उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के एक गांव बासेपुर के किसानों की हालत अजीब है. वो ना रात को सोते हैं ना दिन को. बस चौबीसों घंटे हाथ में लाठी और खेतों में दौड़, कई महीनों से यही चल रहा है. इसी गांव के एक किसान से जब पूछा तो बोले ये हालत सिर्फ उनकी नहीं बल्कि पूरे गांव की है.
मैंने जब इसका पता लगाया तो हैरान रह गया कि किसानों के सिर पर कैसे बिन बुलाई मुसीबत आ गई है. मैंने जब गांव-गांव पता लगाया तो देखा ये किसी एक गांव का किस्सा नहीं बल्कि सैकड़ों गांवों में यही हालात है. ये दिक्कत है उन पशुओं की वजह से जो उनकी फसलों को रौंद रहे हैं, बर्बाद कर रहे हैं. लेकिन ये पशु इन लोगों के नहीं हैं. दरअसल कोई इन पशुओं के झुंड के झुंड, चोरी-छिपे आसपास के गांवों में छोड़ रहा है.
कौन हैं ये लोग? क्यों ये अपने पशुओं को सरे गांवों में खदेड़ रहे हैं? ये साजिश है या फिर कोई और कहानी.. मैंने जब इसका पता लगाया तो आंखें खोलने वाली सच्चाई सामने आई.
रात के अंधेरे में ये क्या हो रहा है? यकीन करना मुश्किल है. गाय को बचाने के अभियान के साइड इफेक्ट ऐसे भी हो सकते हैं?
फसल को पशुओं से बचाने की लड़ाई
हर तरफ हंगामा है. पशुओं और खासतौर पर गायों को बचाने का. लेकिन इसके चक्कर में पशुओं को लेकर अनजाना डर भी लोगों में बैठ गया है. दो सालों में कई जानें भी इस सक्रियता की वजह से गई हैं.
गाजीपुर का हाल बताते हैं आपको. यहां गांवों में लोग रात का अंधेरा होते ही लाठी लेकर अलर्ट हो जाते हैं. ये रात्रिजागरण होता है पशुओं के झुंड के हमले से गांव और फसलों को बचाने के लिए.
क्विंट हिंदी की टीम ने इस बात की पड़ताल शुरू की कि रात के अंधेरे में पशुओं के झुंड आते कहां से हैं? तो पता लगा कि बहुत से पशु पास के ही गांवों के हैं जिन्हें जानबूझकर अंधेरे में दूसरे गांवों में छोड़ा जा रहा है. ये झुंड खेत के खेत बर्बाद कर देते हैं. खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, थोड़ी नजरें बचीं और फसल सफाचट.
लेकिन इसकी वजह क्या है क्यों लोग अपने गाय, बैल, बछड़े, सांड दूसरे गांवों में छोड़ रहे हैं?
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की तरफ से गोहत्या रोकने के फरमान के बाद यहां बूढ़ी गाय, सांड और बछड़े काफी बढ़ गए हैं. स्थानीय भाषा में उन्हें छुट्टा गाय कहा जाता है. ऐसी गाएं किसानों के किसी काम की नहीं रहती. लेकिन पशुओं की खरीद-बिक्री पर सख्ती की वजह से वो बेची भी नहीं जा सकती. इस बोझ से बचने के लिए किसान पशुओं को आवारा छोड़ रहे हैं. फसलों को बचाने के लिए पड़ोसी गांवों में इन्हें छोड़ा जा रहा है.
गौरक्षकों की सक्रियता के साथ पुलिस और अधिकारियों की तरफ से होने वाली वसूली ने भी पशुओं का व्यापार चौपट कर दिया है. किसान नाराज और परेशान हैं. उनका कहना है कि पहले छुट्टा पशुओं को मेले में बेचकर पैसे मिल जाते थे. लेकिन अब कोई खरीदार नहीं है. नतीजा बुरी आर्थिक स्थिति.
पशुओं की वजह से झगड़े-मारपीट
आवारा पशु गांव में लोगों के बीच झगड़े की वजह बन रहे हैं. मऊ में इंदा नाम की ग्रामीण महिला ने क्विंट हिंदी को बताया कि ठाकुर और ब्राह्मण, दूसरी जातियों के किसानों के खेतों में आवारा पशुओं को छोड़ देते हैं. इसको लेकर लगातार मन-मुटाव और मारपीट के हालात बनते रहते हैं. इसके अलावा मुस्लिम किसानों के सामने दोहरी दिक्कत पेश हो रही है. मुस्लिम किसानों का मानना है कि गोवंश के पशुओं को मारपीट कर खदेड़ने से उन पर मुसीबत आ सकती है.
बीफ एक्सपोर्ट घटा
भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीफ एक्सपोर्टर है लेकिन हाल के महीनों में अवैध बूचड़खानों को लेकर चले अभियान का असर इस पर पड़ा है.
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, दो साल में बीफ एक्सपोर्ट एक अरब डॉलर तक घट गया है. किसानों को पशु बेचने में दिक्कत हो रही है और इससे दूध महंगा होगा. साथ ही साथ लेदर एक्सपोर्ट भी 6.5 अरब डॉलर से घटकर 4.5 अरब डॉलर हो गया है.
यही नहीं, अगर जल्द ही पाबंदी नहीं हटाई गई तो किसानों की स्थिति काफी खराब हो जाएगी. इधर, गोरक्षा के नाम पर किसानों से वसूली भी खूब हो रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में हर गाय के लिए 20,000 रुपये तक वसूले जा रहे हैं.
वध के लिए पशुओं की बिक्री से पाबंदी हटेगी ?
पशुओं की बढ़ती तादाद और उसकी वजह से किसानों को हो रहे नुकसान ने सरकार को झकझोर दिया है. खबरें हैं कि किसानों के गुस्से को कम करने के लिए सरकार स्लॉटर हाउस के लिए पशुओं की बिक्री पर लगी पाबंदी हटाने की तैयारी में है. हालांकि अभी इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लगी है. लेकिन रिपोर्ट हैं कि कुछ दिनों के अंदर सरकार स्लॉटर के लिए बिक्री पर लगा बैन हटा लेगी. इसके दायरे में गाय, बैल, सांड, बछड़े, बछिया और ऊंट जैसे पशु आएंगे.
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