पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को उनके करिश्माई अंदाज के अलावा उनके दमदार भाषणों से भी याद किया जाएगा. सुषमा स्वराज हमेशा अपनी बात को काफी दमदार तरीके से पेश करने के लिए जानी जाती थीं. संसद में कई बार उन्होंने पक्ष और विपक्ष में बैठकर ऐसे भाषण दिए, जिसने उन्हें एक अलग पहचान दे दी. सुषमा 1990 में पहली बार सांसद चुनी गईं. इसके बाद पूरे देश ने उन्हें संसद में एक दमदार नेता की तरह देखा.
वैसे तो अपने लंबे और शानदार राजनीतिक करियर में सुषमा ने कई भाषण दिए, लेकिन उनके कुछ भाषण ऐसे रहे जिन्हें आज भी याद किया जाता है. ऐसा ही एक भाषण उन्होंने 1996 में दिया था. जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार गिरी थी और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. इस मौके पर सुषमा ने संसद में दिए भाषण में कहा था -
‘मैं यहां विश्वासमत का विरोध करने के लिए खड़ी हुई हूं. आज बिखरी हुई सरकार है और एकजुट विपक्ष है. अध्यक्ष जी ये इतिहास में पहली बार नहीं हुआ है, जबकि राज्य का सही अधिकारी राज्य के अधिकार से वंचित कर दिया गया हो. त्रेता युग में यही घटना भगवान राम के साथ भी घटी थी. उन्हें राजतिलक करते-करते वनवास दे दिया गया था. द्वापर में यही घटना धर्मराज युधिष्ठिर के साथ घटी थी, जब धुर्त शकुनी की चालों ने राज्य के अधिकारी को राज्य से बाहर कर दिया था. अध्यक्ष जी जब एक मंथरा और एक शकुनी राम और युधिष्ठिर जैसे महापुरुषों को सत्ता से बाहर कर सकते हैं तो हमारे खिलाफ तो कितनी मंथराएं और कितने शकुनी सक्रिय हैं. हम राज्य में कैसे बने रह सकते थे? ’
सुषमा स्वराज ने पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के विश्वास मत प्रस्ताव के दौरान भी एक दमदार भाषण दिया था. उनके इस भाषण को एक विपक्षी नेता के तौर पर किसी भी नेता के सबसे दमदार भाषणों में से एक माना जाता है. 1997 में दिए अपने इस भाषण में सुषमा ने कहा था-
‘अध्यक्ष जी पिछले 10 दिनों में इस देश के राजनैतिक रंगमंच पर जो कुछ भी घटा है वो बेहद शर्मनाक है. वो 10 दिनों का इतिहास धोखाधड़ी और बेवफाई का इतिहास है. जब आज से 10 दिन पहले जब विश्वास प्रस्ताव यहां रखा गया था, तब एक पत्रकार ने पूछा- सुषमा जी आज क्या होगा? मैंने उससे कहा या तो इस सरकार की नाक जाएगी जा जान जाएगी. लेकिन उस दिन मैंने ये कल्पना नहीं की थी कि इस सरकार की एक दिन नाक जाएगी और एक दिन जान भी जाएगी.’
UN में पाकिस्तान को ललकार
भारत के विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज ने यूनाईटेड नेशन में पाकिस्तान को लेकर जो भाषण दिया था, उससे भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया ने उनकी धमक महसूस की थी. उन्होंने अपने इस दमदार भाषण में पाकिस्तान को आतंकवाद की फैक्ट्री कहा था. इस दौरान सुषमा ने कहा था-
'जब तक सीमापार से आतंक की खेती बंद नहीं होगी भारत पाकिस्तान के बीच बातचीत नहीं हो सकती. भारत हर विवाद का हल वार्ता के जरिए चाहता है किंतु वार्ता और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते. इसी मंच से पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पाक और भारत के बीच शांति पहल का एक चार सूत्रीय प्रस्ताव रखा था, मैं उसका उत्तर देते हुए कहना चाहूंगी कि हमें चार सूत्रों की जरूरत नहीं है, केवल एक सूत्र काफी है, आतंकवाद को छोड़िए और बैठकर बात कीजिए.'
‘जिनके घर शीशे के हों...’
सुषमा स्वराज ने यूएन महासभा में पाकिस्तान को लेकर एक बार फिर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए उसे अलग-थलग करने की बात की थी. उन्होंने अपने इस भाषण में कहा था -
‘हमें आतंकवाद का सामना करने के लिए रणनीति बनानी होगी. ये काम हो सकता है. हां यदि कोई देश इस तरह की रणनीति में शामिल नहीं होना चाहता तो हम उसे अलग-थलग कर दें. क्योंकि दुनिया में ऐसे देश हैं, जो बोते भी हैं तो आतंकवाद, उगाते भी हैं तो आतंकवाद, बेचते भी हैं तो आतंकवाद और निर्यात भी करते हैं तो आतंकवाद... आतंकवादियों को पालना कुछ देशों का शौक बन गया है. अध्यक्ष जी पाकिस्तान के पीएम ने भारत के संबंध में कहा कि मेरे देश में मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है. मैं कहना चाहूंगी कि जिनके अपने घर शीशे के हों उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए.’
संयुक्त राष्ट्र को दी थी नसीहत
सुषमा स्वराज अपने बेबाक अंदाज के लिए मशहूर थीं. उनके सामने नेता संसद में बोलने से भी घबराते थे. उन्होंने पिछले साल यूनाइटेड नेशन में भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने यूएन को ही सुधार के लिए नसीहत दे डाली थी. अपने इस भाषण में सुषमा ने कहा था -
‘संयुक्त राष्ट्र दुनिया के देशों का सबसे बड़ा मंच है. लेकिन मैं कहना चाहती हूं कि धीरे-धीरे इसकी गरिमा, महत्व और इसका प्रभाव कम होता जा रहा है. हमें इस बात की चिंता करनी चाहिए कि कहीं इसका हश्र भी रीग ऑफ नेशंस जैसा न हो जाए. उसका पतन इसलिए हुआ था क्योंकि वो सुधारों के लिए तैयार नहीं था. हमें ऐसे सुधार करने चाहिए जो दिल और दिमाग में बदलाव लाएं. आज सुरक्षा परिषद दूसरे विश्व युद्ध के पांच विजेताओं तक ही सीमित है. सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रक्रिया जल्द शुरू कर देनी चाहिए. भारत वसुधेव कुटुंबकम पर विश्वास रखता है. विश्व एक परिवार है. संयुक्त राष्ट्र को भी परिवार की तर्ज पर चलाया जाना चाहिए. परिवार प्यार से चलता है व्यापार से नहीं.’
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