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इतनी मर्दाना क्यों है पुलिस? 58 करोड़ के लिए सिर्फ 586 महिला थाने!

जिन महिलाओं को पुलिस में नौकरी मिल भी गई उनमें से ज्यादातर महिला पुलिसकर्मियों की फील्ड ,थाने में ड्यूटी नहीं लगती.

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अगर आप दिल्ली में हैं और आपके पति या ससुराल वालों ने आपका उत्पीड़न किया है, तो आप क्राइम अगेंस्ट वीमन सेल में अपना मुकदमा दर्ज करा सकती हैं. लेकिन ठहरिए. अगर आपने ये सोचा है कि आपकी शिकायत वहां कोई महिला अफसर सुनेंगी और आपके मामले की जांच कोई महिला इनवेस्टिगेटिंग अफसर करेंगी, तो आपको गलतफहमी है.

इस बात के लगभग 50 फीसदी चांस है कि ऐसे मामले की सुनवाई कोई मर्द पुलिस अफसर करेगा, जिसे हो सकता है कि आप अपनी शिकायत भी ढंग से न बता सकें. या हो सकता है कि वो एक मर्द के नजरिए से आपके मामले की जांच करे और आपको कभी न्याय न मिले.

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भारतीय पुलिस में महिलाओं की स्थिति का ये एक स्नैप शॉट यानी झलक है. और फिर ये दिल्ली है, जहां बैठकर गृह मंत्री बार-बार कह रहे हैं कि हर राज्य में पुलिस में कम से कम 33 फीसदी महिला अफसर और कर्मचारी होने चाहिए.

पुलिस फोर्स में महिलाओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने की पहली कोशिश मनमोहन सिंह की सरकार ने 4 सितंबर, 2009 को की. केंद्र सरकार ने पहली बार, तमाम केंद्र शासित प्रदेशों और राज्य सरकारों से कहा कि पुलिस फोर्स में महिलाओं की संख्या 33 फीसदी की जाए. लेकिन 2017 तक के आंकड़े बता रहे हैं कि 2009 से अब तक स्थिति खास नहीं बदली है.
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आंकड़ों पर गौर कर लें

भारत में पुलिस में महिलाओं की संख्या इस समय सिर्फ 7.1 फीसदी है.

ये बात भी अपने आप में बेहद गंभीर है कि भारत की आधी आबादी के खिलाफ होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए देश भर में सिर्फ 586 महिला थाने हैं. यानी हर जिले में एक महिला पुलिस थाना भी नहीं है.

 जिन महिलाओं को पुलिस में नौकरी मिल भी गई उनमें से ज्यादातर महिला पुलिसकर्मियों की फील्ड ,थाने में ड्यूटी नहीं लगती.
बहरहाल, दिल्ली से इसकी दमदार पहल हो सकती है, जिसका संदेश पूरे देश में जाएगा. पुलिस केंद्र सरकार के सीधे अधीन है और गृह मंत्री इस महकमे के मुखिया हैं. केंद्र सरकार की मंशा अगर पुलिस फोर्स में जेंडर संतुलन लाने की है, तो दिल्ली में इस काम को रोकने वाला कोई नहीं है. इसके बावजूद दिल्ली पुलिस से अभी तक ये नहीं हो पाया कि कम से कम क्राइम अंगेस्ट वीमन सेल में पर्याप्त संख्या में महिला अफसरों को नियुक्त करे.

अगर गिनती की बात करें तो 2015 में पति और ससुराल वालों के खिलाफ उत्पीड़न के 162 मामले दिल्ली के क्राइम अंगेस्ट वीमंस सेल में दर्ज हुए. उनमें से 94 मामलों की पड़ताल पुरुष अफसर कर रहे हैं. 2016 में ऐसे कुल 239 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 126 मामले पुरुष अफसरों की जांच में हैं.

 जिन महिलाओं को पुलिस में नौकरी मिल भी गई उनमें से ज्यादातर महिला पुलिसकर्मियों की फील्ड ,थाने में ड्यूटी नहीं लगती.
2015 में पति और ससुराल वालों के खिलाफ उत्पीड़न के 162 मामले दिल्ली के क्राइम अंगेस्ट वीमंस सेल में दर्ज हुए.
(फोटो: iStock)

इस साल जून के अंत तक इस तरह के अपराध के 79 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 35 की जांच का जिम्मा पुरुष अफसरों को है. संसद में इस बारे में पूछे जाने पर गृह मंत्री का जवाब था कि ऐसा महिला पुलिस अफसरों की कमी से हो रहा है.

मेट्रो शहरों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल जितने मामले दर्ज होते हैं, उसका एक तिहाई सिर्फ दिल्ली में रेकॉर्ड होता है. इसलिए ये और भी जरूरी है कि दिल्ली पुलिस में पर्याप्त संख्या में महिला पुलिसकर्मी और अफसर हों. लेकिन अब तक ये हो नहीं पाया है.

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पुलिस में महिलाओं का कम होना अखिल भारतीय समस्या

पुलिस में महिलाओं का कम होना दरअसल अखिल भारतीय समस्या है. ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के मुताबिक भारत में सिर्फ एक लाख 20 हजार महिला पुलिसकर्मी हैं. इनमें भी कुछ राज्यों में हालात बेहद बुरे हैं. जिन महिलाओं को पुलिस में नौकरी मिल भी गई उनमें से भी ज्यादातर महिला पुलिसकर्मियों की फील्ड या थाने में ड्यूटी नहीं लगती. इसलिए आम जनता का जिस पुलिस से सामना होता है, वो बेहद मर्दाना नजर आती है.

मामला और गंभीर तब हो जाता है, जब पीड़ित पक्ष कोई महिला हो. और भारत में ऐसे पीड़ित पक्ष की कमी नहीं है.

क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की इस साल की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की 3 लाख 38 हजार घटनाएं रिपोर्ट हुईं. इसके अलावा बलात्कार के 38,947 केस भी थानों में दर्ज हुए. जाहिर है कि इन मामलों को संवेदनशील तरीके से सुनने के लिए और पीड़िता का बयान अच्छे माहौल में दर्ज करने के लिए ये जरूरी है कि थानों में पर्याप्त संख्या में महिला पुलिसकर्मी हों.
 जिन महिलाओं को पुलिस में नौकरी मिल भी गई उनमें से ज्यादातर महिला पुलिसकर्मियों की फील्ड ,थाने में ड्यूटी नहीं लगती.
भारत में 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की 3 लाख 38 हजार घटनाएं रिपोर्ट हुईं.
(फोटो: iStock)

पुलिसकर्मियों का महिला उत्पीड़न में लिप्त होना भी कोई अनोखी बात नहीं है. अगर किसी थाने या चौकी में एक भी महिलाकर्मी नहीं है, तो इस बात की काफी संभावना है कि कोई पीड़ित महिला अपनी सुरक्षा के मद्देनजर थाने जाना पसंद न करे, या कम से कम रात में तो थाने न ही जाए. इसमें ये जोखिम होता है कि देर से मामला दर्ज होने भर से कई केसों में सबूत मिट जाते हैं या हल्के हो जाते हैं और इसका असर मुकदमे पर भी पड़ता है.

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जनवरी 2015 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तमाम केंद्र शासित राज्यों के लिए ये अनिवार्य कर दिया था कि पुरुष सिपाहियों के पदों को महिलाओं से भरा जाए. ऐसा ही निर्देश बाद में तमाम राज्य सरकारों को भी दिया गया. यही निर्देश इससे पहले 2013 में भी जारी किया गया था. लेकिन जब तक दिल्ली या चंडीगढ़ जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में इस निर्देश पर सख्ती से अमल नहीं होता, तब तक ये सोचना गलत होगा कि राज्य सरकारें इसे लागू करेंगी.

हालांकि बिहार, मध्य प्रदेश, सिक्किम, गुजरात, झारखंड, त्रिपुरा और तेलंगाना की सरकारों ने अपने यहां की पुलिस में 30% पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए हैं. हो सकता है कि आने वाले समय में इसके नतीजे देखने को मिलें.

 जिन महिलाओं को पुलिस में नौकरी मिल भी गई उनमें से ज्यादातर महिला पुलिसकर्मियों की फील्ड ,थाने में ड्यूटी नहीं लगती.
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 जिन महिलाओं को पुलिस में नौकरी मिल भी गई उनमें से ज्यादातर महिला पुलिसकर्मियों की फील्ड ,थाने में ड्यूटी नहीं लगती.

ये भी तय है कि हालात अपने आप नहीं बदलेंगे. अगर सरकारें संवेदनशील न हुईं तो महिलाओं की पुलिस फोर्स में संख्या घट भी जाती है. मिसाल के तौर पर, इसी साल 5 अप्रैल को राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि हरियाणा में 2014 में 2,734 महिला पुलिसकर्मी थे. 2016 में ये संख्या घटकर 2,694 रह गई.

कई और राज्यों में भी ऐसा ही हुआ. कुल मिलाकर, सारा दारोमदार सरकारों पर है कि वो पुलिस फोर्स में लैंगिक संतुलन स्थापित करे. सामाजिक संगठनों को इसके लिए सरकार पर दबाव बनाना पड़ेगा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा लगाने भर से कुछ नहीं होगा.

बिहार की सरकार महिलाओं को पुलिस में लाने को सचेत रही तो इसके अच्छे नतीजे आए. 2014 में वहां सिर्फ 2,341 महिला पुलिसकर्मी थीं. 2016 में ये संख्या तीन गुना बढ़कर 6,710 हो गई. यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि बिहार पुलिस में 33 फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.

महिलाओं के बेहतरीन पुलिसकर्मी होने पर कोई संदेह भी नहीं है. केंद्र सरकार ने 28 मार्च, 2017 को ये जानकारी दी कि आखिरी आंकड़ा दर्ज करते वक्त देश के 7 राज्यों में पुलिस के सबसे बड़े अफसर यानी डीजीपी पदों पर महिलाएं थीं. महिला अफसर अगर पूरे सूबे की पुलिस फोर्स को कंट्रोल कर सकती है, तो कोई वजह नहीं है कि वे बेहतरीन थानेदार और इनवेस्टिगेशन अफसर भी बन सकती हैं.

पुलिस ढांचे में भी बदलाव जरूरी

दुनिया के तमाम विकसित देशों में पुलिस फोर्स में महिलाएं अच्छी संख्या में हैं और इसके उनकी एफिशिएंसी पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. मिसाल के तौर पर ब्रिटेन की पुलिस फोर्स में 28.6 फीसदी महिला पुलिसकर्मी हैं. अपराधों की प्रकृति में लगातार आ रहे बदलाव, खासकर साइबर क्राइम और ह्वाइट कॉलर क्राइम में बढ़ोतरी की वजह से महिला पुलिसकर्मियों के फोर्स में होने का आधार मजबूत हो रहा है.

हालांकि महिलाओं का पुलिस फोर्स में आना और खासकर उनकी फील्ड ड्यूटी लगाने के लिए पुलिस ढांचे में भी बदलाव जरूरी है. अभी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भी बेशुमार पुलिस चौकियां ऐसी हैं, जिनमें शौचालय नहीं हैं. महिला और पुरुष के लिए अलग शौचालय अभी दूर की बात है. पुलिसकर्मियों के विश्राम के लिए अलग कमरे नहीं हैं. उनके लिए पुलिस लाइंस में पर्याप्त बैरेक नहीं हैं. ऐसे में सिर्फ केंद्र सरकार के दिशानिर्देश जारी कर देने भर से देश में पुलिस फोर्स में महिलाओं की संख्या बढ़ नहीं जाएगी.

पुलिस फोर्स में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के पुलिस रिफॉर्म का अनिवार्य हिस्सा बनाकर उसके लिए फंड जारी करना होगा और जो राज्य बेहतर परफॉर्म कर रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित भी करना होगा.

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