वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
देवी योघा ने ट्वीटर पर लिखा "औरतों को तुरंत इंसाफ चाहिए, अब महिलाओं पर हमला करने वाले लोगों में डर पैदा होगा"
श्वेता चौबे ने कहा- "अपराधी न्यायिक व्यवस्था में कमियों का फायदा उठाते हैं. फर्क नहीं पड़ता कि एनकाउंटर फेक है या नहीं"
ऋषि मिश्रा कहते हैं- "उन्नाव में लड़की को जलाने वालों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए"
ये सभी लोग हैदराबाद रेप और मर्डर के 4 आरोपियों के एनकाउंटर की बात कर रहे हैं.
जहां कई लोग इस एनकाउंटर पर सवाल भी उठा रहे हैं, इसे कानून का मजाक ठहरा रहे हैं. देवी योघा, श्वेता चौबे और ऋषि मिश्रा जैसे आम लोग एनकाउंटर को सही बता रहे हैं.
लेकिन जरा गौर कीजिए की ये लोग असल में क्या कह रहे हैं.
जब श्वेता चौबे कहती हैं- “अपराधी न्यायिक व्यवस्था में कमियों का फायदा उठाते हैं" वो कह रही हैं कि इंसाफ मिलने में देर होती है. रेप सर्वाइवर को क्राइम होने के बाद सालों तक इंसाफ नहीं मिलता.
जब देवी योघा कहती हैं कि "अब महिलाओं पर हमला करने वाले लोगों में डर पैदा होगा" तो वो असल में कह रही हैं कि वो जहां रहती हैं, जहां काम करती हैं, वहां अपराधियों को रोकने के लिए उन्हें कभी पुलिस दिखाई नहीं देती है.
जब ऋषि मिश्रा कह रहे हैं कि "उन्नाव में लड़की को जलाने वालों के साथ एनकाउंटर होना चाहिए" वो साथ-साथ ये भी पूछ रहे हैं कि यूपी पुलिस ने उस लड़की को सुरक्षित क्यों नहीं रखा?
निर्भया की मां आशा देवी भी इस एनकाउंटर को सही बता रही हैं क्योंकि उन्होंने पिछले सात सालों से इंसाफ का इंतजार किया है. अदालतों पर भरोसा किया है. लेकिन अब वो भरोसा दम तोड़ रहा है.
चलिए देखते हैं कि इस एनकाउंटर की आलोचना करने वाले क्या कह रहे हैं
हुमैरा बादशाह कहती हैं- "ये एनकाउंटर हमारी पहले से ही कमजोर कानूनी व्यवस्था को और भी कमजोर करती है. उससे कोई हल नहीं निकलेगा"
शैली वालिया पुलिस से पूछती हैं- "तब पुलिस कहां थी जब डॉक्टर को अगवा किया गया था जब उसका गैंगरेप हुआ? जब उसे जलाया गया? पुलिस की वाहवाही करने से पहले हम ये क्यों नहीं पूछ रहे कि आपने अपना काम ठीक से क्यों नहीं किया?”
अब बताइये एनकाउंटर के साथ खड़े लोग और एनकाउंटर के खिलाफ खड़े लोग क्या एक ही बात नहीं कह रहे हैं? क्या ये दोनों यही नहीं कह रहे कि वो सिस्टम की खामियों से परेशान हैं?
ये जो इंडिया है ना- जहां पुलिस बार-बार फेल होती है. जहां इंसाफ बार-बार फेल होता है. वहां तभी भीड़ के इंसाफ पर अफसोसजनक तरीके से जश्न मनाया जाता है.
लेकिन क्या ये एनकाउंटर पुलिस प्रेशर के कारण हुआ? क्या जानबूझकर न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार किया गया?
संयुक्ता बसु पूछती हैं “क्या हमारे पास इस बात के पक्के सबूत थे कि आरोपी ही गुनहगार हैं? अभी सुनवाई हुई नहीं है को हम किस बात का जश्न मना रहे हैं?
सुमंथ रमन कहते हैं- “अभी उनका अपराध साबित नहीं हुआ था. कानून के तहत उन्हें सबसे कड़ी सचा मिलनी चाहिए थी लेकिन तब... जब गुनाह साबित हो जाए. ये एनकाउंटर चौंकाने वाला है
कुछ और लोग हैं जो पूछ रहे हैं कि एनकाउंटर स्पेशलिस्ट साइबराबाद पुलिस कमिश्नर वीसी सज्जनार इस ऑपरेशन के इंचार्ज कैसे बन गए थे?
हम कभी नहीं जान पाएंगे कि इन 4 आरोपियों ने वाकई में गन छिनकर भागने की कोशिश की थी या नहीं. जिसके कारण उन्हें जान गंवानी पड़ी.
लेकिन ये पक्की बात है कि कानून के दायरे से बाहर सजा की नीति इस देश को नहीं चाहिए.
समझ नहीं आ रहा कि क्यों दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल कह रही थीं- “कम से कम अब ये लोग टैक्स देने वालों के पैसे पर नहीं पलेंगे”
समझ नहीं आ रहा है कि क्यों मायावती से लेकर बाबा रामदेव तक और अनुपम खेर, सायना नेहवाल से लेकर राज्यवर्धन राठौर तक तेलंगाना पुलिस को जो लोग बधाई दे रहे हैं. ये क्यों नहीं कहते कि पूरी न्यायिक प्रक्रिया फॉलो होती तो अच्छा होता.
क्या देशभर में पेंडिंग पड़े हजारों रेप केस का जवाब एनकाउंटर है?
मदद मिल सकती है अगर लाखों पुलिस वाले अपना काम ठीक से करें. अगर सैकड़ों अदालतें इंसाफ दें. ये जो इंडिया है ना क्या इस एनकाउंटर के बाद महिलाओं के लिए ज्यादा सुरक्षित हो गया है?
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