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मोदी सरकार- क्या आप महिलाओं से किए वो तमाम वादे भूल गए? 

‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ के जोर-शोर में बीजेपी भूल गई महिलाओं से किए गए ये वादे.

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

कैमरा: शिव कुमार मौर्य

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मोदी सरकार की तरफ से बड़े जोर शोर से दावा किया जा रहा है कि एमएसपी बढ़ाकर किसानों से घोषणापत्र में किया वादा पूरा कर दिया गया. पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, मैं याद दिला हूं, बीजेपी की घोषणापत्र में महिलाओं के लिए भी बहुत से वादे किए गए थे. लेकिन 4 साल में इनमें काम शुरू ही नहीं हुआ है.

बीजेपी के 52 पन्नों के घोषणापत्र में महिलाओं से जुड़े वादों को ‘विशेष’ जगह दी गई थी. लोकसभा चुनाव में महिला वोटर्स ने भी रिकॉर्ड 65 परसेंट वोटिंग की. जाहिर है आपकी जीत में उनके समर्थन का भी योगदान है, पर लगता है सरकार वो सारे वादे भुला बैठी है.

इन 4 सालों में ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का तो खूब शोर हुआ पर इसमें कई ऐसे अहम वादे दब गए जो बेहद जरूरी हैं.

चलिए मैं याद दिला देती हूं, वादा क्या था और मिला क्या है?

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कालाधन, भ्रष्टाचार के अलावा ये भी मुद्दे हैं जो BJP को याद दिलाने की जरुरत है

1. 33% रिजर्वेशन ठंडे बस्ते में

“सरकार के अंतर्गत तमाम स्तरों पर महिला कल्याण एवं विकास को उच्च प्राथमिकता प्रदान की जाएगी. भाजपा संविधान संशोधन के जरिए संसद एवं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने को प्रतिबद्ध है.”

महिला आरक्षण बिल के तहत संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव है. राज्यसभा में तो महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का बिल 2010 में पास करा लिया गया था लेकिन लोकसभा में समाजवादी पार्टी, बीएसपी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों के भारी विरोध की वजह से ये बिल पास नहीं हो सका.

लेकिन अब तो मोदी सरकार के पास ऐसी कोई मजबूरी नहीं है. उनके पास बहुमत है फिर भी सरकार ने इस बिल को पास कराने के लिए इन 4 सालों में कोई कोशिश नहीं की है.

2. पुलिस में महिलाओं की भर्ती

घोषणापत्र में किया गया वादा-

“पुलिस स्टेशनों को महिलाओं के अनुकूल बनाया जाएगा और विभिन्न स्तरों पर पुलिस में महिलाओं की संख्या बढ़ाई जाएगी.”

पुलिस में महिलाओं की भर्ती बढ़ाने की बात की गई थी, लेकिन मोदी सरकार के 4 सालों में भर्ती की रफ्तार कम हुई है.

इसे ऐसे समझिए इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010 में पुलिस फोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 4.2% थी. अगले चार साल यानी 2014 तक ये हिस्सेदारी बढ़कर 6.1% हो गई यानी करीब दो परसेंट पाॅइंट की बढ़ोतरी.

लेकिन मोदी सरकार के 4 साल के दौरान ये बढ़कर सिर्फ 7.28% हो पाई है. 2014 के मुकाबले 2018 में सिर्फ 1.1 परसेंट पाॅइंट की बढ़ोतरी. मतलब पुलिस फोर्स में महिलाओं को भर्ती करने की रफ्तार कम हुई है, जबकि वादा था कि बढ़ाएंगे.

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3. महिला बैंक का सपना टूटा

घोषणापत्र में किया गया वादा-

“महिलाओं की जरूरतों के मद्देनजर अखिल भारतीय महिला चलित बैंक की स्थापना की जाएगी.”

मोदी सरकार ने वादा किया महिला बैंक का, लेकिन काम ठीक उलट किया. चलता हुआ महिला बैंक बंद कर दिया गया. यूपीए सरकार ने 1000 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ जो भारतीय महिला बैंक बनाया था उसे मोदी सरकार बचा नहीं पाई. 'महिलाओं का, महिलाओं के लिए और महिलाओं के द्वारा बैंक' की सोच सिर्फ नारे तक सीमित रह गई.

मोदी सरकार में ये मकसद बुरी तरह नाकाम हुआ और 1 अप्रैल 2017 को एसबीआई में इसका विलय हो गया.

4. एसिड हमले की शिकार महिलाओं के लिए फंड

घोषणापत्र में किया गया वादा-

“एसिड हमले की शिकार महिलाओं के कल्याण के लिए सरकार एक कोष बनाएगी ताकि ऐसी पीड़ितों के इलाज और काॅस्मेटिक सर्जरी के मेडिकल खर्च को उठाया जाए.”

बीजेपी ने एसिड अटैक की शिकार महिलाओं के इलाज, दवा और कॉस्मेटिक सर्जरी के लिए एक फंड बनाने का वादा किया था. पार्टी की सरकार बनी और 200 करोड़ रुपये से सेंट्रल विक्टिम कम्पनसेशन फंड (CVCF) भी बना. लेकिन इसके लिए पैसा रेप पीड़ितों के पुनर्वास के लिए बने निर्भया फंड से ही निकाला गया. इस फंड से ही रेप, मानव तस्करी की शिकार और बॉर्डर पार से होने वाली गोलीबारी की शिकार महिलाओं की मदद होने लगी.

मतलब महिलाओं के प्रति अलग-अलग अपराधों को खत्म करने और अपराध की शिकार महिलाओं की मदद करने का जो फोकस था वो बंट गया.

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