गुजरात के मोरबी (Morbi) में सस्पेंशन पुल गिरने से करीब 134 लोगों की मौत हो गई. पुल गिरने के साथ ही कई लोग सोशल मीडिया पर पुल के गिरने को लेकर अजब लॉजिक देने लगे. किसी ने पुल के गिरने को सरकार को बदनाम करने की साजिश बताई तो किसी ने मरने वालों को ही दोषी बता दिया. तो किसी ने पुल के गिरने का गुजरात विधानसभा चुनाव से कनेक्शन बता दिया.
अब आप ही बताइए, कौन साजिश कर रहा था? मरने वाले लोग? मतलब मरने वालों ने कहा होगा कि चलो, चलो, चुनाव का वक्त है, पुल तोड़कर मर जाते हैं और सरकार को बदनाम कर देते हैं.
यही नहीं कुछ 'होशियार' कह रहे हैं कि पुल को लोग हिला रहे थे इसलिए पुल टूट गया. फिर तो सवाल पूछना चाहिए था कि ऐसे पुल पर लोगों को जाने ही क्यों दिया गया जो लात मारने से, हिलाने से टूट सकता था. यहां पूल नहीं, 134 लोगों की सांसे टूट गईं, फिर भी सरकारी लापरवाही पर साजिश और चुनावी कनेकशन गढ़ने की कोशिश हो रही है, इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
हाकिम-ए-वक्त पधार रहे हैं...
गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बना सस्पेंशन पुल टूट गया. कई जिंदगियों में अंधेरा कर गया. लेकिन सियासत देखिए, अस्पताल रौशन हो रहा है. सजाया जा रहा है. रंग रोगन हो रहा है. टाइल्स, गद्दे, वॉटर कूलर बदले जा रहे हैं. मरीजों के लिए नए बेड लगाए जा रहे हैं, क्योंकि हाकिम-ए-वक्त यानी प्रधानमंत्री आने वाले हैं. पीड़ितों को देखने के लिए. मोरबी के इस अस्पताल में सस्पेंशन ब्रिज से गिरने वाले पीड़ितों को भर्ती कराया गया है. विपक्ष इस रंगाई-पोताई को इवेंटबाजी कह रहा है, फोटोशूट से पहले की तैयारी कह रहा है.
आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने पूछा है कि किसी के घर में मौत हो जाए, तो क्या उस वक्त कोई रंगाई पुताई करवा सकता है? इस पर किसी ने पूछा है-सोचिए जरा यही किसी विपक्ष शासित राज्य में होता तो हर चैनल पर प्राइम डिबेट हो गई होती.
इन सवालों के जवाब देने होंगे
इन सबके बीच और भी कई अहम सवाल हैं जिनके जवाब पर पेंट नहीं चलाया जा सकता है.
गुलामी की निशानी राजपथ का नाम कर्तव्य पथ बदलने का ईवेंट किया जा सकता है तो फिर ब्रिटिश काल के बने इस सस्पेंशन ब्रिज को पूरी तरह से बदला क्यों नहीं गया?
क्यों अजनता घड़ी बनाने वाली ओरेवा ग्रुप को इसकी मरम्मत और रखरखाव का ठेका दिया गया. किसके कहने पर ठेका दिया गया? ओरेवा ग्रुप सीएफएल बल्ब, ई-बाइक भी बनाती है फिर मोरबी नगरपालिका ने दो बार पुल के रखरखाव और प्रबंधन का ठेका कैसे और क्यों दिया? कंपनी को इस पुल के अलावा पुलों के रखरखाव का कोई और अनुभव नहीं है. कम से कम ऐसी कोई जानकारी उनकी साइट पर तो नहीं है.
मौत के बाद एसआईटी का गठन किया गया है, 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है लेकिन इन सबकी जरूरत ही क्यों आई?
फिटनेस सर्टिफिकेट के बिना खोला गया था पुल
मोरबी में मच्छू नदी पर बने 19वीं सदी के पुल को फिर से खोलने के लिए नगर पालिका की ओर से फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करना था लेकिन मोरबी नगर निगम के मुख्य अधिकारी ने आरोप लगाते हुए क्विंट से कहा कि, “ओरेवा समूह ने फिटनेस सर्टिफिकेट हासिल नहीं किया था.” फिर क्यों बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के इस पुल को खुलने दिया गया?
मोरबी नगर निगम के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह जाला कह रहे हैं कि नगर निगम को "इस बात का अंदाजा नहीं था कि पुल को फिर से खोल दिया गया है." कमाल देखिए 230 मीटर लंबा पुल शहर के बीचों बीच है. 26 अक्टूबर को गुजराती नव वर्ष पर शहर का मशहूर पुल वापस आम लोगों के लिए खुल जाता है लेकिन नगर पालिका और नगर निगम को पता नहीं है. अधिकारी कह रहे हैं,
"यह एक बहुत बड़ी नगरपालिका है. हम यहां होने वाली हर चीज के बारे में नहीं जान सकते."
लेकिन आपको बता दें कि 26 अक्टूबर को मीडिया की मौजूदगी में ओरेवा ग्रुप ने पुल का उद्घाटन किया था.
क्या लात मारने और हिलाने से मजबूत पुल टूट सकता है
कई सारे वीडियो सोशल मीडिया पर हैं जिसमें बहुत से लोग पुल पर दिख रहे हैं, कई लोग पुल को हिलाने की कोशिश कर रहे हैं, लात मार रहे हैं, ये सब क्यों नहीं रोका गया? इस पुल पर जाने के लिए टिकट लेना होता है, फिर जब पैसे लिए जा रहे थे तब भी लोगों की जिंदगी की फिक्र क्यों नहीं की गई? पार्क से लेकर घूमने वाली जगहों पर गार्ड होते हैं, ये पुल तो कई सालों से है फिर सेफ्टी बैकअप का इंतजाम क्यों नहीं था?
मरने वालों को ही दोषी बता रहे कुछ लोग
सरकार की आंखों का तारा बनने के लिए मीडिया का एक तब्का मरने वालों को ही दोषी बता रहा हो लेकिन आप खुद से पूछिएगा कि अगर कुछ लोग झूले को हिला रहे थे तो किसकी जिम्मेदारी थी उन्हें रोके? किसकी जिम्मेदारी थी कि ऐसे कमजोर हो चुके पुल पर लोगों को जाने न दें?
देश में मोरबी जैसे कई पुल हैं, वक्त है इस भयावह हादसे से सीख लेकर बाकी पुलों को मजबूत किया जाए, जो गलती यहां हुई है वो अब कहीं न हो. दोषियों को सजा दी जाए, सरकारी ठेके का सच सामने आए, घड़ी बनाने वालों को ठेका किसके कहने पर दिया गया, क्या किसी को इस ठेके के बदले फायदा मिला है? सच बाहर आना चाहिए. और पूछिए जनाब ऐसे कैसे?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)