ADVERTISEMENTREMOVE AD

Yeh Jo India Hai Na: इस देश में समलैंगिक कब तक रहेंगे दोयम दर्जे के नागरिक?

Homosexuality: समलैंगिक जोड़ों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा

ये जो इंडिया है ना..क्या यहां समलैंगिक समुदाय के भारतीयों के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा बर्ताव किया जाएगा? नहीं! लेकिन जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी संसद में कहते हैं कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए, तो हम समलैंगिक समुदाय को वो कानूनी अधिकार देने से मना कर रहे हैं, जो दूसरे भारतीय नागरिकों को मिले हुए हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
2018 में सेक्शन 377 को हटाकर, सेक्शुअल ऑटोनॉमी/स्वायतत्ता देकर, सेम सेक्स रिश्तों को मान्यता देकर, भारत ने सही काम किया. अगला सही कदम होगा, सेम सेक्स शादियों को कानूनी मान्यता देना. क्योंकि इससे ऐसे कपल्स को वसीयत, मेनटेंनेंस, गोद लेने, सेहत, बीमा, टैक्स लाभ, पेंशन, घरेलू हिंसा से बचाव और ऐसी कई चीजों में बाकी कपल्स की तरह अधिकार मिलेंगे. ऐसे जरूरी कानूनी अधिकारों के बिना समलैंगिक दोयम दर्जे के नागरिक ही रहेंगे.

समलैंगिक जोड़ों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है. हालांकि, पूर्व में कानून मंत्रालय ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा था- भारत में विभिन्न समुदायों में विवाह "सदियों पुराने रीति-रिवाजों" पर आधारित है. और समलैंगिक संबंधों को "भारतीय परिवार के बराबर मान्यता नहीं दी जा सकती." और. इस बारे में कानून बनाना संसद का काम है, इसलिए अदालतों को इससे दूर रहना चाहिए.

इसके अलावा, सुशील मोदी का कहना है कि समलैंगिक शादियों को वैध बनाने की मांग 'वेस्ट की ओर झुकाव वाले लेफ्ट-लिबरल्स की ओर से आ रही है.' एक तो लेफ्टिस्ट, कैपिटलिस्ट से नफरत करते हैं, तो हमारे 'लेफ्टिस्ट' वेस्ट कैपिटलिस्ट से प्रेरित क्यों हो रहे हैं? मुझे नहीं मालूम. लेकिन, असल में, भारत ने वेस्ट के प्रोग्रेसिव कानूनों को अपनाया है. सबसे बड़ा उदाहरण हमारा संविधान है. तो, वेस्ट से प्रेरित होना अपना कल्चर नहीं है.

मेरी समझ से, ये हमारे होमोफोबिया को छुपाने के बहाने हैं. वही होमोफोबिया, जिसने वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल, जो खुले तौर पर समलैंगिक हैं, को 5 साल से ज्यादा समय से दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनने से रोक रखा है. कृपाल का कहना है कि सरकार केवल उनके सेक्शुअल ओरिएंटेशन के कारण उनकी नियुक्ति में बाधा डाल रही है.

लेकिन पता है क्या, समलैंगिक समुदाय के पास एक समाधान है. इनमें से कुछ लोग शादी और पारंपरिक परिवार के आइडिया में यकीन नहीं करते. वो कहते हैं सेम सेक्स रिश्तों को ही मान्यता दीजिए, कानून की सुरक्षा दीजिए. उसी तरह जैसे आप किसी शादी के रिश्ते को देते हैं या जैसे कि आप लिव इन रिलेशनशिप को देते हैं.

क्या इस विचार पर संसद में बहस होनी चाहिए? क्यों नहीं? ऐसे दूसरे तरह के रिश्तों को कानूनी बनाना ज्यादा बड़ा सुधार होगा और मैं कहता हूं कि ये जो इंडिया है ना इसने अक्सर अपने सुधारों और सहिष्णुता (tolerance) से दुनिया को अचरज में डाला है. जैसे कि गर्भपात कानून से हम दुनिया को फिर चकित कर सकते हैं. हम अपने यहां होमोफोबिया को एक झटके में खत्म कर सकते हैं. समलैंगिक समुदाय के लाखों लोगों को सही मायने में गले लगाकर.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×