गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंशियल टेक सिटी को GIFT सिटी के तौर पर भी जाना जाता है. इसे भारत के पहले स्मार्ट सिटी और देश के पहले इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विस सेंटर (IFSC) के तौर पर जाना जाता है. लेकिन पिछले 11 साल में यहां कुछ ही बिल्डिंग बनती दिखी हैं.
ये प्रोजेक्ट - गुजरात सरकार और इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) के बीच एक जाॅइंट वेंचर के तौर पर शुरू किया गया था.
यहां भारतीय और इंटरनेशनल फाइनेंशियल कंपनियों के समूहों के साथ-साथ कमर्शियल और रेसिडेंशियल इलाके भी हैं.
800 एकड़ में फैला हुआ ये प्रोजेक्ट 2007 में शुरू हुआ. 100 से ज्यादा इमारतों के बनने की योजना थी. लेकिन अब भी यहां कुछ खास काम होते नहीं दिखाई दे रहा है. इस प्रोजेक्ट की सिर्फ यही दिक्कत नहीं है.
कई खामियां सामने आई हैं, दायर की गई है PIL
GIFT सिटी के पूर्व स्वतंत्र निदेशक, डीसी अंजारिया ने गुजरात हाईकोर्ट में GIFT सिटी और IL&FS के खिलाफ साल 2015 में एक PIL दायर की थी, जिसमें कई अनियमितताओं का हवाला दिया गया था. अब ये प्रोजेक्ट रूका हुआ है.
डीसी अंजारिया ने क्विंट से खास बातचीत में इस प्रोजेक्ट की खामियों को गिनाया.
‘IL&FS ने ‘रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल’ को नजरंदाज किया’
डीसी अंजारिया के मुताबिक, गुजरात सरकार ने IL&FS को 1 रुपये प्रति एकड़ के दर पर जमीन दी और बदले में डेवेलपमेंट के अधिकार के लिए एक भी रुपये हासिल नहीं किए.
GIFT के अपने आंकड़े बताते हैं कि जो उन्होंने डेवेलपमेंट के अधिकार बेचे हैं वो 16 मिलियन प्रति वर्ग फुट है, जो वो आमतौर पर उसे 5000 रुपये प्रति वर्ग फुट कि दर से बेचते आए हैं. इसका मतलब है कि 8,000 करोड़ रुपये. उन 8,000 रुपयों की रेवेन्यू में से करीब 25% यानी 2,000 करोड़ का जमीन से जुड़ा फायदा है जो उन्होंने नहीं चुकाया है.डीसी अंजारिया, पूर्व स्वतंत्र निदेशक, GIFT सिटी
बिना नीलामी के दिया गया कॉन्ट्रैक्ट?
PIL में ये लिखा गया है कि ये कॉन्ट्रैक्ट गुजरात इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलपमेंट एक्ट का उल्लंघन करते हैं. बिना किसी नीलामी प्रक्रिया के ये कॉन्ट्रैक्ट दिए गए हैं.
'फेयरवुड्स कंसल्टेंट्स' नाम की कंपनी को भी बिना किसी सही नीलामी प्रक्रिया के कॉन्ट्रैक्ट दिया गया. अंजारिया के मुताबिक, ये छोटी कंपनी है, जिसे ग्लोबल सिटी डेवेलपमेंट का कोई अनुभव नहीं था, और बहुत कम लोग इसे चलाते थे.
‘’एक मीटिंग में, मुझे पता चला कि उनके पास जो कुछ था, वो एक छोटा सा ऑफिस था. जो उनको IL&FS ने नोएडा दिल्ली टोल के पास दिया था. ‘’
पहले ही साल से मैं पूछ रहा था किये कॉन्ट्रैक्ट उनको कैसे दिया गया. वो भी पूरे GIFT सिटी के आर्किटेक्चरल और इंजीनियरिंग डेवेलपमेंट के लिए, जो की एक अहम कॉन्ट्रैक्ट है. जिसका मतलब है कि कम से कम 1200 से 1500 करोड़ का भुगतान होना. ऐसे किसी भी कॉन्ट्रैक्ट के लिए नीलामी तो होती ही है. बाद में पता चला कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था.डीसी अंजारिया, पूर्व स्वतंत्र निदेशक, GIFT सिटी
अंजारिया कहते हैं कि ये तो खामियां थी हीं, संयोग से IL&FS ने भी बिना नीलाम के कॉन्ट्रैक्ट अपने नाम कर लिया.
इसे कैसे सही किया जाए और इसका रास्ता क्या है?
डीसी अंजारिया का मानना है कि इसे सही करने का एक रास्ता ये है कि सरकार ये GIFT प्रोजेक्ट IL&FS से ले लिया जाए.
मैं इसका समर्थन करता हूं कि ये सरकारी प्रोजेक्ट होना चाहिए क्योंकि IL&FS का नाम अपने आप में एक बाधा है और उनके सभी अनियमितताओं को सुधारना चाहिए.डीसी अंजारिया, पूर्व स्वतंत्र निदेशक, GIFT सिटी
क्विंट ने गिफ्ट सिटी के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय पांडेय और IL&FS ग्रुप के चीफ कम्युनिकेशन ऑफिसर से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कुछ भी कहने से फिलहाल इनकार कर दिया.
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