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ये NDTV पर ‘इनडायरेक्ट कंट्रोल’ की कोशिश है या खिलाफ बोलने की सजा?

लागू हो सकता है SEBI का ऑर्डर?

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27 जून को देश के शेयर बाजार में एक शेयर में बड़ी तेजी हुई. NDTV का शेयर अचानक 20 फीसदी तक चढ़ गया. ऐसा SEBI के एक ऑर्डर की वजह से हुआ. SEBI ने NDTV में 52 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली एक कंपनी को कहा कि वो ओपन ऑफर लेकर आए, इसी वजह से शेयर में उछाल देखने को मिला.

कौन सी है ये कंपनी, रिलायंस से क्या कनेक्शन है

कंपनी का नाम है विश्वप्रधान और ये कंपनी रिलायंस की ही है. दरअसल, साल 2009 में विश्वप्रधान ने NDTV को 400 करोड़ का लोन दिया था. SEBI, विश्वप्रधान का NDTV पर इनडायरेक्ट कंट्रोल मानती है.

SEBI ने कहा कि कानून को बायपास करके ओपन ऑफर नहीं लाया गया, लेकिन अब लाया जाए. आज शेयर 35-40 रुपये पर मंडरा रहा है. 2009 में शेयर की कीमत 214 रुपये थी. इस हिसाब से आज इसकी कीमत करीब 450 होनी चाहिए. इसे देखकर शेयर ट्रेडर्स को लगा कि ओपन ऑफर की वजह से शेयर का दाम बढ़ेगा. यही वजह है कि शेयर की कीमत में जबर्दस्त उछाल देखा गया.

लागू हो सकता है SEBI का ऑर्डर?

SEBI का ऑर्डर दिखने में मजबूत लगता है लेकिन एक्सपर्ट्स के मुताबिक शायद है नहीं. इसे ऐसे समझिए:

  • उस समय के शेयरहोल्डर की पहचान कैसे होगी.
  • तब NDTV के 40 फीसदी शेयर पब्लिक के पास थे. उसमें से 26 फीसदी जो शेयर बेचेंगे उनकी पहचान कैसे होगी?
  • अब जिनके पास शेयर नहीं हैं वो कह सकते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ, उन्हें ओपन ऑफर का अधिकार नहीं मिला
  • नए शेयरहोल्डर को जोरदार मुनाफा होगा तो भी पुराना शेयरहोल्डर शिकायत करेगा
  • यानी नया शेयरहोल्डर, पुराना शेयरहोल्डर, विश्वप्रधान और NDTV, सभी कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं और ऑर्डर लागू ही नहीं हो पाएगा.

विश्वप्रधान के पास आज NDTV की 52 फीसदी हिस्सेदारी है. SEBI कह रहा है कि इतना हिस्सा होने के बाद कंपनी साफ करे कि वो NDTV को खरीदना चाहते हैं या नहीं. रिलायंस और विश्वप्रधान, दोनों ने कहा है कि NDTV में हमारा कोई एडिटोरियल कंट्रोल नहीं है और न ही बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में कोई डायरेक्टर है. लेकिन SEBI इस नतीजे पर पहुंचा है कि ये इनडायरेक्ट कंट्रोल है.

अब इनडायरेक्ट कंट्रोल को लेकर एक नई बहस छिड़ सकती है. ये पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच सकता है.

कंट्रोल होता है या कंट्रोल नहीं होता. कंट्रोल के कई पहलू होते हैं. मालिकाना हक कैसा है, कितनी शेयरहोल्डिंग के साथ भी कंट्रोल नहीं हो सकता. लेकिन यहां पर ये साफ नहीं. रिलायंस की कंपनी SEBI के एपलेट ट्रिब्यूनल में मामले को चुनौती देगी. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच सकता है, ये तय करने के लिए कि इनडायरेक्ट कंट्रोल क्या होता है?

विश्वप्रधान इस ऑर्डर को इसलिए भी चैलेंज करेगी, क्योंकि अगर ओपन ऑफर आता है, तो रिलायंस को करीब 700 करोड़ रुपये देने पड़ेंगे. ये पुराने और नए भाव का फर्क है. रिलायंस ऐसा कतई नहीं करेगा. वो कानून के सारे दरवाजे खटखटाएगा.

कई एक्सपर्ट्स ये भी कहते हैं कि अगर SEBI को ये ऑर्डर ठोस ढंग से लागू करना था, तो क्या वो रिलायंस की कंपनी पर जुर्माना लगाकर इनवेस्टर प्रोटेक्शन फंड में पैसा भरने को कह सकता था?

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मामले की टाइमिंग शक पैदा करती है

चुनाव करीब हैं. क्या सरकार रेगुलेटर के जरिए ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि वो किसी की नहीं है. या वो सरकार के खिलाफ बोलने वाले NDTV को एक संदेश देना चाहती है. सरकार ने उसकी विश्वसनीयता पर भी चोट कर दी है. जाहिर करते हुए कि जब ये लोन लिया था, तब क्यों नहीं बताया कि इसमें रिलायंस का पैसा लगा हुआ है.

रिलायंस के सामने भी सवाल है कि मामले को कैसे सुलझाएं. कंपनी को टेकओवर करने या बेचने का सवाल? मीडिया, कानून, रेगुलेटर की भूमिका, कारोबार और राजनीति के बड़े सवाल खड़े होते हैं. आने वाले दिनों में इस पर बहस होगी. SEBI के इस ऑर्डर का कोई नतीजा निकले, इसकी उम्मीद रखना गलत होगा

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