रेडियो पर हम आवाज तो बचपन से सुनते आ रहे हैं, लेकिन आपने कभी सोचा है कि जिस जगह ये आवाज रिकॉर्ड की जाती है, वो रेडियो स्टेशन या सामुदायिक रेडियो काम कैसे करता है? दिखता कैसा है? इसके अंदर क्या-क्या चीजें होती हैं? नहीं देखा! कोई बात नहीं, हम आपको सब बताते हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) के राम लाल आनंद कॉलेज (Ram Lal Anand College) में नया कम्युनिटी रेडियो खुला है. खास बात ये है कि DU के तहत 90 से ज्यादा कॉलेज आते हैं, लेकिन ये किसी भी कॉलेज का पहला सामुदायिक रेडियो है. तो ये कैसा दिखता है? क्या है इसके आने की कहानी? ये कैसे काम करता है? सब कुछ समझते हैं.
क्या है इसके कॉलेज में आने की कहानी?
ये सवाल तो आपके भी मन में होगा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में इतने सारे कॉलेज हैं तो यहीं क्यों सामुदायिक रेडियो आया? दरअसल यहां एक हिंदी पत्रकारिता विभाग चलता है, जहां बच्चे पत्रकारिता की पढ़ाई करते हैं. बच्चे रेडियो के बारे में कोर्स में पढ़ते तो थे, लेकिन प्रैक्टिकल नहीं कर पाते थे. इसलिए विभाग किसी तरह एक सामुदायिक रेडियो लाने की कोशिशों में जुटा था. लेकिन हुआ यूं कि
प्रिंसिपल राकेश कुमार गुप्ता राजस्थान में एक रेडियो कार्यक्रम में एक्सपर्ट के तौर पर बैठे थे वहीं से उन्हें आईडिया आया कि ऐसा ही कोई रेडियो स्टेशन अपने कॉलेज में भी होना चाहिए.
वे वहां से लौटे तो प्रिंसिपल का आईडिया और विभाग की जरूरत दोनों का मेल हो गया, फिर इसको लाने की प्रक्रिया शुरू हुई. विभाग के संयोजक प्रोफेसर राकेश कुमार बताते हैं,
"हमने पहली बार फॉर्म ही गलत भर दिया था जो रिजेक्ट हो गया, फिर एक्सपर्ट्स से पूछकर दोबारा फॉर्म भरा गया. मंत्रालय से इसके लिए इजाजत मिली तो बजट का प्रस्ताव पास करवाया गया. हमारे एरिया में 90.0 FM के नाम से फ्रीक्वेंसी भी मिल गई जो आम तौर पर मुश्किल है. इस पूरे प्रोजेक्ट में 60 लाख रुपये खर्च हुए."प्रोफेसर राकेश कुमार, संयोजक, BJMC, RLA
कैसे काम करता है ये कम्युनिटी रेडियो?
इस कम्युनिटी रेडियो में 4 कमरे हैं. लाइव रूम, रिकॉर्डिंग रूम, साउंड एडिटिंग रूम और मॉनिटरिंग रूम. लाइव में जो बोला जा रहा है वो साथ के साथ ऑन-एयर हो जाता है. यहां सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं. चूंकि इसकी फ्रीक्वेंसी 20 किलोमीटर तक ही है इसलिए इसे इतने ही एरिया में सुना जा सकता है.
प्रोडक्शन असिस्टेंट फरजीन सुल्तान बताती हैं कि "यदि 20 किलोमीटर के रेडियस में कोई भी व्यक्ति इसे सुनना चाहता है तो वह सीधे 90.0 FM पर जाकर रेडियो तरंग सुन सकता है".
कुछ समय में इसका ऐप लॉन्च करने की भी तैयारी है जिसके बाद इसके रिकॉर्डिड शो भी सुने जा सकते हैं. बच्चों को उम्मीद है कि ऐप आने के बाद उनके कार्यक्रम देश-दुनिया तक पहुंचेंगे.
बच्चे ही नहीं टीचर भी ला रहे हैं अपना शो
इसकी एक और खास बात ये है कि बच्चे ही नहीं टीचर भी अपना शो लेकर आ रहे हैं. डॉ. प्रदीप कुमार ट्रैवल से जुड़े शो के जरिए अलग-अलग जगहों की संस्कृति और खान-पान पर चर्चा करते हैं. इसके अलावा कोई विज्ञान का शो ला रहा है तो कोई टीचर किताबों पर चर्चा कर रहा है.
डॉ. अटल तिवारी ने बताया कि वे मीडिया पाठशाला के नाम से एक कार्यक्रम कर रहे हैं, जिसमें वे पत्रकारिता से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों पर बात करते हैं.
आगे के लिए क्या? और कितनी चुनौती?
प्रोफेसर राकेश कुमार ने बताया कि इस कम्युनिटी रेडियो को यूनिवर्सिटी के हर छात्र के लिए उपलब्ध कराने की तैयारी है, ताकि बाकी कॉलेजों के छात्र भी इसका लाभ उठा सकें और उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मंच मिल सके.
इसके अलावा पत्रकारिता की पढाई कर रहे छात्रों के भविष्य के लिहाज से भी ये काफी अहम है. कॉलेज ने कई संस्थानों के साथ समझौता हस्ताक्षर किया है, जिससे भविष्य में छात्र इन जगहों पर जाकर काम भी कर सके. हालांकि विभाग के सामने इसे चलाना भी एक चुनौती है.
पहली बार 2007 में दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपना कम्युनिटी रेडियो 'DUCR' शुरू किया था, लेकिन वो अब बंद हो चुका है.
ऐसे में कब तक छात्रों की रूची बनी रहेगी और कब तक ये इसी गति से जारी रहेगा इसपर भी प्रश्न है. इसके अलावा छात्र अपनी कक्षाओं के साथ-साथ यहां के कार्यक्रम कैसे करेंगे ये भी एक मुश्किल सवाल है, क्योंकि एक साधारण शो बनाने में भी रिसर्च, स्क्रिप्टिंग, रिकॉर्डिंग और एडिटिंग में ठीक-ठाक समय लग जाता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)