ADVERTISEMENTREMOVE AD

तेजस्वी यादव | क्रिकेट के मैदान से राजनीति के अखाड़े तक का सफर

अररिया, जहानाबाद में तेजस्वी यादव की ये जीत बहुत कुछ कहती है

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर- संदीप सुमन और पूर्णेन्दु प्रीतम

कहते हैं सियासत बच्चों का खेल नहीं, लेकिन बिहार की सियासत में 2019 चुनाव की जो स्क्रिप्ट तैयार हो रही है, उसके कुछ पन्ने, एक युवा लिख रहा है. 29 साल का एक लड़का जिसने क्रिकेट का मैदान छोड़कर, राजनीति के अखाड़े में उतरना पसंद किया. बात लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव की.

क्रिकेट से राजनीति में एंट्री

भले ही अररिया लोकसभा चुनाव की गूंज गोरखपुर में योगी की हार के सामने कम सुनाई दी हो, लेकिन तेजस्वी की इस जीत ने चुपके से राजनीति के दो चाणक्यों को भारी शिकस्त दे डाली है.

अररिया, जहानाबाद में तेजस्वी यादव की ये जीत बहुत कुछ कहती है
तेजस्वी, अपने सियासी दांव से फिलहाल तो शाह और नीतीश को पटखनी देते दिखते हैं
(फोटो: द क्विंट)

तो अब सवाल उठता है कि क्या तेजस्वी यादव, बिहार की राजनीति के लालू वर्जन 2.0 बन गए हैं? तेजस्वी यादव की ये जीत बहुत कुछ कहती है. लेकिन, इस जीत तक पहुंचने से पहले के सफर को समझेंगे तो इस जीत को भी पहचान पाएंगे.

एक क्रिकेटर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले तेजस्वी को राजनीति विरासत में मिली. 2015 में वैशाली जिले के राघोपुर से वो पहली बार विधायक चुने गए. उन्होंने बीजेपी के सतीश कुमार को हराया. ये वही सतीश कुमार थे, जिन्होंने साल 2010 के चुनाव में तेजस्वी की मां राबड़ी देवी को हराया था. तेजस्वी ने हार का बदला ले लिया.

आरजेडी 2015 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कुछ लालू की सियासी मजबूरियां और कुछ खुद तेजस्वी में दिखती संभावनाएं---दोनों ने मिलकर तेजस्वी को बिहार का डिप्टी सीएम बना दिया. आरजेडी में नई जान आ गई.

सोशल मीडिया पर RJD की लालटेन की रोशनी

तेजस्वी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव और अटैकिंग दिखते हैं. तेजस्वी की रणनीति का ही नतीजा रहा कि लालू भी हर बात फेसबुक, ट्विटर के जरिए लगातार रखने लगे. वक्त की डिमांड, सोशल मीडिया की अहमियत को तेजस्वी ने भांपा और फिर आरजेडी की लालटेन की रोशनी को ट्विटर से लेकर फेसबुक तक बिखेरने लगे.

अररिया, जहानाबाद में तेजस्वी यादव की ये जीत बहुत कुछ कहती है
लालू भी हर बात फेसबुक, ट्विटर के जरिए लगातार रखने लगे.
(फोटो: twitter screengarb)

लेकिन तेजस्वी के सिर पर ये ताज ज्यादा दिन तक सजा न रह सका. 20 महीने के अंदर ही राजनीति ने करवट ली. तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. और सीएम नीतीश कुमार, महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ चले गए.

अररिया, जहानाबाद में तेजस्वी यादव की ये जीत बहुत कुछ कहती है
सीएम नीतीश कुमार, महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ चले गए.
(फोटो: PTI)

नुकसान या फायदा?

ये एक बड़ा सियासी नुकसान था. लेकिन पीछे मुड़कर देखें तो शायद सबसे बड़ा फायदा. जैसे अंग्रेजी में कहते हैं- Blessing in disguise. यानी जो हुआ अच्छा हुआ. क्योंकि यही वो वक्त था जब आहिस्ता-आहिस्ता तेजस्वी, राजनीति की खुरपेंच से लेकर उसकी कलाबाजियां सीख रहे थे. बहुत थोड़े वक्त में वो लालू के बेटे तेजस्वी से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बन गए. महागठबंधन टूटने के बाद तेजस्वी का विधानसभा में दिया भाषण ही देखिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अपना दम दिखाने का एक और मौका तेजस्वी को बहुत जल्द मिला....हालांकि, उन्होंने ये मौका चाहा नहीं होगा. चारा घोटाले में आरोपी लालू यादव को जेल जाना पड़ा और सवाल उठा कि राजनीति में फ्रेशर तेजस्वी, सियासत के पके चावल यानी नीतीश कुमार और पैर जमा चुकी बीजेपी का सामना कैसे कर पाएंगे? लेकिन, तेजस्वी ने इम्तेहान दर इम्तेहान खुद को बड़ा किया.

तेजस्वी की परीक्षा

तेजस्वी का पहला दांव रहा- हिंदुस्तान आवाम पार्टी (हम) के अध्यक्ष और नीतीश कुमार के पुराने साथी जीतनराम मांझी को एनडीए से अलग करना. मांझी दलित नेता के तौर पर जाने जाते हैं.

अररिया, जहानाबाद में तेजस्वी यादव की ये जीत बहुत कुछ कहती है
हिंदुस्तान आवाम पार्टी (हम) के अध्यक्ष जीतनराम मांझी और तेजस्वी.
(फोटो: PTI)

तेजस्वी का दूसरा दांव था नीतीश कुमार के खिलाड़ी को अपने पाले में लाना. तेजस्वी की कोशिशों ने जेडीयू के एमएलए सरफराज आलम को अपने खेमे में झटक लिया. उन्हें अररिया लोकसभा उपचुनाव के मैदान में उतारा गया. सरफराज चुनाव में महज उतरे ही नहीं उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार को चुनावी मैदान से आउट भी कर दिया.

अररिया, जहानाबाद में तेजस्वी यादव की ये जीत बहुत कुछ कहती है
तेजस्वी के साथ आरजेडी के सरफराज आलम के साथ अररिया में उपचुनाव के प्रचार में.
(फोटो: @yadavtejashwi)
ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन सब कुछ बेहतर ही रहा हो, ऐसा भी तो नहीं. अपने हिस्से की चुनौतियां तो उनके सामने भी हैं जिसमें से कुछ में वो नाकाम रहे. याद कीजिए तेजस्वी की परीक्षा की वो घड़ी जब गठबंधन टूटने के बाद उन्होंने विधानसभा में बहुमत साबित करने की ताल ठोकी थी लेकिन वो असफल रहे.

तेजस्वी ने उपचुनाव जीत कर खुद को साबित तो कर दिया है लेकिन तेजस्वी का असल टेस्ट अब शुरू होता है. एक तरफ पार्टी को संभालना है. दागदार छवि से दूर रहना है और आखिर में 2019 की महाभारत में भी बड़ी लड़ाई लड़नी है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×