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पीएम मोदी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्यों नहीं आए अक्षय कुमार?

5 साल में पीएम मोदी की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस, प्रेस दर्शन बनकर रह गया.

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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

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किसी सवाल का जवाब नहीं, एक भी नहीं. उन सवालों के भी नहीं जो उनसे पूछे गए. 5 साल में पीएम मोदी की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस, प्रेस दर्शन बनकर रह गई. मगर क्यों? क्या इसलिए क्योंकि सवाल अक्षय कुमार ने नहीं पूछे? या फिर इसलिए क्योंकि उन्हें डर था कि उनसे आम, खिचड़ी और वॉलेट के अलावा भी सवाल पूछे जा सकते हैं.

वैसे एक बात समझ में नहीं आती, इस कथित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पॉलिटिकल जर्नलिस्ट अक्षय कुमार क्यों नहीं थे? आखिर अक्षय उन कुछ खास लोगों में थे, जिन्हें पीएम मोदी से घंटे भर खास सवाल पूछने का मौका मिला था, तो फिर इस ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया?

ऐसा नहीं कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीएम मोदी बोले नहीं. बोले... लेकिन 'आम-खिचड़ी और वॉलेट' वाले इंटरव्यूज की तरह सिर्फ अपने मन की बात की. खुद की तारीफ, पार्टी की तारीफ और बस हो गया.

जब प्रेस कॉन्फ्रेंस की खबर आई तो सबको लगा, प्रज्ञा ठाकुर जी गईं पार्टी से. क्योंकि काम ही कुछ ऐसा किया है था. उन्होंने नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया था.

अब प्रधानमंत्री जी तो गांधी वादी हैं. चरखे पे बैठकर फोटो खिंचवाते हैं. खादी इंडस्ट्री को प्रमोट करते हैं, स्वदेशी आंदोलन को मेक इन इंडिया बोलकर प्रमोट करते हैं. उन्होंने कहा -“मैं प्रज्ञा ठाकुर को मन से कभी माफ नहीं कर पाऊंगा.’’ लोगों ने तालियां बजाईं. तो सबको लगा, जो मोदी प्रज्ञा की तारीफ कर चुके हैं उन्हें खुद प्रेस के सामने आकर पार्टी से निकालने का ऐलान करेंगे...लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

इस पर सवाल भी पूछे गए. एक जर्नलिस्ट ने बड़े ढंग से उनसे परमिशन मांगी और फिर प्रज्ञा पर सवाल पूछा, लेकिन जवाब नहीं मिला..

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इस बार पीएम मोदी ने अमित शाह को दिया मौका

प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमित शाह सारे सवालों के जवाब दे रहे थे, और मोदी बस चुप थे. ये तो वैसे ही हुआ जैसे एक खिलाड़ी बिना मैच खेले कप्तान बनना चाहता हो. लेकिन हमें प्रधानमंत्री जी कि विनम्रता की तारीफ करनी होगी. विरोधियों को उनसे हमेशा शिकायत रहती है कि वो लाइमलाइट झटक लेते हैं. मिशन शक्ति, बालाकोट, सर्जिकल स्ट्राइक देख लीजिए. लेकिन इस बार उन्होंने अमित भाई को लाइमलाइट का पूरा मजा लेने दिया.
पीएम मोदी गांधीवादी हैं. गांधी जी की फिलासफी थी - बुरा मत देखो, बुरा मत कहो और बुरा मत सुनो. लेकिन मोदी जी के फलसफे में थोड़ा ट्विस्ट है. बुरा सिर्फ देखो और इग्नोर करो.
खुद के और पार्टी के बारे में बहुत सारा अच्छा कहो, और किसी की मत सुनो.

मोदी है तो मुमकिन है.

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