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पायल तडवी सुसाइड केस: शिक्षण संस्थानों में आम है जातिगत भेदभाव

‘पायल तडवी खुदकुशी मामला स्टेट स्पॉन्सर्ड क्राइम है’

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम

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पायल तडवी ने कथित तौर पर अपनी सीनियर्स की रैगिंग से परेशान होकर मुंबई में अपने कॉलेज के हॉस्टल में खुदकुशी कर ली. तीनों आरोपी डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके बाद तीनों डॉक्टरों को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन देश में उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव के मामले पहले भी सुर्खियों में रहे हैं.

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फिलहाल टीआईएसएस में पढ़ाई कर रही प्राची संभाजी शारदा का कहना है कि “अक्सर उच्च शिक्षण संस्थानों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आरक्षण कोटे से दाखिले के बाद से ही इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. प्रोफेसर आपके बजाय अपनी जाति के छात्र को ज्यादा काम देता है.”

डॉक्टर पायल के केस की बात करें तो उन्होंने कहा था कि उन्हें ऑपरेशन थियेटर में जाने की मनाही थी. उन्हें मामूली काम दिए जाते थे. उससे वो कुछ नया नहीं सीख सकती थी. ऐसे बहुत कम छात्र होते हैं जो इन सब के खिलाफ आवाज उठाते हैं. आवाज उठाने के बाद उन्हें निशाना बनाया जाता है. जिसके बाद वे तनाव में आ जाते हैं और धीरे-धीरे वो डिप्रेशन बढ़ता जाता है, जो आखिरकार खुदकुशी की वजह बनता है.  
प्राची संभाजी शारदा, छात्र, टीआईएसएस
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यूनिवर्सिटी के छात्र कुलदीप कुमार का कहना है कि सिर्फ छात्र ही नहीं प्रोफेसर भी जाति को लेकर भेदभाव करते हैं.

“इस देश में शिक्षण संस्थान के प्रोफेसरों के अंदर भी जातिवाद है. वो एक बैकग्राउंड से आते हैं. ऊंचे कास्ट के प्रोफेसर नीची जाति के छात्रों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते.”

कुलदीप का ये भी कहना है कि “आजादी के इतने सालों बाद भी जो तबका शिक्षा से वंचित है, उसका तो शिक्षण संस्थानों में स्वागत होना चाहिए था.”

इन समस्याओं से निपटने के लिए डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर और समाजसेवी श्रीकांत चिंताला का कहना है कि “जिन्हें भी राज्य स्तर पर या शिक्षण संस्थानों में परेशान किया जा रहा है, भेदभाव किया जा रहा है, उनके लिए हर यूनिवर्सिटी में डिसिप्लिनरी कमेटी के अलावा एक अलग कमेटी होनी चाहिए.”

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