वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
2.7 मिलियन अफगानी रिफ्यूजी (Afghani Refugees) की तरह रह रहे हैं और ये दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी रिफ्यूजी आबादी है. अफगानिस्तान के लोगों के लिए उनका घर इतना अशांत हो चुका है कि अफगानिस्तान ने सीरिया को ग्लोबल पीस इंडेक्स में पीछे छोड़ दिया है
दूसरे शब्दों में कहें तो अफगानिस्तान सबसे ज्यादा हिंसक देश बन चुका है. 2019 में 40,000 रिफ्यूजी भारत आए, और उनमें लगभग 27% अफगानी थे. 11 हजार रजिस्टर्ड अफगानी रिफ्यूजी भारत में रह रहे हैं. इनमें जो रजिस्टर्ड नहीं हैं और जो आसरा ढूंढ रहे हैं, अगर उन्हें शामिल करें तो ये आंकड़ा काफी बड़ा है इनमें से कई रिफ्यूजी दिल्ली में बसे हैं.
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यहां कई अफगानी अपनी दुकान और रेस्तरां चलाते हैं. दिल्ली में आकर अफगानियों के बसने की कहानी 1979 से चली आ रही है. भारत सरकार तब अफगानियों को रिफ्यूजी मानना नहीं चाहती थी और आज भी कुछ नहीं बदला.
दिसंबर 2016 में जमारई कादरी अपने परिवार के साथ कंधार से भारत आए. UNHCR भारत ने उनकी अर्जी खारिज कर दी. उनका कहना था कि जमारई कादरी और उनके परिवार को अफगानिस्तान में कोई खतरा नहीं है. रिफ्यूजी कार्ड की भी अवधि समाप्त हो चुकी है. जमारई और उनका परिवार बिना आइडेंटिटी कार्ड के यहां रह रहा है. हर दिन खराब होती स्थिति को देखते हुए जमारई की पत्नी डिप्रेशन की शिकार हो गई हैं
जमारई के केस को लेकर UNHCR ने द क्विंट के सवालों का जवाब नहीं दिया.
दुनियाभर में अफगान रिफ्यूजियों की संख्या 2.45 मिलियन है, जिसमें आधे 14 साल से कम उम्र के बच्चे हैं. भारत 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन या 1967 प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं है.
भारत के पास नेशनल रिफ्यूजी प्रोटेक्शन फ्रेमवर्क नहीं है. भारत सरकार हर रिफ्यूजी ग्रुप से अलग तरीके से पेश आती है.
जफर अली अफगानिस्तान के हजारा एथनिक ग्रुप का हिस्सा हैं. मुख्य रूप से सुन्नी बहुल देश में हजारा समुदाय अल्पसंख्यक हैं. हजारा समुदाय को बरसों से प्रताड़ना और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. तालिबान और अफगान सरकार दोनों की वजह से समुदाय को परेशानी उठानी पड़ी.
2004 में हजारा समुदाय को अफगानिस्तान में नागरिकता का हक मिला, लेकिन आज भी हजारा समुदाय को उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. कभी भी तालिबान उन पर हमला कर देता है और उन्हें बंदी बना लेता है. रिफ्यूजियों की जिंदगी आसान नहीं लेकिन जफर शुक्रगुजार हैं कि वो कम से कम जिंदा तो हैं.
यूएस मिलिट्री में अपनी सेवाएं दे रहे लगभग 300 ट्रांसलेटर और उनके परिवार को मार दिया गया है. तालिबान से खतरे की वजह से कई परिवार छुप के जिंदगी गुजार रहे हैं.
ऐसी ही कहानी फैसल की है, जिन्होंने यूएस आर्मी में 7 साल ट्रांसलेटर का काम किया. तालिबान से लगातार मिल रही धमकियों के बाद फैसल ने अफगानिस्तान छोड़ने का फैसला किया लेकिन तालिबानी उनका पीछा करते हुए भारत तक आ गए. UNHCR ने फैसल के केस को लेकर द क्विंट के सवालों का जवाब अब तक नहीं दिया है. रिफ्यूजियों को लेकर भारत में औपचारिक कानूनी ढांचे की कमी की वजह से अनौपचारिक नीति का ही पालन होता है
निसार अहमद शेर्जाई व्यापारी, अफगानी रिफ्यूजी और सिविल राइट्स एक्टिविस्ट निसार भारत में 2016 से रह रहे हैं. निसार के एक बेटे को तालिबान ने अगवा कर लिया और दूसरे को बुरी तरह पीटा, क्योंकि उन्होंने अपने फर्निचर ट्रक में हथियार और गोला-बारूद पाकिस्तान से अफगानिस्तान ले जाने से इनकार कर दिया था, निसार का केस भी UNHCR में पेंडिंग है.
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