के चलते देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से जूता व्यवसाय पर काफी असर पड़ा है, जूता बनाने वालों मजदूरों में से किसी के पास काम नहीं है.
द क्विंट ने आगरा के गांव नरिपुरा में जाकर जूता बनाने वालों मजदूरों और उनके परिवार से मुलाकात कर जानने की कोशिश की है कि लॉकडाउन के दौरान ये मजदूर अपनी दिनचर्या कैसे चला रहे हैं.
‘जरूरी खर्च के लिए जमा पूंजी भी नहीं बची’
47 साल के अजीत कुमार 25 साल से जूते बनाने का काम कर रहे हैं, लेकिन लगातार दो साल में लगे लॉकडाउन के कारण उनकी जमा पूंजी भी खत्म हो चुकी है. वो कहते हैं-
2020 में हमारे पास जरूरी सामानों के लिए जमा पूंजी थी, लॉकडाउन की शुरुआत में भी ठीक ठाक काम चल रहा था. लेकिन इस बार कुछ भी नहीं बचा है, कारखाना चलाने वालों के पास ही पैसा नहीं है तो हमें वो कैसे देंगे?
अजीत की नौकरी जाने के बाद उनके परिवार के सभी सदस्य मुश्किल से अपना गुजारा कर रहे हैं. अजित की बेटी तनु को इस बार अपना स्कूल भी छोड़ना पड़ा, क्योंकि उसकी उनके पास फीस, इंटरनेट, और स्मार्टफोन तक के पैसे नहीं है.
मैं हमेशा से टीचर बनना चाहती थी, लेकिन अब स्कूल ही नहीं है तो कैसे टीचर बनूंगी. सभी ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन हमारे पास पढ़ाई के लिए पैसे ही नहीं हैं.तनु, अजीत कुमार की बेटी
‘हमें कोरोना से डर नहीं लगता’
ब्रिजेश और उनकी पति दूरकेश ने अपने घर में शौचालय बनाने के लिए पैसे बचाए थे, लेकिन कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बाद दोनो की नौकरी चली गई और शौचालय के लिए बचाए गए पैसों से घर की जरूरतें पूरी हो रही है. वो कहते हैं- ‘ हमें लगता है कोरोना बाद में हमें मारेगा पहले भूख से मर जाएंगे’
हमें कोरोना से डर नहीं लगता है, कोरोना क्या ही कर लेगा जब हमारे पास खाने तक के पैसे नहीं हैं. हम कोरोना से पहले भूख से मर जाएंगेब्रिजेश कुमार, जूता बनाने वाले कारीगर
अजित और ब्रिजेश अपनी परेशानियां बताते हुए कहते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार ने हम जैसे लोगों के लिए कोई काम, कोई मदद नहीं की. ‘उत्तर प्रदेश का हर नेता बंगाल चुनाव में व्यस्त था, यहां किसी ने ध्यान नहीं दिया कि कोरोना से लोगों को क्या कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.’
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