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जिस महान गणितज्ञ के निधन पर ट्वीट कर रहे PM उनके साथ बेकद्री!

अयोध्या कहते हैं जब वशिष्ठ नारायण सिंह के लिए उनके जिंदा रहते भी कुछ नहीं किया गया तो अब सरकार क्या करेगी?

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क्या कहें हम- किससे कहें हम..अंधे के सामने रोना अपना ही दीदा खोना..

ये दुख-दर्द-पीड़ा है, मशहूर गणितज्ञ डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह के भाई अयोध्या प्रसाद सिंह का. वशिष्ठ नारायण सिंह के पार्थिव शरीर के सामने खड़े, अयोध्या हैरत में दिख रहे थे.शायद सोच रहे होंगे कि उनके भाई ने IIT कानपुर से लेकर कैलिफोर्निया तक बिहार और भोजपुर का नाम रोशन कर कुछ भी हासिल नहीं किया तभी तो निधन के बाद अस्पताल ने एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं करवाया और शव को बाहर निकाल दिया. अयोध्या प्रसाद बताते हैं कि जब मीडिया में खबर चलने लगी तो आनन-फानन में प्रशासन एंबुलेंस लेकर पहुंचा. अयोध्या कहते हैं जब वशिष्ठ नारायण सिंह के लिए उनके जिंदा रहते भी कुछ नहीं किया गया तो अब सरकार क्या करेगी?

वीडियो एडिटर-अभिषेक शर्मा

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ये सिर्फ एक मौत की खबर नहीं है

ये खबर सिर्फ एक मौत या महज सरकारी उपेक्षा का नहीं है, क्योंकि इसकी तो हम लोगों को आदत सी पड़ गई है...ये मामला है एक ऐसे शख्स का जिसने बिहार को ही नहीं इस देश को बहुत कुछ दिया लेकिन बदले में हमने या हमारे सिस्टम ने उन्हें कुछ नहीं दिया.

आइंस्टीन के रिलेटिविटी के सिद्धांत को दी थी चुनौती

आइंस्टीन के रिलेटिविटी के सिद्धांत को चुनौती देने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में एक किस्सा बेहद मशहूर है. नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए, तो नारायण ने उस बीच कैलकुलेशन किया और कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक जैसा ही था. लेकिन आज हिन्दोस्तान में उनका कोई नामलेवा तक नहीं. वशिष्ठ नारायण सिंह पटना यूनिवर्सिटी से लेकर अमेरिका के बर्कले यूनिवर्सिटी तक सुर्खियों में रहे, IIT में भी पढ़ाया, गणित की थ्योरी को लेकर दुनियाभर में चर्चा में रहे, लेकिन बिहार के लाल को बिहार ने ही भूला दिया. आज तक एक सम्मान नहीं मिला.

अब जरा इनकी शख्सियत को जान लेते हैं

बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर में 2 अप्रैल, 1942 को जन्मे डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह ने पटना यूनिवर्सिटी से एमएससी की पढ़ाई की थी. इतने तेज और होशियार कि यूनिवर्सिटी ने पहली बार नियम बदले और उन्हें जल्दी-जल्दी पोस्ट ग्रेजुएशन दे दी. साल 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की. जिसके बाद वह वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए. वशिष्ठ नारायण ने नासा में भी काम किया, लेकिन वो 1971 में भारत लौट आए.

1971 में भारत लौटे वशिष्ठ नारायण

भारत लौटने के बाद वशिष्ठ नारायण ने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में नौकरी की. 1973 में उनकी शादी हो गई. शादी के कुछ समय बाद वह मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित हो गए. इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद उनकी पत्नी ने उनसे तलाक ले लिया. इसके बाद से अबतक उन्होंने बीमारी और मुफलिसी में ही अपनी जिंदगी गुजारी. राजधानी पटना के कुल्हड़यिा कॉम्पलेक्स में अपने भाई के एक फ्लैट में गुमनामी का जीवन बिताते रहे महान गणितज्ञ के अंतिम समय तक के सबसे अच्छे दोस्त किताब, कॉपी और पेंसिल ही रहे.

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अब वशिष्ठ नारायण सिंह तो नहीं रहे तो खानापूर्ति करते हुए बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने उनके निधन पर शोक जताया और अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान से करने का ऐलान किया.

पीएम मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जताया है, उन्होंने कहा है कि वशिष्ठ नारायण सिंह के जाने से देश ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक विलक्षण प्रतिभा को खो दिया.

गूगल से लेकर फेसबुक तक जिस बुनियाद पर चलते हैं और दुनिया में अपने देशों का नाम रोशन करते हैं वो है मैथ्स.और इसी मैथ्स के महारथी थे वशिष्ठ नारायण सिंह. जब हम ऐसे लोगों, ऐसे असेट्स की कद्र नहीं कर सकते तो हम भूल जाइए कि हम कभी अपना एप्पल बनाएंगे, अपना गूगल खड़ा करेंगे और दुनिया में अपनी हनक होगी.

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