दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक वाराणसी की 300 साल पुरानी मस्जिद सुर्खियों में बनी हुई है. इसको लेकर तीन दशक से तनावपूर्ण कानूनी लड़ाई जारी है. ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid Case) पर खड़ा हुआ ये विवाद बाबरी विध्वंस जैसी घटना को फिर से दोहराए जाने की आशंकाओं को हवा दे रहा है?
अकबर के शासनकाल के दौरान पुनर्निर्मित एक मंदिर को कथित तौर पर ध्वस्त करने के बाद औरंगजेब के काल में निर्मित संस्कृत नाम वाली यह मस्जिद वर्तमान में अपने परिसर में पाए जाने वाले कथित शिवलिंग के दावों के कारण फिर से विवाद में उलझ गई है.
आइए समझते हैं इतिहास के पन्ने और तथ्य हमें ज्ञानवापी की कौन सी कहानी बताते हैं.
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ज्ञानवापी मस्जिद
(फोटो: फाइल)
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(फोटो: फाइल)
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ज्ञानवापी मस्जिद
(फोटो: फाइल)
अकबर, औरंगजेब, अहिल्या बाई: मंदिर-मस्जिद का इतिहास
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में भारी बैरिकेडिंग और सुरक्षाकर्मियों से घिरे परिसर में एक मंदिर और एक मस्जिद एक-दूसरे को टकटकी बांधे देखते रहते हैं. यहां दशकों से हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के बगल में पूजा और नमाज अदा करते रहे हैं. एक 'हिंदू' नाम वाली यह मस्जिद दरअसल हिंदुओं के लिए एक बहुत ही पवित्र मंदिर 'काशी विश्वनाथ मंदिर' के निकट स्थित है.
मस्जिद का नाम एक निकटवर्ती कुएं पर है- ज्ञानवापी. जिसका अर्थ होता है- ज्ञान का कुआं. ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi masjid) का निर्माण 1669 में छठे मुगल सम्राट औरंगजेब ने करवाया था. मस्जिद कथित तौर पर एक 16 वीं शताब्दी के शिव मंदिर काशी विश्वेश्वर मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई थी.
काशी विश्वेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान टोडर मल द्वारा किया गया था. टोडरमल अकबर के वित्त मंत्री थे. कथित तौर पर औरंगजेब के आदेश पर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया था.
" इस मंदिर को औरंगजेब के आदेश पर गिराया गया, आधा टूटा हुआ हिस्सा ही मौजूदा ज्ञानवापी मस्जिद की आधारशिला बना. पुराने मंदिर की एक दीवार आज भी मस्जिद प्रांगण में हिंदू आभूषण की तरह खड़ी है"डायना एल इक (हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में कम्पेरेटिव रिलीजन के प्रोफेसर)
माना जाता है कि विश्वेश्वर मंदिर के संरक्षकों ने मराठा शासक और मुगल साम्राज्य के दुश्मन शिवाजी को जेल से भागने में मदद की थी और इससे औरंगजेब नाराज हो गया.
"मुगल बादशाहों ने उन मंदिरों को निशाना बनाया जिनके संरक्षक पहले वफादार थे, लेकिन बाद में दुश्मन बन गए "रिचर्ड एम एटन (साउथ एशियन हिस्ट्री यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में प्रोफेसर)
लेकिन माना जाता है कि औरंगजेब के सिपाहियों द्वारा मंदिर ध्वस्त किए जाने के पहले विश्वेश्वर मंदिर के पुजारियों ने शिवलिंग को कथित तौर पर पास के कुएं में छिपा दिया जिससे शिवलिंग को कोई नुकसान नहीं हुआ.
1780 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर ने ज्ञानवापी मस्जिद के पास दोबारा शिव मंदिर बनवाया. 1835 में पंजाब के राजा महाराजा रणजीत सिंह ने दो टन सोना भेजा, जिससे गर्भगृह को घेरा गया था. जो अपने वर्तमान स्वरूप में काशी विश्वनाथ मंदिर है.
ज्ञानवापी मस्जिद के बारे में कुछ तथ्य
एक-दूसरे से सटे हुए काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के प्रवेश और निकास द्वार अलग-अलग दिशाओं में हैं.
मस्जिद एक तीन गुम्बद वाली सफेद संरचना है जो 20 फीट की बाड़ के भीतर है.
ज्ञानवापी मस्जिद का प्रवेश द्वार ताज महल से काफी मिलता जुलता है.
ध्वस्त किए गए मंदिर के एक हिस्से को कथित तौर पर नहीं छुआ गया और अब वो मस्जिद के आंगन के रूप में इस्तेमाल होता है.
अयोध्या से वाराणसी: मंदिर-मस्जिद विभाजन
1984 के बाद से विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने उन मस्जिदों की साइटों को पुनः प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया, जिनके बारे में उनका दावा था कि उनका निर्माण 'हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करके' किया गया था. इसमें ज्ञानवापी मस्जिद भी शामिल है.
मस्जिद पहली बार 1991 में चर्चा में आई जब बीजेपी और विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व किया. 200 किलोमीटर दूर वाराणसी में हिंदू पुजारियों ने मांग की कि उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद सौंपी जाए.
राम मंदिर आंदोलन का मुकाबला करने के लिए केंद्र में तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने 1991 में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम पारित किया. जिसमें किसी भी धार्मिक स्थल के रूपांतरण को प्रमुख रूप से प्रतिबंधित किया गया.
अधिनियम के पारित होने के बावजूद महीनों बाद अयोध्या में हिंदुत्ववादी नेताओं और हिन्दू परिषद् के कार्यकर्ताओं द्वारा 16 वीं शताब्दी की बाबरी मस्जिद के ढांचे को ढहा दिया.
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया. मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए अलग से जमीन दी गई. शीर्ष अदालत के इस फैसले ने ज्ञानवापी को फिर से सुर्खियों में ला दिया.
1991 से 2022 और आगे? मंदिर-मस्जिद की लड़ाई
दो साल बाद पांच हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं ने 'मस्जिद परिसर की पश्चिमी दीवार के पीछे एक तीर्थ' में साल भर प्रार्थना करने की मांग करते हुए वाराणसी जिला अदालत का रुख किया. वे प्रतिदिन ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नंदी की मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति चाहते हैं.
यह स्थल वर्तमान में वर्ष में एक बार चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन हिंदू प्रार्थनाओं के लिए खोला जाता है.
8 अप्रैल 2021: वाराणसी की एक अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को ज्ञानवापी मस्जिद का अनुरोधित सर्वेक्षण करने का आदेश दिया.
9 सितंबर 2021: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई के सर्वे पर रोक लगाई.
26 अप्रैल 2022: वाराणसी के सिविल जज ने मस्जिद परिसर में एडवोकेट कमिश्नर द्वारा सर्वे और वीडियोग्राफी के आदेश दिए.
न्यायालय द्वारा नियुक्त सर्वेक्षण आयुक्त अजय कुमार मिश्रा के खिलाफ भारी आक्रोश और पक्षपात के आरोपों के बीच 16 मई 2022 तक सर्वेक्षण और वीडियोग्राफी का काम पूरा कर लिया गया. दावा किया जा रहा है कि निरीक्षण दल द्वारा मस्जिद परिसर के अंदर एक शिवलिंग की खोज की गई है.
इसने वाराणसी की अदालत को मस्जिद के उस हिस्से को विवादास्पद रूप से सील करने का आदेश देने के लिए प्रेरित किया जहां कथित तौर पर शिवलिंग पाया गया था. लेकिन मस्जिद के अधिकारियों ने दावा किया कि वो शिवलिंग नही बल्कि मस्जिद के वजुखाने का एक फव्वारा है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी पूजा स्थल अधिनियम-1991 का उल्लंघन करते हुए जिला अदालत के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
20 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के मामले पर फैसला सुनाने के लिए केस को एक 'वरिष्ठ और अनुभवी' जिला न्यायाधीश के पास स्थानांतरित कर दिया.
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