उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ (Azamgarh, UP) के पलिया में 29 जून को दलित प्रधान और उसके आसपास के घरों को तोड़ दिया गया था. तोड़फोड़ का आरोप पुलिस पर है. दलित विचारक चंद्र भान प्रसाद (Chandra Bhan Prasad) इसे 'बैटल ऑफ पलिया' का नाम देते हैं.
मैं वर्षों से दलितों के विकास के जुड़े विषयों पर काम कर रहा था, दलितों के खिलाफ हिंसा पर फोकस नहीं कर रहा था, लेकिन 'बैटल ऑफ पलिया' ने मुझे सोचने पर मजबूर कियाचंद्र भान प्रसाद, दलित विचारक
चंद्रभान के मुताबिक-''ये 'बैटल ऑफ पलिया' अंबेडकरवाद और मनुवाद के बीच इसलिए है क्योंकि पुलिस का झगड़ा गांव के प्रधान के साथ था. लेकिन हमला श्याम देव बक्शी के घर पर हुआ. बक्शी वो शख्स हैं जो दलित परिवार में पैदा हुए और धीरे-धीरे खुद की मेहनत से मनुवादियों द्वारा जितनी भी चीजें दलितों के लिए मना हैं, उसे हासिल किया.
बक्शी के परिवार के पास सब कुछ है जो 10 मनुवादी जमींदारों के पास नहीं होगा. ये परिवार उत्तर प्रदेश के दलितों में जाना-माना परिवार है. बक्शी जब चलते थे तो उनके पीछे लोग चलते थे. पिछले साल बक्शी का निधन हो चुका है.''
बक्शी यहां के मनुवादियों के लिए लॉर्ड रॉबर्ट क्लाइव हैं. उनके सामने बड़े-बड़े जमींदार सलामी करते थे. बक्शी का ये रुतबा मनुवादियों को रास नहीं आया इसलिए ये हमला हुआ. पुलिस अपनी रेड में क्या मरे हुए शख्स की तस्वीर तोड़ती है? बक्शी के पोते के तस्वीर को काट दिया. क्या पुलिस एक्शन ऐसा होता है?चंद्र भान प्रसाद, दलित विचारक
चंद्रभान का सवाल है कि प्रधान जी से झगड़ा हुआ तो प्रधान जी से लड़ना चाहिए. बक्शी पर क्यों आकर हमला करते हैं? सामान्य स्थिति में कोई दलित किसी पुलिसवाले को थप्पड़ मारेगा? बुद्धिजीवी और राजनीतिक विचारक को आकर यहां देखना चाहिए कि जाति युद्ध क्या होता है?
आपको बता दें कि इस घटना में गांववालों ने पुलिस पर तोड़फोड़, बदसलूकी और लूटपाट के आरोप लगाए हैं, लेकिन पुलिस ने इन तमाम आरोपों से इनकार किया है.
चंद्रभान प्रसाद दलित विचारक, एक्टिविस्ट और उद्यमी हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया में विजिटिंग स्कॉलर रह चुके हैं. पलिया में हुए हमले के बाद चंद्रभान खुद पलिया पहुंचे, जहां उन्होंने ये वीडियो रिकॉर्ड किया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)