ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या है ऑक्सीजन का मुंबई मॉडल, जिसकी SC ने की तारीफ?

मुंबई को कहां से मिलती है ऑक्सीजन सप्लाई?

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

(वीडियो एडिटर - पुनीत भाटिया)

दिल्ली में ऑक्सीजन की किल्लत अब एक राष्ट्रीय विषय बन चुका है. 15 दिन से ज्यादा गुजर गए लेकिन अस्पतालों से SOS कॉल आने बंद नहीं हो रहे. अस्पतालों में ऑक्सीजन के बिना मरीजों के मरने की खबरें रुक नहीं रहीं. इसको लेकर अदालतें बार-बार सरकार को फटकार लगा रही हैं. अब ऑक्सीजन मैनजेमेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को मुंबई से सीखने की नसीहत दी है. तो क्या है ये मुंबई मॉडल, सुप्रीम कोर्ट क्यों इस मॉडल की तारीफ कर रहा है. चलिए समझने की कोशिश करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दी जानकारी के मुताबिक 92,000 मरीजों के आकड़े पार कर चुका घनी आबादी वाला मुंबई महज 275 मेट्रिक टन ऑक्सीजन पर काम कर रहा है. ऐसे में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने दिल्ली में हो रही मौतों पर खेद जताते हुए पूछा कि फिर दिल्ली को 700 मेट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत क्यों पड़ रही है?

बीएमसी के अतिरिक्त कमिश्नर सुरेश काकानी ने क्विंट हिंदी को बताया कि, 'महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सिजन की आवश्यकता कई गुना बढ़ गई. लेकिन बीएमसी का बुनियादी ढांचा तैयार था इसीलिए वो मरीजों को आसानी से बचा पा रहे है. उनके पास 16 पेरिफेरल, 4 मेजर  हॉस्पिटल्स और 7 जंबो कोविड सेंटर्स में कुल 28 हजार बेड्स है जिसमे 12 से 13 हजार बेड ऑक्सिजनेटेड है'.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुंबई को कहां से मिलती है ऑक्सीजन सप्लाई?

ऑक्सीजन मैनजमेंट करनेवाले बीएमसी के चीफ इंजीनियर ने आगे समझाया की दूसरी लहर की शुरुआत में बढ़ते ऑक्सीजन की मांग को देखते हुए बीएमसी ने इन सभी जगहों पर ऑक्सीजन खपत का सर्वे किया. जिससे पता चला कि मुंबई में हर रोज लगभग 235 मेट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. आइनॉक्स और लिंडे जैसे निजी कंपनियों के साथ हुए अग्रीमेंट के चलते बीएमसी 130 से 275 मेट्रिक टन लिक्विड ऑक्सीजन हर रोज जरूरत अनुसार उठा सकता है. ये प्लांट महाराष्ट्र के रायगढ़, मानगाव, भिलारी सुर डोलवी जैसे इलाकों से लिक्विड ऑक्सीजन बाया रोड मुहैया करा सकते है. जाहिर है उत्पादन की जगह से नजदीकी से भी मुंबई को फायदा होता है

मुंबई ने 275 टन ऑक्सीजन में कैसे चलाया काम?

BMC के मुताबिक डॉक्टर्स की टीमो ने ऑक्सीजन इस्तेमाल के लिए प्रोटोकॉल बनाए जिससे ऑक्सीजन जाया ना हो. एक्सपर्ट्स की मदद से saturation और लिकेजेस को मॉनिटर करते हुए कम से कम इस्तेमाल करने की टेनिंग दी. जिस वजह से मुंबई में 90 हजार से ज्यादा एक्टिव मरीजों के बावजूद 275 mT ऑक्सीजन में काम चल गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ऑक्सीजन मॉडल को रिफिल से स्टोरेज मोड़ पर कैसे किया कन्वर्ट?

शुरू में बीएमसी ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए नियमित सिलेंडर पर निर्भर थी, जिसे हर दिन रिफिल किया जाता था, जो कठिन प्रक्रिया थी. पहली लहर में अधिकारियों को एहसास हुआ कि ये सिस्टम लंबे समय तक नही चल सकेगा. इसीलिए, 10 गुना अधिक क्षमता वाले जंबो सिलेंडरों का इस्तेमाल शुरू कर दिया. इस तरह बीएमसी ने 13 हजार किलो लीटर की क्षमता वाला लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन टैंक स्थापित किए.

इससे ये फायदा हुआ कि जिस सुविधा में अधिक बेड्स थे वहां दो जंबो सिलेंडर लगाए गए जो 2 से 3 दिनों के लिए सभी बेड्स के लिए पर्याप्त होता. हालांकि तब सिर्फ 10-20% ऑक्सीजन उपयोग में था. अब व्यवहारिक रूप से हर अस्पताल रिफिलिंग मोड़ से स्टोरेज - सप्लाई मोड़ में कन्वर्ट हो गया है.

इसके अलावा बीएमसी ने पुराने सिलेंडरों को स्क्रैप नहीं किया और उन्हें रिज़र्व में रखा है. ऑक्सीजन की कमी होने पर वो तुरंत नियमित सिलेंडर में शिफ्ट होकर अगले 1 से 2 दिनों तक ऑक्सीजन सप्लाई चला सकते है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×