वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
एक नाव पर तीन पुलिसकर्मी बैठे हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित गहमर गांव में लाउडस्पीकर की आवाजें गूंज रही हैं, और गहमर के श्मशान स्थलों में से एक - नारायण घाट के सामने नदी के किनारे दफन किए गए अज्ञात शवों के ढेर हैं.
लाउडस्पीकर के जरिए पुलिस की ओर से लोगों से कहा गया कि कोई भी व्यक्ति शव को जल में प्रवाहित न करे, या तो शव का दाह संस्कार कर दिया जाए या फिर नदी के किनारे पर दफना दिया जाए.
दशकों से नारायण घाट पर पुजारी के तौर पर काम कर रहे भूपेंद्र उपाध्याय ने बताया, “कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनकी मौत होने पर उनका दाह संस्कार नहीं किया जा सकता है. सदियों से यही रिवाज रहा है. जब संत या युवा अविवाहित मरते हैं, तो उनके शरीर को हमेशा नदी में बहा दिया जाता है. लेकिन अब यूपी प्रशासन द्वारा घाटों पर निगरानी दल तैनात करने के बाद हम भी लोगों को शव बहाने से रोक रहे हैं और मृतकों का दाह संस्कार करने का अनुरोध कर रहे हैं. अगर लोगों के पास दाह संस्कार के लिए लकड़ी के पैसे नहीं हैं, तो हम लकड़ी मुफ्त में उपलब्ध करा रहे हैं.”
गंगा में शवों के ढेर के आने से पूरे गांव में दहशत फैलने के बाद निगरानी दल तैनात किए गए हैं. नारायण घाट पर नाव चलाने वाले घनश्याम कहते हैं, “हम शवों को अक्सर तैरते हुए देखते रहते हैं लेकिन आमतौर पर वे एक या दो की संख्या में होते हैं. इस बार संख्या बहुत ज्यादा थी. हमने जिधर देखा, वहां लाशें पड़ी थीं. कुत्ते और कौवे उनको कुतर रहे थे. शव बिहार से आए होंगे, वे उत्तर प्रदेश के नहीं हो सकते.”
हालांकि श्मशान में कुछ अन्य लोगों ने बताया कि कैसे गांव के लोग “बुखार और फ्लू के लक्षणों के साथ, मक्खियों की तरह मर रहे थे.”
गहमर प्रशासन ने, उन शवों को नदी के किनारे रेत में दफना दिया है, जो वहां बहकर आ गए थे. सरकार लगातार कह रही है कि COVID-19 से संक्रमित शवों की संख्या का पता लगाने का कोई तरीका नहीं है. हालांकि उनमें से अधिकांश को महामारी प्रोटोकॉल का पालन किए बिना नदी किनारे दफन कर दिया गया है.
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