हिंदी सिनेमा का सबसे हैंडसम, चार्मिंग और खूबसूरत स्टार कौन है? इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं लेकिन मेरा जवाब है- शशि कपूर. 60 और 70 के दौर के सिनेमा की यादों में डूबी किसी महिला से पूछेंगे तो वो चहक कर बताएगी.
राजेश खन्ना की अदाओं पर मर मिटने का मन करता था. धर्मेंद्र की माचो इमेज एक्साइटमेंट पैदा करती थी. अमिताभ के गुस्से पर गर्व होता था लेकिन शशि कपूर, उससे तो प्यार करने का दिल करता था, मोहब्बत करने का मन होता था.
‘मेरे पास मां है’
आज भी अगर बॉलिवुड के सबसे मशहूर डायलॉग को लेकर सर्वे करवा लिया जाए तो शर्तिया तौर पर नंबर वन होगा- मेरे पास मां है.
कांपती आवाज में कहे गए ये चार शब्द शायद बॉलिवुड के सबसे ज्यादा बार बोले गए चार शब्द हैं. सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ शशि कपूर का ये डायलॉग हिंदी सिनेमा की सबसे मजबूत और जज्बाती याद है.
लेकिन ये तो हुए हिंदी सिनेमा के स्टार शशि कपूर. लेकिन मैं आपको उन शशि कपूर से मिलवाउंगा जिनसे आप शर्तिया तौर पर अब तक नहीं मिले होंगे.भारत के पहले...सबसे पहले इंटरनेशनल स्टार शशि कपूर से.
इस्माइल मर्चेंट, जेम्स आइवरी और शशि कपूर
शशि कपूर अपने वक्त से बरसों आगे थे. जिस वक्त इंडियन फिल्म इंडस्ट्री देश में ही अपनी पहचान खोज रही थी उस वक्त शशि, इंटरनेशनल सिनेमा में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करवा रहे थे.
इस्माइल मर्चेंट और जेम्स आइवरी की मशहूर प्रोडयूसर-डायरेक्टर जोड़ी के साथ शशि कपूर का एक अलग किस्म का याराना था. इस तिकड़ी ने साथ-साथ 6 फिल्में कीं. द हाउस होल्डर (1962), शेक्सपियर वाला (1965), बाम्बे टॉकीज (1970), हीट एंड डस्ट (1982), दी डिसीवर्स (1988) और इन कस्टडी (1994).
आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि 1965 में बनी शेक्सपियर वाला का म्यूजिक सत्यजीत रे ने दिया था. वही सत्यजीत रे जिन्हें हम शायद सिर्फ एक महान निर्देशक के तौर पर ही जानते हैं. शेक्सपियर वाला ने उसी साल हुए बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में जमकर तालियां लूटीं और फिल्म में ‘मंजुला’ का किरदार निभाने वाली मधुर जाफरी को बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड भी मिला.
1982 में बनी हीट एंड डस्ट बेहद कामयाब इंटरनेशनल फिल्म थी. रिलीज होते ही लंदन के कर्जन सिनेमा में लगी और लगातार ग्यारह महीने तक चली. न्यूयार्क से लेकर सिडनी तक प्रीमियर हुए. फ्रांस के कान फिल्म फेस्टिवल में गई और जमकर तारीफें बटोरीं.
1988 में बनी द डिसीवर्स के हीरो थे पियर्स ब्रॉसनन. वही ब्रॉसनन जो बाद में जेम्स बांड के तौर पर मशहूर हुए. मध्य प्रदेश में शूट हुई इस फिल्म में शशि कपूर ने बड़ी-बड़ी मूंछों वाले राजा चंद्रा सिंह का किरदार निभाया था.
विदेशी निर्देशकों की पसंद- शशि कपूर
शशि ने ऑस्कर विजेता डायरेक्टर गे ग्रीन की अ मैटर ऑफ इनोसेंस (1967), कोनार्ड रूक्स की सिद्धार्थ (1972), स्टीफन फ्रेयर्स की सैमी एंड रोजी गेट लेड(1987) , टोनी गर्बर की साइड स्ट्रीट (1998) और जमील देहलवी की जिन्ना (1998) के अलावा भी कई इंटरनेशनल फिल्में कीं.
इसके साथ उन्होंने बीबीसी रेडियो के कुछ सीरियल्स और एनबीसी के गुलिवर ट्रेवल्स जैसे मशहूर धारावाहिकों में भी काम किया.
बॉलिवुड की बात करें तो त्रिशूल, सुहाग, दीवार, सिलसिला, जैसी कामयाब फिल्मों के साथ शशि कपूर ने कई वो बेहतरीन फिल्में की जो हिंदी सिनेमा की धरोहर हैं. जैसे New Delhi Times (1986).
गुलजार साहब की कलम से निकला ये Political Thriller सिनेमा की किताबों के सबसे जरूरी चैप्टर्स में से एक है. इस फिल्म के लिए शशि कपूर ने बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड जीता था.
लेकिन असल बात ये है कि हिंदी सिनेमा ने एक्टर शशि कपूर के साथ इंसाफ नहीं किया और शायद इसी छटपटाहट को दूर करने के के लिए शशि कपूर ने 1978 में अपनी फिल्म कंपनी बनाई- फिल्मवाला.
एक ‘हट के’ प्रोड्यूसर
फिल्मवाला के बैनर तले एक से एक बेहतरीन फिल्में बनीं. श्याम बेनेगल की जुनून (1978) और कलयुग (1981), अपर्णा सेन की 36 चौरंगी लेन (1981), गोविंद निहलानी की विजेता (1983), गिरिश कर्नाड की उत्सव (1984).
लेकिन पर्दे की पीछे की जिंदगी उतनी आसान नहीं थी. समीक्षकों की जबरदस्त वाहवाही लूटने वाली ये फिल्में टिकट खिड़की पर नाकाम रहीं. शशि कपूर को अपना ये जुनून पूरा करने के लिए जमीन-जायदाद तक बेचनी पड़ी.
1991 में शशि कपूर ने अजूबा डायरेक्ट की. ये पूरी तरह Failed Experiment था. हॉलिवुड अंदाज में शुरु हुई ये मल्टीस्टारर फिल्म अपने अंजाम तक पहुंचते पहुंचते पैसों की किल्लत से जूझने लगी और आधी-अधूरी सी ही बन कर रिलीज हो गई.
शशि कपूर की जिंदगी हैरान कर देने वाला वो सफरनामा है, जो पहाड़ों के झरनों और समंदर के टापुओं से होता हुआ शायद रेगिस्तान में खत्म होता है.
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वीडियो एडिटर- संदीप सुमन
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