कैमरा: शिव कुमार मौर्या
एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम
याद कीजिए फरवरी, 2018 की बड़ी हेडलाइन- घपलेबाज नीरव मोदी का पासपोर्ट रद्द
यानी वो इंडियन पासपोर्ट पर यात्रा नहीं कर पाएगा. मतलब वो बचके जाएगा कहां? उसके ठिकानों पर रेड हो रही है, जांच एजेंसियां मुस्तैदी से काम में जुटी हैं, करोड़ों-अरबों का सामान जब्त किया जा रहा है.
बड़ी-बड़ी बातें. हमने भी मान लिया कि नीरव मोदी ने कड़क सरकार से पंगा ले लिया है, अब उसकी खैर नहीं.
क्यों नहीं दी विदेश ने तवज्जो?
लेकिन पांच महीने बाद की हेडलाइंस पर नजर डालिए. बंदा अब भी इंडियन पासपोर्ट पर सफर कर रहा है. पता ही नहीं कि उसके पास कितने पासपोर्ट हैं- 1... 2... 6..?
शायद नए पासपोर्ट तो जारी हुए, लेकिन पुराने रद्द नहीं हुए. शायद इंटरपोल चार्जशीट फाइल करने का इंतजार करता रहा और उसने रेड कॉर्नर नोटिस जारी ही नहीं किया.
सीबीआई ने अमेरिका, इंग्लैंड, बेल्जियम, फ्रांस, सिंगापुर और यूएई को नीरव मोदी के पासपोर्ट डीटेल्स भेजे, लेकिन शायद उन्होंने कोई तवज्जो ही नहीं दी. और ये तवज्जो मिलती है दरख्वास्त करने वाले देश की डिप्लोमेटिक औकात के आधार पर. यानी अमेरिका, इंग्लैंड को छोड़ भी दें, तो बेल्जियम और सिंगापुर भी हमें इस लायक नहीं समझते कि वो हमारी किसी दरख्वास्त को तवज्जो दें.
अब तो इस तरह की बात भी हो रही है कि इतने दिनों में शायद उसने किसी दूसरे देश की नागरिकता ले ली हो और वो शायद हमारे हत्थे कभी आए ही नहीं.
उधर ताबड़तोड़ छापेमारी का क्या नतीजा रहा- खोदा पहाड़ निकला चूहा? जब्त सामान की असली कीमत बताई गई कीमत का 10 फीसदी भी नहीं निकली.
कुल मिलाकर, अब हमें जो समझ में आ रहा है, वो ये कि नीरव तो हमेशा के लिए ठेंगा दिखा गया. अब लो, गई भैंस पानी में. लुटिया डूबी, अरबों की चपत लगी और कागजी जांच में करोड़ों का फटका और लगेगा.
कहानी में ट्विस्ट
जिस पंजाब नेशनल बैंक को नीरव ने चूना लगाया, उसकी अपनी जांच रिपोर्ट के कुछ नमूने देखिए:
- जिस ब्रेडी हाउस ब्रांच से सारा घपला शुरू हुआ, वो पीएनबी की स्टार ब्रांच थी. स्टार इसीलिए कि वहां से अचानक ट्रांजेक्शन काफी बढ़ गया, लेकिन किसी को कोई शक नहीं हुआ.
- हजारों करोड़ रुपए के घपले में शामिल गोकुलनाथ शेट्टी भाई साहब सात साल से अपनी कुर्सी पर डटे थे, जबकि नियम तीन साल में ट्रांसफर का है.
- पीएनबी की जांच में सामने आया कि बैंक के 54 कर्मचारी मिले हुए थे, लेकिन बलि का बकरा कुछ प्यादों को बना दिया गया.
- स्टार ब्रांच ने साल में 2 बार ही कंप्लायंस रिपोर्ट भेजी और हेडक्वाटर्स से सब ओके हो गया. 2016 से रिजर्व बैंक के निदेर्शों की अनदेखी होती रही, लेकिन फिर भी सब ओके.
सवाल कई, जवाब नहीं
हाय रे मजबूत बैंकिंग सिस्टम और सुपर अलर्ट जांच एजेंसियां!
तो क्या हम मान लें कि नीरव मोदी चपत लगाकर हाथ से निकल गया?
मेरे मन में अब कुछ अदने से सवाल आ रहे हैं:
- किसी के पास इतने पासपोर्ट कैसे हो सकते हैं? हमें तो एक बनाने में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं.
- नीरव मोदी से जब्त सामान की कीमत इतनी कम कैसे हो गई? या फिर वो शुरू से ही दो कौड़ी का था और हवा बनाने के लिए हमें गलत कीमत बताई गई?
- क्या हमारी एजेंसियों को पहले नहीं पता था कि इंटरपोल बिना चार्जशीट के रेड कॉर्नर नोटिस जारी नहीं करता?
- और आखिर में एक और छोटा सा सवाल- कौन है, जो नीरव मोदी को बचाना चाहता है?
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