उत्तर प्रदेश के बागपत में 14 सितम्बर को मजदूरों और किसानों से भरी एक नाव यमुना में डूब गई थी. इस छोटी सी नाव में करीब 40-50 लोग सवार थे. नाव के डूबने से 20 लोगों की मौत हो जाती है. सरकार ने मरने वालों के परिवार को 2 लाख रुपये भी दे दिए.
लेकिन कुछ सवाल थे जिनके जवाब जानना जरूरी था. इन्हीं सवालों को लेकर क्विंट हिंदी की टीम पहुंची बागपत के कांठा गांव. हमें ये समझना था कि आखिर इस हादसे की पीछे क्या वजह हैं? वो कौन सी मजबूरी होती है जो लोगों को अपनी जान दांव पर लगाने देती है?
34 साल के नीतू हादसे के वक्त नाव में ही सवार थे. जिंदगी तो बच गई लेकिन जेहन पर लगे जख्म कब भरेंगे पता नहीं.
नाव बहुत छोटी थी, सिर्फ 15 से 20 लोगों के बैठने की जगह ही होगी, लेकिन इसमें करीब 50 लोग बैठ गए. पांव रखने की भी जगह नहीं थी. नाव थोड़ी ही दूर गई थी कि पानी नाव में भरने लगा. हम लोगों ने नाव चलाने वाले को नाव को वापस किनारे पर ले जाने के लिए कहा. लेकिन जैसे ही नाविक ने नाव घुमाई, वो सीधे नदी में डूब गई.
इस हादसे में नीतू तो बच गए लेकिन उन्होंने अपने पिता को खो दिया.
प्रशासन की लापरवाही ने ली लोगों की जान
वहीं कांठा गांव के रोजुद्दीन इस हादसे के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं. रोजुद्दीन कहते हैं "सरकार इस नाव का ठेका जिसे भी देती है तो उसे ये देखना चाहिए कि नाव मानकों के मुताबिक है या नहीं. नाव में हादसे से निपटने के लिए ट्यूब, रस्सी या और कोई साधन है या नहीं. अगर ये सब नहीं था तो इस हादसे के लिए सरकार और प्रशासन जिम्मेदार है."
नाव के सिवा नहीं कोई साधन
कांठा गांव के गुलफान कहते हैं "इस गांव के ज्यादातर लोग खेती से जुड़े हैं और खेत यमुना नदी के पार हरियाणा में है. खेती के लिए लोगों को छोटी सी नाव पर सवार होकर दूसरी ओर जाना पड़ता है. और तो और पूरे गांव में सिर्फ एक ही नाव थी. सड़क से जाने का कोई रास्ता नहीं है. सड़क के रास्ते जाने के लिए 20 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. जिसके लिए कोई भी साधन नहीं है."
फिलहाल पुलिस ने नाव को अपने कब्जे में ले लिया है. और अभी कोई भी काम के लिए खेतों पर नहीं जा पा रहा है. सवाल ये है कि रोजगार के लिए कब तक लोग इस तरह से जान पर खेलते रहेंगे?
वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
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