बिहार (Bihar) में ठंड भले ही कम नहीं हुई है, लेकिन सियासी गर्मी जरूरी बढ़ गई है. नई सरकार को अभी शपथ लिए 10 दिन ही गुजरे हैं कि सहयोगियों ने आंख दिखाना शुरू कर दिया है. कोई रोटी और पेट की बात कर रहा तो कोई सीटों को लेकर दबाव बना रहा है. इन सबके बीच, 12 फरवरी को बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट है, लेकिन इससे पहले ही 'दबाव' की सियासत शुरू हो गई है. NDA में क्या है विवाद की वजह और क्या है इसके मायने आइये बताते हैं.
बिहार में 10 दिन पहले क्या हुआ?
बिहार में 28 जनवरी को एक बार फिर पुराने दोस्त जेडीयू और बीजेपी एक साथ आ गये. जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार एक बार फिर "यू टर्न" लेते हुए आरजेडी और महागठबंधन से अलग हो गये और एनडीए में शामिल होकर बीजेपी और 'हम' के साथ मिलकर सरकार बना ली. नई सरकार में जेडीयू के चार (एक सीएम, तीन मंत्री), बीजेपी के तीन ( दो डिप्टी सीएम और एक मंत्री, एचएएम के एक और एक निर्दलीय सहित कुल 9 लोगों ने मंत्री पद की शपथ ली और सभी को विभाग भी सौंप दिए गए.
NDA में क्यों शुरू हई 'दबाव' की पॉलिटिक्स?
दरअसल, मंत्रियों के विभागों के आवंटन के बाद से ही विवाद की शुरुआत हो गई. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संरक्षक जीतनराम मांझी ने मांग की कि उन्हें सरकार में एक और मंत्री पद दिया जाए.
मांझी ने कहा कि ये घर की बात है, हमको एक रोटी से पेट नहीं भरता है, हम अपने नेता से दो-तीन रोटी की मांग करते हैं.
कम से कम दो रोटी दीजिए, क्योंकि हम गरीब की राजनीति करते हैं इसलिए ऐसा विभाग मिले की हम अपने ग्रामीण क्षेत्र में काम कर सकें. हमने अपने नेता के सामने यह मांग रखी है. अब देना ना देना उनके ऊपर है, ये भी सोच लीजिए की ना भी देंगे तो हम कोई अप्रिय बात नहीं कहेंगे.जीतनराम मांझी, संरक्षक, हम
पूर्व सीएम ने बताया कि हम दो मंत्री पद की मांग कर रहे हैं. यह मांग हम अपने घर में अपने लोगों से कर रहे हैं ना कि बाहरी लोगों से कर रहे हैं. हमने स्पष्ट रूप से पहले भी कहा है कि जो विभाग मुझे मिलता आया है वहीं विभाग मेरे बेटे को भी मिला है, यह सही नहीं है.
मांझी के बयान से साफ है कि वो एक और मंत्री पद की चाहत रखे हुए हैं साथ ही बेटे को मिले SC-ST विभाग से भी नाखुश हैं.
इस बीच, मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन ने सोमवार (5 फरवरी) को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात भी की. लेकिन दोनों के बीच क्या बात हुई इसकी अभी तक कोई जानकारी सामने नहीं आई है.
वहीं, मांझी की समधन और बाराचट्टी से विधायक ज्योति यादव ने भी मंत्री बनने की इच्छा जताई है. ज्योति ने कहा, "बिजेंदर यादव, विजय चौधरी और श्रवण कुमार जैसे नेता सालों से चुंबक की तरह मंत्री पद से चिपके हुए हैं और नए लोगों को मौका नहीं दिया जा रहा है जो कि तीन बार या चार बार चुन कर आए हैं. यही लोग मंत्री बने रहेंगे तो नए नेता कब सीखेंगे?"
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी जिस भी गठबंधन में रहे हैं, उनकी पहचान दबाव की राजनीति करने की रही है.
इधर, लोकसभा चुनाव को लेकर एनडीए में अभी सीट बंटवारा भी नहीं हुआ है लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार की 11 लोकसभा सीटों पर अपने प्रभारियों के नाम की घोषणा कर दी है.
पार्टी ने हाजीपुर, जमुई, खगड़िया, समस्तीपुर, वैशाली, नवादा, गोपालगंज, सीतामढ़ी, वाल्मीकिनगर, जहानाबाद और बेगूसराय में प्रभारियों की नियुक्ति की है.
माना जा रहा है कि एलजेपी (रामविलास) ने इन सीटों पर दावेदारी ठोक दी है. इसमें दिलचस्प बात यह है कि चिराग की पार्टी ने जिन सीटों पर प्रभारियों की घोषणा की है, उसमें जुमई को छोड़कर सभी सीटों पर बीजेपी, जेडीयू और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद हैं. जबकि हाजीपुर से चिराग के चाचा पशुपति पारस खुद सांसद हैं.
नवादा, खगड़िया, वैशाली, समस्तीपुर और हाजीपुर RLJP के पास है, जमुई से चिराग खुद सांसद हैं जबकि गोपालगंज, सीतामढ़ी, वाल्मीकिनगर, जहानाबाद से जेडीयू के सांसद है सिर्फ बेगूसराय से बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह एमपी हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चिराग गठबंधन में इन सीटों को लोजपा (रामविलास) के लिए मांग कर सकते हैं. 2019 में अविभाजित लोजपा को खाते में 6 सीट और एक राज्यसभा आया था, जिसमें उनके पिता रामविलास राज्यसभा गए थे. लेकिन अब तक पार्टी में टूट हो चुकी है तो चिराग उन सीटों के साथ जेडीयू की सीटों पर भी दावा ठोंकना चाहते हैं.
वहीं. अब चिराग के फैसले को दो तरह से देखा जा रहा है. एक तो उन्होंने एनडीए में सीटों के ऐलान से पहले बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी तो दूसरी तरफ एलजेपी नेता ने एक को छोड़कर उन्हीं सीटों पर प्रभारी घोषित किये जहां से या तो उनके चाचा की पार्टी RLJP के या फिर नीतीश की पार्टी JDU के सांसद हैं.
मतलब चिराग ने यहां भी 2020 वाला गेम खेलने की कोशिश की है, जहां विधानसभा चुनाव में करीब 41 सीटों पर लोजपा के प्रत्याशी उतरने से जदयू को नुकसान उठाना पड़ा था और इसका जिक्र खुद नीतीश कुमार ने कई बार सार्वजनिक तौर पर किया.
नीतीश कुमार के 2022 में बीजेपी से गठबंधन तोड़ने की एक वजह चिराग भी रहे थे और इस बार भी जब वो एनडीए में आ रहे थे, तब भी ये चर्चा थी कि चिराग गठबंधन से बाहर हो सकते हैं लेकिन अब तक ऐसा हुआ नहीं है.
हालांकि, बिहार में नई सरकार के शपथ ग्रहण में चिराग शामिल तो हुए थे लेकिन उन्होंने ये भी कहा था कि नीतीश कुमार से उनके वैचारिक मतभेद जारी रहेंगे लेकिन अगर वो (सीएम) उनके "बिहार फर्स्ट, बिहार फर्स्ट" के विजन पर चलते हैं तो फिर विवाद खत्म हो सकता है. जबकि चाचा पशुपति पारस से चिराग का विवाद जगजाहिर है.
चिराग लंबे समय से कह रहे हैं कि इस बार हाजीपुर से वो लड़ेंगे क्योंकि ये उनके पिता रामविलास की सीट हैं जबकि, पारस ने भी कई बार कहा है कि चाहे कुछ भी हो जाए वो हाजीपुर की सेवा आजीवन करते रहेंगे.
HAM और LJP(R) के बीच विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने भी बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी है. पूर्व मंत्री और VIP सुप्रीमो मुकेश सहनी लंबे समय से राज्य का दौरा कर चुनाव प्रचार कर रहे हैं. उनकी मांग है कि "केंद्र सरकार निषाद समाज को आरक्षण दें".
मुकेश सहनी ने पिछले दिनों कहा कि वीआईपी पूरे बिहार में चुनाव लड़ेगी लेकिन गठबंधन में, वो एनडीए होगा या महागठबंधन इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया, पर इतना जरूर कहा कि जो निषाद समाज को आरक्षण देगा हम उसके साथ जाएंगे.
सहनी ने जीतनराम मांझी को बिहार का सीएम बनाने तक की मांग कर डाली और कहा कि एक दलित समाज के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए और वो अनुभवी भी हैं. बता दें कि मुकेश सहनी को पिछले मार्च में केंद्र सरकार ने Y+ सुरक्षा अलॉट की थी, जिसके बाद से चर्चा थी कि वो एनडीए में शामिल हो गये हैं लेकिन अभी उनके मौजूदा तेवर देखकर ऐसा नहीं लगता है.
हालांकि, इन सभी विवाद पर जब बिहार बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल से क्विंट हिंदी ने बात की तो उन्होंने कहा, "हम सभी का लक्ष्य है कि बिहार में एनडीए कैसे 40 सीटें जीते. सभी पार्टियों को अधिक सीटों पर लड़ने का हक है. ऐसे में सब अपनी तैयारी में जुटे हैं. हमारा ध्यान इस बात पर है कि सभी सीटों पर मजबूत प्रत्याशी उतारे जाएं, लेकिन एनडीए में सीटों को लेकर कोई मतभेद नहीं है, हम मिल बैठकर बहुत ही सौहार्दपूर्ण वातावरण में सीटों का निर्णय कर लेंगे और एनडीए को भारी जीत दिलाएंगे."
वहीं, बिहार जेडीयू के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "किसके खाते में कौन सी सीट आएगी ये टॉप लीडरशिप के बीच बात होने के बाद तय हो जाएगा, गठबंधन में सब 'ऑल इज वेल' है."
बिहार में कैसा है NDA का स्वरूप?
बिहार में एनडीए में बीजेपी+जेडीयू+आरएलजेपी(पशुपति गुट)+एलजेपी (चिराग गुट)+उपेंद्र कुशवाहा की आरएलजेडी और जीतन मांझी की एचएएम समेत 6 पार्टियां हैं. इसमें मुकेश सहनी की वीआईपी के भी शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है.
NDA की बिहार में कितनी ताकत?
बिहार में एनडीए में शामिल बीजेपी, जेडीयू और हम को छोड़कर किसी के पास भी कोई विधायक नहीं है. बीजेपी 78, जेडीयू 45 और एचएएम के चार विधायक हैं. जबकि लोकसभा में बीजेपी 17, जेडीयू 16, चिराग गुट एक और पारस गुट के पांच सांसद हैं. राज्य में कुल 40 सीट है जिसमें से एक किशनगंज से कांग्रेस के मोहम्मद जावेद सांसद हैं.
वहीं, विधानसभा और लोकसभा दोनों में उपेंद्र कुशवाहा और सहनी के कोई सांसद विधायक नहीं हैं. हालांकि, विधानसभा चुनाव में VIP के तीन विधायक जीते थे लेकिन वो बाद में बीजेपी में शामिल हो गये थे.
12 फरवरी को विधानसभा में बहुमत परीक्षण
इधर, इन तमाम विवादों और विरोधों के बीच 12 फरवरी को नई सरकार का बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होने हैं यानी सरकार को सदन में विश्वास मत हासिल करना है. आकंड़ों के लिहाज से देखें तो 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में 122 जादूई आकंड़ा है. यानी जिसके पास मैजिकल नंबर होगा, वो विश्वास मत हासिल कर लेगा.
बीजेपी (78) और जेडीयू (45) का दावा है कि उनके पास 128 विधायकों का समर्थन हैं. इनमें एक निर्दलीय विधायक तथा 4 विधायक जीतनराम मांझी की हम पार्टी के भी शामिल हैं. जबकि विपक्ष के पास 115 विधायक मौजूद हैं. इनमें आरजेडी के पास 79 विधायक, भाकपा माले के पास 12 विधायक, कांग्रेस के पास 19 विधायक, भाकपा के 2 विधायक और AIMIM के 1 विधायक हैं.
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