छत्तीसगढ़ (Chattisgarh) के दूधाधारी मंदिर के महंत ने 25 सितंबर को रायपुर (Raipur) में आयोजित 'धर्म संसद' में महात्मा गांधी के खिलाफ संत कालीचरण की अपमानजनक टिप्पणियों से खुद को अलग कर लिया था.
क्विंट ने इस धर्म संसद से खुद को अलग करने वाले महंत रामसुंदर दास से बातचीत की और जानने की कोशिश की रायपुर में आयोजित इस धर्म संसद में क्या हुआ था.
जो हुआ उसका अफसोस - संत रामसुंदर दास
संत रामसुंदर दास ने महंत कालीचरण दास द्वारा महात्मा गांधी के बारे में की गयी टिपण्णी की निंदा की. धर्म संसद के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि यह दो दिवसीय धर्म संसद 25 और 26 दिसम्बर को आयोजित हुई. पहले दिन कलश यात्रा जैसे कार्यक्रम हुए.
दूसरे दिन सभी प्रवक्ताओं को हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति पर बोलने के लिए कहा गया था. लेकिन संत कालीचरण जी ने महात्मा गांधी के ऊपर अभ्रद और अपत्तिजनक टिप्पणियां की जो सही नहीं लगा और मैंने इसका विरोध किया. इसलिए मेरे बोलने का समय आने पर मैंने खुद को उस धर्म संसद से अलग कर लिया.
जब संत रामसुंदर दास से पूछा गया कि यह घटना सनातन को कैसे प्रभावित करेगी तो उन्होंने कहा कि सनानत धर्म की जड़ें काफी मजबूत हैं. और अगर कोई साधु संत के भेष में है तो उसे इसका ध्यान रखना चाहिए. साधु संत मार्गदर्शक का काम करते हैं अगर किसी से गलती से कोई गलत बात निकल गई, कोई चूक हो गई तो उसे स्वीकार करना चाहिए.
संत रामसुंदर दास ने रायपुर में आयोजित हुई धर्म संसद को हरिद्वार और दिल्ली में हुई धर्मसंसद से अलग बताया. उन्होंने कहा इस धर्म संसद का उद्देश्य सनातन पर चर्चा करना था लेकिन एकाएक इस धर्म संसद ने अलग मोड़ ले लिया जिसका हमें अफसोस है.
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