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फूलपुर उपचुनाव: BSP-SP आए साथ, ये बनेगा 2019 का टेस्ट ग्राउंड?

क्विंट की ग्राउंड रिपोर्ट

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो लोकसभा सीटों- फूलपुर और गोरखपुर में चुनाव नजदीक आते-आते हर दिन समीकरण बदलते दिख रहे हैं. 11 मार्च को चुनाव होना है और उससे पहले बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को समर्थन देने की घोषणा कर दी है.

फूलपुर में 2014 में पहली बार बीजेपी ने जीत हासिल की थी. केशव प्रसाद मौर्य ने इस सीट पर जीते थे. इसलिए भी बीजेपी ने इस सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है. लेकिन बीजेपी के लिए ये राह आसान नहीं है.

कांग्रेस, एसपी और बीएसपी तीनों इस चुनाव के जरिए अपनी मजबूती टेस्ट करना चाहते हैं. ऐसा कहा जा सकता है कि ये उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए बड़ी परीक्षा है. एक बार फिर इस चुनाव में मुख्य तौर पर जाति कार्ड पर ही जोर है.

फूलपुर संसदीय क्षेत्र में ओबीसी की तादाद ज्यादा है और इसमें भी कुर्मी वोटरों को निर्णायक माना जाता है. इसलिए अब कुर्मी वोटरों को अपने पाले में करने की लड़ाई तेज हो गई है. यहां बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती इसलिए उसने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के नाम आने के बाद पत्ते खोले और पटेल वोटों को ध्यान में रखते हुए बनारस के कौशलेंद्र सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाया. कौशलेंद्र के सामने होंगे, एसपी के नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल. कौशलेंद्र के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें बनारस से इंपोर्ट किया गया है. यानी उन पर बाहरी होने का ठप्पा है.

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अब आइए, बीएसपी फैक्टर पर. फूलपुर में डेढ़ लाख दलित वोटर हैं जो तय समीकरणों को हिलाने का दम रखते हैं. अब तक माना जा रहा था कि बीएसपी के चुनाव न लड़ने की सूरत में दलित वोटर, कांग्रेस के पाले में जा सकते हैं. लेकिन अब जब मायावती ने एसपी के समर्थन का पैंतरा खेल दिया है तो समीकरणों की बिसात पर काफी कुछ बदल सकता है.

क्विंट को अपनी ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान ऐसे कई लोग मिले जिन्होंने कहा कि चार साल के दौरान फूलपुर में ज्यादा कुछ हुआ नहीं हैं. वहीं ऐसे लोगों की भी ठीक-ठाक संख्या थी जिनसे बात करके ये इशारा मिला कि मामला अब भी जातिगत समीकरणों के इर्द-गिर्द ही रहने वाला है.

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