जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद आर्टिकल 370 और 35 ए को हटाए जाने के बाद घाटी में गम और गुस्सा है. लेकिन टीमलीज सर्विसेज के चेयरमैन मनीष सभरवाल का कहना है कि संविधान के इन दोनों अनुच्छेदों को हटाने से कश्मीर में सकारात्मक बदलाव दिख सकते हैं. उनका मानना है कि इन दोनों अनुच्छेदों से कश्मीर काफी पिछड़ गया है. यह जान-बूझ कर इसे पीछे रखने की कोशिश थी.
कश्मीर में ये गुरबत क्यों?
सभरवाल कहते हैं, दरअसल कश्मीर में आज भी काफी गुरबत है. पूरे भारत में गरीबी आधी घट गई है लेकिन कश्मीर में गरीबी और पिछड़ापन पसरा हुआ है. आर्टिकल 370 और 35 ए ने इसे काफी पीछे कर दिया है.दरअसल आर्थिक समृद्धि वहीं आती है जहां जमीन, श्रम और पूंजी की मुक्त आवाजाही हो. कश्मीर में यह नहीं हो सका और इससे आर्थिक गतिविधियां परवान नहीं चढ़ सकी है. अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए की वजह से न तो यहां बाहर के लोग जमीन खरीद सकते थे और न ही बाहर के लोगों को रोजगार मिल सकता था. पूंजी भी नहीं आ सकती थी. इसलिए आर्थिक गतिविधियां पिछड़ गईं. भारत की अर्थव्यवस्था में जो गहनता और विविधता है, वह कश्मीर की अर्थव्यवस्था में नहीं पैदा हो सकीं.
‘कश्मीर के लिए दस साल की मजबूत पॉलिसी तैयार करनी होगी’
सभरवाल के मुताबिक कश्मीर की बेहतरी के लिए अब हमें दस साल का प्रोग्राम बनाना होगा. एजुकेशन को मजबूत बनाना होगा. स्किल यूनिवर्सिटी तैयार करनी होंगी. हॉस्पेटिलिटी इंडस्ट्री को मजबूत करना होगा. वर्ल्ड क्लास हॉस्पेटिलिटी हब तैयार करने होंगे. रोजगार कार्यालयों की स्थिति अच्छी करनी होगी. इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना होगा. यह सब संभव है. उन्होंने द क्विंट से कहा
घाटी के जो लोग पाकिस्तान का राग अलाप रहे हैं उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि उन्हें उससे कुछ नहीं मिलने वाला है. पाकिस्तान खुद बेहद खराब हालात में है. वह कर्ज मांगने के लिए 22वीं बार आईएमएफ के पास गया है. उसकी जीडीपी हमारे एक राज्य महाराष्ट्र के ही बराबर है. इसलिए कश्मीर को भारत की ताकत से जोड़ना बेहतर होगा. भारत के साथ ही उसका भविष्य है.
सभरवाल कहते हैं कि अगर कश्मीर के लोग ये सोचते हैं कि पाकिस्तान उसका दामन थामेगा तो यह साफ समझ लेना चाहिए कि उससे राज्य के लोगों को कुछ नहीं मिलेगा. वह खुद आर्थिक तौर पर बदहाल है. उसकी करेंसी 50 फीसदी तक गिर गई है.
सभरवाल कश्मीर के युवाओं के लिए अच्छा भविष्य देख रहे हैं. कश्मीर का युवा भी यहां के पहले के युवा से अलग है. उसकी महत्वाकांक्षाएं ज्यादा बड़ी है. पिछले 20 साल के दौरान कश्मीर के युवाओं को काफी दुख उठाने पड़े हैं. लेकिन आगे के 20 साल उनके लिए अच्छे मौके देने वाले साबित होंगे.
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