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#TalkingStalking एपिसोड 5 | चुप रहकर भी ‘चुप्पी’ तोड़ी जा सकती है

इन दो लड़कियों की कहानी सुनना और समझना जरूरी है

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मैं सड़क पार करने के लिए खड़ी थी, जब तीन लोग बाइक पर आए और मेरे सामने खड़े हो गए. उनमें से एक ने मुझे गाल पर थप्पड़ मार दिया.
शालिनी (बदला हुआ नाम)

शालिनी (बदला हुआ नाम) इस हरकत से हैरान रह गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. वो न बोल सकती थी, न सुन सकती थी. मतलब, उस पल वो चीख नहीं पाई. शालिनी ने खुद को काफी असहाय महसूस किया. वो घर गई और सो गई. वो जानती थी कि घर में माता-पिता को अगर इस बारे में बताया तो घर से निकलने की आजादी पर तुरंत बंदिश लग जाएगी. इस घटना ने जिंदगी भर की बुरी यादें जेहन में बसा दीं. वो आज, जब भी सड़क पर निकलती हैं, सावधान रहती हैं.

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शालिनी की तरह रुचि (बदला हुआ नाम) भी न सुन सकती हैं, न बोल सकती हैं. रुचि को भी ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ा जब उनका पीछा किया गया. वो आज भी अपना व्हॉट्सएप और मैसेंजर खोलते हुए कांप जाती हैं. उन्हें एक साल से ज्यादा वक्त तक सायबर स्टॉकिंग का सामना करना पड़ा. स्टॉकिंग करने वाला लड़का भी सुन नहीं सकता था. वो रुचि को पॉर्नोग्राफिक मैसेज भेजने लगा. जब रुचि ने उसका अकाउंट ब्लॉक करने की कोशिश की तो फेक अकाउंट और अलग-अलग नंबर से मैसेज आने लगे.

मुझे फिलहाल स्टॉकिंग का सामना नहीं करना पड़ रहा लेकिन वो घटना मैं भुला नहीं पाती. अगर उसने फिर से स्टॉकिंग शुरू कर दी तो? तब मैं क्या करुंगी?
रुचि (बदला हुआ नाम)

क्विंट ने की मदद

समाज में अक्सर पीड़ित को ही स्टॉकिंग जैसे अपराधों में अपराधी की तरह देखा जाने लगता है जबकि उसका कोई कुसूर नहीं होता. इसका नतीजा ये होता है कि लोग स्टॉकिंग का सामना करने वाले खुलकर इस बारे में बात ही नहीं कर पाते. शालिनी और रुचि को भी यही सब झेलना पड़ा.

यही वजह है कि #TalkingStalking चुप्पी तोड़ो सीरीज के इस खास हिस्से में शालिनी और रुचि की मदद के लिए बुलाया गया सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले जय देहाद्राय को ताकि इन लड़कियों समेत तमाम ऐसे लोगों को उनके हक के बारे में समझाया जा सके.

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हमारे देश में सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि लोग केस दर्ज कराना ही नहीं चाहते. अगर वो रिपोर्ट नहीं करते तो अपराधी को एक और अपराध करने की छूट सी मिल जाती है. इसलिए क्राइम को रिपोर्ट करना सबकी जिम्मेदारी है. 
जय देहाद्राय, वकील, सुप्रीम कोर्ट
दिव्यांगो के लिए कुछ स्पेशल कोर्ट भी हैं. ऐसी अदालतों में इंटरप्रेटर का प्रावधान भी है. अगर ऐसे लोग खुद पुलिस स्टेशन आकर अपराध दर्ज कराने में असमर्थ हैं तो वो भी मुमकिन है. उन्हें बस एक लिखित शिकायत किसी प्रतिनिधि या घरवाले के जरिए थाने भेजनी है. जांच अधिकारी खुद घर आकर उनसे बात करेगा.
जय देहाद्राय, वकील, सुप्रीम कोर्ट

स्टॉकिंग बने गैर-जमानती अपराध

क्या आप जानते हैं कि स्टॉकिंग एक जमानती अपराध है. जिसकी वजह से स्टॉकर, बिना किसी गहरी जांच-पड़ताल के जमानत पर छूट जाते हैं. इसका एक असर ये भी होता है कि स्टॉकिंग का सामना करने वाले लोगों के लिए बड़ा खतरा पैदा हो जाता है जैसे एसिड अटैक, रेप या हत्या तक.

यही वजह है कि क्विंट ने वर्णिका कुंडू के साथ मिलकर change.org पर एक पिटीशन जारी की है. क्विंट इस पिटीशन के जरिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह से अपील करता है कि स्टॉकिंग को एक गैर-जमानती अपराध बनाने संबंधित कानून जल्द से जल्द लाया जाए.

कैमरामैन- अभय शर्मा, पुनीत भाटिया, शिव कुमार मौर्या, त्रिदीप मंडल

वीडियो एडिटर- राहुल सांपुई

प्रोड्यूसर- गर्विता खैबरी

इंटरप्रेटर- किटी गुप्ता

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