गुजरात में मेहसाणा के वरवाड़ा गांव में एक छोटे से दो कमरों के घर में कुछ औरतें सुशीलाबेन सोलंकी को सांत्वना देने की कोशिश कर रही हैं.
सुशीलाबेन ने जातिवादी जहर की वजह से अपना बेटा खो दिया है. दरअसल, सुशीला बेन का बेटा हरेश सोलंकी अपनी पत्नी उर्मिला को लाने अहमदाबाद के वरमोर गांव गया था. लेकिन बहू लाने के बजाय बेटे का शव लौटा.
सुशीलाबेन कहती हैं “मुझे पैसे नहीं चाहिए. इससे मेरा बेटा वापस आएगा क्या? नहीं आएगा, आप समझ सकते हैं. कोई भी मेरा बेटा वापस नहीं ला सकता.”
गुजरात के अहमदाबाद में पत्नी उर्मिला के परिजनों ने हरेश की बेरहमी से हत्या कर दी.
उर्मिला का परिवार दोनों की शादी के विरोध में था. दोनों ने आठ महीने पहले एक स्थानीय अदालत में शादी कर ली थी.
क्योंकि, हरेश दलित समुदाय से था, जबकि उर्मिला दरबार समुदाय से ताल्लुक रखती थी.
हरेश पर जब हमला किया गया तब वे पुलिस के साथ अपनी गर्भवती पत्नी को लेने उसके घर गए थे. 25 साल के हरेश की मौके पर ही मौत हो गई. उनकी पत्नी उर्मिला तब से लापता है. मामले में अब तक तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
फेसबुक के जरिए एक दूसरे के करीब आए थे हरेश और उर्मिला
हरेश के चचेरे भाई सुनील सोलंकी ने क्विंट को बताया कि उन्होंने "सिर्फ एक भाई को ही नहीं खोया, अपने सबसे करीबी दोस्त को खो दिया है." दोनों के बारे में बात करते हुए सुनील ने बताया कि “फेसबुक के जरिए हरेश और उर्मिला की एक-दूसरे से मुलाकात हुई थी और उसके तुरंत बाद स्थानीय अदालत में इन दोनों ने शादी कर ली थी.”
हमें पता था कि हरेश किसी से प्यार करता है. लेकिन शादी के बारे में हमें तुरंत पता नहीं चला. शादी के कुछ महीने बाद हरेश तीन दिनों तक घर नहीं लौटा.सुनील सोलंकी, हरेश के भाई
हरेश गांधीधाम में दिल्ली के एक लकड़ी व्यापारी के यहां ड्राइवर का काम करता था. इसलिए घरवालों को लगा कि वो अपने मालिक को कहीं ले गया होगा. चौथे दिन घरवालों ने एफआईआर दर्ज कराई. घरवालों को बाद में पता चला कि उर्मिला भी अपने घर से गायब थी.
अपनी सुरक्षा को लेकर दोनों इतने डरे हुए थे कि करीब दो महीने तक घर नहीं लौटे.
हरेश की तस्वीर के सामने चटाई पर बैठे यशवंत सोलंकी याद करते हैं कि कैसे दो महीने पहले, उर्मिला के पिता दशरथ सिंह झल्ला उनके घर आए और उर्मिला की मां की बीमारी का बहाना बनाकर उसे अपने साथ ले गए.
यशवंत सोलंकी ने कहा, "उर्मिला अपने पिता के साथ बिना मर्जी के गई. लेकिन उसने वादा किया कि पंद्रह दिनों के अंदर वापस आ जाएगी.
जब उर्मिला वापस नहीं लौटी, तो हरेश और उसकी मां सुशीलाबेन ने पुलिस की मदद ली. उन्होंने गांधीधाम कोर्ट में केस दर्ज किया. उर्मिला के माता-पिता को 14 जून को अदालत में बुलाया गया था, लेकिन वे हाजिर नहीं हुए.
फिर, उर्मिला के भाई ने हरेश को बताया कि वे उर्मिला को 1 जुलाई को वापस भेज देंगे.
उसके भाई( उर्मिला का भाई) ने मेरे भाई से बात की.जिसने कहा कि 14 जून को मैंने अपनी बहन को कोर्ट में पेश नहीं किया लेकिन 15 दिन के बाद मैं खुद छोड़ने आऊंगा. 1 जुलाई 2019 को छोड़ने आऊंगा. लेकिन वो कभी नहीं आए. वो उर्मिला को भेजना नहीं चाहते थे, बस बहाने बना रहे थे.संजय सोलंकी, हरेश सोलंकी के भाई
जब उर्मिला के भाई ने उसे ससुराल नहीं पहुंचाया, तब हरेश अपने वकील से मिले. हरेश और उनकी मां ने उर्मिला को बचाने के लिए पुलिस और 'अभयम-181’ का सहारा लेने का फैसला किया.
सोमवार 8 जुलाई को हरेश महिला कॉन्स्टेबल और काउंसलर के साथ उर्मिला के घर गया. लेकिन उर्मिला के परिवारवालों ने काउंसलर और पुलिस की मौजूदगी में हरेश पर हमला कर दिया और उसे जान से मार डाला.
‘खत्म हुई जीने की इच्छा’
हरेश की मां सुशीलाबेन का कहना है कि “पुलिस स्टेशन में उन्होंने मुझे कहा कि आपके बेटे को कुछ नहीं हुआ है. उसे लकड़ी से हाथ पर मारा गया है. अभी हॉस्पिटल ले गए हैं, आप चिंता मत करो. उन्होंने मुझे कुछ नहीं बताया लेकिन बाहर से आवाज आ रही थी कि बारोट (दलित समुदाय) के एक लड़के को वरमोर में मार डाला गया है. उन्होंने मुझे पुलिस स्टेशन से बाहर नहीं जाने दिया. उन्होंने मुझे अंगूठा लगाने को कहा, मैंने मना कर दिया कि मेरे पति और मेरे घरवाले मेरे साथ नहीं हैं, मैं नहीं लगाउंगी लेकिन उन्होंने मुझे जबरदस्ती सादे कागज पर अंगूठा लगवा दिया.”
सुशीला की मां आगे कहती हैं कि मेरे जीने की तमन्ना खत्म हो गई है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं.
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