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5 राफेल का जश्न तो सही लेकिन इतना काफी नहीं

हमें राफेल आने की खुशी से जल्द बाहर आना चाहिए और वो करना चाहिए जिसकी जरूरत है

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आखिरकार, ये जो इंडिया है ना, इसे अपना राफेल मिल रहा है. 4.5 जेनरेशन का फाइटर जेट. दुनिया के सबसे उन्नत AESA रडार सिस्टम के साथ...एकदम आधुनिक हथियारों से लैस, एंटी डिटेक्शन सिस्टम, स्पेक्ट्रा, जो दुश्मन दिख भी नहीं रहा है वहां तक हवा से हवा में मार करने वाली BVR Meteor मिसाइल, साथ ही हवा से जमीन में एकदम सटीक निशाना लगाने वाली SCALP क्रूज मिसाइल. ये हवा में हीरो, जमीन पर मदद देने में जानदार, दूर तक मारक क्षमता, एंटी शिप परमाणु हथियार से लैस.

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राफेल में हर वो चीज है, वो मल्टी रोल लड़ाकू विमान है, जिसकी भारत को सालों से जरूरत थी और वाकई सालों लग गए. भारत को 4.5 जेनरेशन मल्टी रोल लड़ाकू विमान की तलाश 2004 से ही थी. लक्ष्य था हम 2011 तक इसे हासिल कर लें. लेकिन लग गए 16 साल. आज भी इनकी संख्या सिर्फ 5 है. पूरी ताकत, पूरी तरह से लैस और पूरी तरह से काम करने वाली 18 विमानों की राफेल स्क्वाड्रन मार्च 2021 में मिलेगी. और दूसरी के लिए हमें अप्रैल 2022 तक इंतजार करना होगा. क्विंट के लिए लिखते हुए रिटायर्ड एयर मार्शल एम मातेश्वरन अपनी निराशा कुछ यूं जाहिर करते हैं. एक - हथियारों की खरीद फरोख्त में लेट लतीफी की हमारी परंपरा को निभाते हुए और तमाम सियासी तू-तू, मैं-मैं के बाद – राफेल डील में हम दस साल लेट हो गए. दूसरी बात हमने सिर्फ 36 विमानों का सौदा किया है.

जबकि 16 साल पहले हमने 126 की जरूरत महसूस की थी, और आज जिसकी जरूरत 200 विमानों की है. तीन- सौदे में मेक इन इंडिया की बात नहीं है, न ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात.

लेकिन फिर भी ये एक कमाल का विमान है. ये भारतीय वायुसेना का मुख्य और सबसे घातक हथियार. रिटायर्ड एयर मार्शल एम मातेश्वरन के मुताबिक इन चंद विमानों के बूते ही हम चीन को LOC पर रोक सकते हैं. शायद कल से नहीं लेकिन कुछ महीनों में हम ये जरूर कर सकते हैं.

तो चलिए हम अपने छोटू दुश्मन नहीं बड़े विरोधी यानी चीन की बात करते हैं....दशकों से भारतीय सेना का फोकस पश्चिम की तरफ रहा है. लड़ाकू विमानों की तैनाती कहां हो, कितनी तैनाती हो, हमारी रणनीति क्या हो, ये सब हम पाकिस्तान को देखकर बनाते रहे. लेकिन अब पाकिस्तान की सरहद के साथ ही हमें चीन की सरहद पर भी चौकसी रखनी है. इसका मतलब क्या है ये समझने के लिए ये जान लीजिए कि पाकिस्तान के पास करीब 400 लड़ाकू विमान हैं, भारत के पास 700 लेकिन चीन के पास 2100 लड़ाकू विमान हैं.

पाकिस्तान का रक्षा बजट करीब 97 हजार करोड़ है, भारत का उससे ज्यादा 4 लाख 94 हजार करोड़ लेकिन चीन का 13 लाख 32 हजार करोड़ रुपये का..पाकिस्तान से लगती हमारी सीमा 3300 किलोमीटर है लेकिन चीन के साथ हमारी सरहद इससे ज्यादा यानी 3500 किलोमीटर है.

तो साफ है कि ये जो इंडिया है ना, इसकी वायुसेना के सामने चीन की चुनौती बहुत बड़ी है. और उसे रोकने के लिए, उसकी बराबरी नहीं, सिर्फ रोकने के लिए क्योंकि अब वास्तविक लक्ष्य तो रहा नहीं, हमारी वायुसेना को ये करना होगा..

पहले और ये बात कई लोेगों मे कही है.. एयरफोर्स को और लड़ाकू विमान चाहिए, और ज्यादा ऑपरेशनल स्क्वॉड्रन तुरंत चाहिए. एयरफोर्स के पास 42 स्क्वॉड्रन की ताकत है. लेकिन वास्तव में पिछले तीस सालों में हम तेजी से घटकर 30 स्क्वॉड्रन रह गए हैं. क्यों? क्योंकि हमारे विमान प्रचलन से बाहर पुराने हो गए हैं. हम उन्हें बदलने में बहुत धीमें हैं. सर्विस में फाइटर्स के बीच भी. मिग 21 बाइसन और जगुआर दोनों अब सीनियर सिटिजन हो गए हैं. रिटायरमेंट की भीख मांग रहे हैं. लेकिन अब चीन एलएसी पर हरकत में आ गया है. तो हमें पुछना चाहिए कि क्या 42 स्क्वॉड्रन काफी हैं? अगर नहीं तो अब क्या सोच रहें? 45 स्क्वॉड्रन, 50 स्क्वॉड्रन या और ज्यादा?

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जैसा की आप देख सकते हैं 2 राफेल को पूरी तरह शुरू होने में ही 2 साल लगेंगे, ये हम भी जानते हैं कि इन विमानों के सौदे में कई साल लगते हैं और हजारों करोड़ों की डील होती है, इसलिए ये साफ है कि हमें बड़े पैमाने पर विमानों की खरीद पर निर्णय लेना होगा और तब ही हम 42 स्क्वाड्रन की ताकत की तरफ कदम बढ़ाएंगे शायद 2035 तक. इस अर्जेंसी को देखते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 12 सुखोई-30 और 21 MiG-29 समेत 33 नए लड़ाकू विमान की खरीद पर हस्ताक्षर किए.

हम खुद के HAL के लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, तेजस पर भी काफी निर्भर हैं, संख्या को फिर से बनाने के लिए 40 तेजस मार्क 1 एयरक्राफ्ट धीरे-धीरे ऑपरेशनल हो रहे हैं, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल भदौरिया का कहना है कि और 83 तेजस Mk I और IA लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दिया जाएगा, जिसकी डिलीवरी 3 साल में शुरू हो सकती है.

तेजस Mark-II के 6 स्क्वाड्रन और आखिर में हम HAL के 5th जनरेशन के अडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट या AMCA मिलने की उम्मीद करते हैं, ये सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन इस योजना में समस्या HAL है, हिंदुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड सुस्त सरकारी प्लान फैक्ट्री को तेजस को डिजाइन और डिलीवर करने में 30 साल लग गए और इसलिए डिफेंस एक्सपर्ट सिर्फ HAL पर निर्भर रहने को लेकर उलझन में हैं. 

अमेरिका और चीन के बीच नए कोल्ड वार शुरू होने के साथ चाइना के एकतरफा अाक्रामक होने के साथ भारत तो तत्काल इसकी जरूरत है, सिर्फ 36 राफेल काफी नहीं हैं, हमने अपने लड़ाकू जेट बेड़े में और अधिक आधुनिकता के लिए यूरोप और अमेरिका की तरफ देखना होगा.

इस बीच हमें जो दूसरे वास्तविक कदम उठाने हैं वो हैं अपग्रेड! सुखोई-30 का अपग्रेड, मिराज 2000 और MiG-29 का अपग्रेड. इन अपग्रेड में शामिल होगा, विजुअल रेंज और BVR से सुपीरियर एयर टू एयर जोड़ना, मिसाइल की क्षमता, बेहतर रडार और एवियोनिक्स सिस्टम, जमीन पर भी कहीं अधिक सोफिस्टिकेटेड एयर डिफेंस मिसाइल प्रणाली, यहां तक कि हमारे सभी फाइटर एयर बेस पर मेंटेनेंस इंफ्रास्ट्रक्चर का भारी अपग्रेडेशन. इन नए हाई टेक फाइटर जेट की सर्विसिंग करने वाले एयरमेन की फिर से स्किलिंग, इन सब की जरूरत है.

हमें और ज्यादा फाइटर पायलट्स की जरूरत है. एक साल पहले द प्रिंट के लिए स्नेहस फिलिप ने लिखा था कि पाकिस्तान में प्रति विमान 2.5 पायलट हैं, वहीँ भारत में सिर्फ 1.5 हैं. गंभीर स्थिति में जब आपके फाइटर जेट एक दिन में कई मिशन को पूरा करते हैं तो आपको नए पायलट की जरूरत पड़ती है, कम पायलट का मतलब अधिक थकान है, जिसकी वजह से हवा में जीवन और मौत के बीच अंतर हो सकता है, फिर वही, ये रातों रात नहीं हो सकता, इसमें कई साल लगते हैं, लेकिन हमें अब शुरू कर देना चाहिए.

ये जो इंडिया है न.. हमें राफेल के आने की खुशी से जल्द बाहर आ जाना चाहिए और वो करना चाहिए जिसकी जरूरत है...

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