जाने माने ऑर्थो सर्जन और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. मैथ्यू वर्गीज ने चेतावनी दी है कि अभी कोरोना महामारी थमने वाली नहीं. अभी ये और बढ़गी. उन्होंने ये भी बताया कि इस महामारी का पीक कब आ सकता है. ऐसे में उन्होंने हर शख्स के लिए कोरोना से बचने के चार मंत्र बताए हैं. क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से खास बातचीत में उन्होंने ये बातें कही हैं. इस इंटरव्यू को सबको देखना चाहिए क्योंकि ये कोरोना से बचाने वाला इंटरव्यू साबित हो सकता है.
लॉकडाउन से हमें फायदा हुआ या नहीं? बढ़ते मामलों को देखकर हमें लॉकडाउन बढ़ाना चाहिए क्या? भारत में कम मौतों को कैसे देखें? कोरोना का इलाज कब तक आ सकता है? इन तमाम सवालों के जवाब डॉ. मैथ्यू ने बड़ी बेबाकी से दिए हैं इस इंटरव्यू में.
'देश में हो रही कम्युनिटी स्प्रेडिंग'
इंटरव्यू में डॉ. मैथ्यू ने साफ कहा कि कोरोना की देश में कम्युनिटी स्प्रेडिंग हो रही है. जब उनसे ये पूछा गया कि सरकार तो कम्युनिटी स्प्रेडिंग से इंकार करती है तो डॉ. मैथ्यू ने कहा कि 60% लोगों में लक्षण नहीं दिख रहे, साथ ही जब कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में दिक्कत होने लगे तो ये समझिए कि कम्युनिटी स्प्रेडिंग है. डॉ. मैथ्यू के मुताबिक जुलाई में कोरोना पीक पर जा सकता है.
दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफन्स अस्पताल में कंसलटेंट ऑर्थो सर्जन डॉ. मैथ्यू वर्गीज पब्लिक हेल्थ के बड़े एक्सपर्ट हैं. दुनिया भर की सरकारें और संस्थाएं डॉ. मैथ्यू से सलाह लेती हैं. बिल गेट्स ने 2018 में डॉ. मैथ्यू को दुनिया के पांच रियल लाइफ हीरोज में से एक बताया था.
कोरोना से बचने के चार मंत्र
- शारीरिक दूरी बनाएं रखें
- मास्क पहनिए
- मास्क पर बार-बार हाथ न लगाएं
- किसी चीज पर हाथ लगाया है तो साबुन से धो लीजिए
डॉ. मैथ्यू कहते हैं 'कोरोना के कारण काम बंद नहीं कर सकते. इसीलिए लॉकडाउन को भी खोला गया है. काम पर जाइए लेकिन सुरक्षा के वही पुराने कदम उठाइए-सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, हाथ की सफाई और चेहरा छूने से बचना. सामने वाला पता नहीं संक्रमित है या नहीं, इसलिए मान कर चलिए कि हर व्यक्ति संक्रमित है और उसी लिहाज ऐहतियात बरतिए. मैं खुद रोज अस्पताल जा रहा हूं, रोज कम से कम 60 मरीजों को देख रहा हूं. लेकिन ऐहतियात के साथ.'
मास्क पहनना और सही तरीके से पहनना बेहद जरूरी है. समझदार लोग भी मास्क पहनने में गड़बड़ी करते हैं. सुविधाजनक मास्क यानी खराब मास्क है. वॉल्व वाले मास्क से खुद तो बच सकते हैं लेकिन दूसरों को संक्रमण का डर रहता है.डॉ. मैथ्यू वर्गीज, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट
बेड की जरूरत किसे है?
डॉ. मैथ्यू के मुताबिक सबको बेड की जरूरत नहीं है. जब सांस फूलने लगे, तेज बुखार हो, जब लगे कि बीमारी बढ़ रही है तभी बेड चाहिए. धमनियों में खून जम जाने की वजह से सांस फूलने पर ऑक्सीजन चाहिए और यही मुख्य समस्या है. पाइप से ऑक्सीजन की सुविधा अस्पतालों में कम है. तो असल में ऑक्सीजन बेड की दिक्कत है. और ये स्थाई समस्या है, क्योंकि हमारा पब्लिक हेल्थ सिस्टम हमेशा से खस्ताहाल है. फिलहाल उपाय ये हो सकता है कि मेकशिफ्ट अस्पताल बनाकर बड़े-बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर इस्तेमाल किए जाएं.
क्या लॉकडाउन से फायदा हुआ, इसे बढ़ाना चाहिए?
डॉ. मैथ्यू का कहना है कि लॉकडाउन की जरूरत नहीं थी. ज्यादा से ज्यादा इसकी जरूरत तैयारी के लिए थी ताकि सबको जागरूक कर सकें, नीतिगत योजना बना सकें. और इसके लिए ज्यादा से ज्यादा दो-तीन हफ्ते के लॉकडाउन की जरूरत थी. दो तीन हफ्ते के लॉकडाउन से मजदूरों का पलायन भी नहीं होता. लॉकडाउन को इससे आगे बढ़ाने से हम Unlock के बारे में दुविधा में फंस गए. अभी भी बैकडोर से लॉकडाउन खोला गया है. सारी चीजें नहीं खुली हैं.
लॉकडाउन करते या नहीं करते, तो भी कोरोना के केस बढ़ते. लॉकडाउन से कोई फायदा भी नहीं हुआ क्योंकि सच्चाई ये है कि कोरोना का ग्राफ लगातार चढ़ता जा रहा है.डॉ. मैथ्यू वर्गीज, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट
अब आगे क्या दिख रहा है?
'लॉकडाउन बढ़ाने का भी फायदा नहीं होगा. बीमारी वक्त के साथ खुद खत्म होगी, तब तक लोगों को बचाना जरूरी है. ये बात सही है कि बाकी देशों की तुलना में हम टेस्ट कम कर रहे हैं. लेकिन अब टेस्ट बढ़ाने से भी फायदा नहीं होगा. बीमारी रोकने के लिए वक्त रहते टेस्ट करना था. टेस्टिंग तब कारगर होती जब बाहर से आए हुए लोगों को टेस्ट कर पाते. एक बार बीमारी फैल जाने के बाद टेस्ट का उतना फायदा नहीं है. अब सिर्फ ट्रैकिंग के लिए ही टेस्टिंग का मतलब है. डबलिंग रेट अगर कम दिख रही है तो इसकी एक वजह ये हो सकती है कि टेस्ट की संख्या कम है.'
भारत में मौतों की संख्या को कैसे समझें?
'बाकी देशों की तुलना में यहां मौतों की संख्या कम है.लेकिन इसकी एक वजह ये है कि कोरोना से हो रही मौतों की सही संख्या का पता लगाना मुश्किल है. कोरोना से पहले जो मौतें हो रही थीं, वो अब भी हो रही हैं. लेकिन अगर उन्हें भी कोरोना हो तो भी रिपोर्ट यही आएगी कि कोरोना नहीं, बाकी बीमारियों से मौत हुई है. हम वैसे भी हर साल होने वाली बहुत सारी मौतों को रिपोर्ट नहीं करते. इसकी वजह है हमारे यहां डेथ की रिपोर्टिंग में होने वाली देरी बहुत ज्यादा है.
हमारे पास मौतों का सरकारी आंकड़ा 2017 का ही है. उसके मुताबिक उस साल यहां 65 लाख मौतें हुई, लेकिन अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के मुताबिक एक करोड़ और ICMR के मुताबिक 80 लाख मौतें हुईं. किस को सही मानें? इस गैप से समझिए कि हम मौतों की सही संख्या का पता लगाने में किस तरह से चुनौती झेल रहे हैं.डॉ. मैथ्यू वर्गीज, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट
कोरोना का इलाज, वैक्सीन कब तक?
डॉ. मैथ्यू बताते हैं कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में किसी भी वायरल बीमारी का इलाज नहीं है. वजह ये है कि वायरस हमारे सेल का हिस्सा बन जाता है, तो उसे मारने के लिए हमें खुद को मारना होगा, अब ये तो संभव नहीं है. हम लक्षणों का इलाज कर सकते हैं. ओवरऑल मृत्युदर 0.5% कम से है तो ये पता करना भी मुश्किल है कि मरीज खुद ठीक हुआ है या दवा से. अभी कोरोना की कोई पुष्ट दवा नहीं है, थोड़ी बहुत असर वाली दवा हो सकती है.
जहां तक वैक्सीन की बात है तो हम HIV की वैक्सीन 36 साल बाद भी नहीं निकाल पाए हैं. अगर कोरोना की वैक्सीन बनी तो हो सकता है हर साल लेनी होगी. ऐसा हुआ तो पूरी इकनॉमी इसी में लग जाएगी. कोरोना का वैक्सीन बनना मुश्किल है. जल्द बन जाए, ये तो और भी मुश्किल है. ऐसा हो तो चमत्कार होगा. वैक्सीन बनाने वाली कंपनी मुनाफा भी चाहेगी, जिसका बोझ उठाना किसी भी देश के लिए मुश्किल होगा.डॉ. मैथ्यू वर्गीज, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट
पब्लिक हेल्थ: खर्च नहीं निवेश
डॉ. मैथ्यू कहते हैं कि कोरोना ने सिखाया है कि हेल्थ पर खर्च, खर्च नहीं, निवेश है. आज हमारा हेल्थ सिस्टम ठीक होता तो ये दुर्गति नहीं होती. हेल्थ पर निवेश मानव संसाधन और इकनॉमी को बचाने के लिए होता है. आज निजी क्षेत्र नहीं सार्वजनिक क्षेत्र काम आ रहा है तो कोरोना से सीख लेकर पब्लिक हेल्थ सिस्टम को ठीक करें.
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