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क्‍यों न इस ‘मदर्स डे’ पर मां को सिखला दें खुद से प्‍यार करना!

इस मदर्स डे चलो अपनी मांओं को ये विश्वास दिलाते हैं कि उनकी ख्वाहिशों के लिए अभी भी देर नहीं हुई है.

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हर बार मां को ये क्यों बताना कि हम कितना प्यार करते हैं उनसे. इस मदर्स डे, क्यों ना मां को खुद से भी प्यार करना सिखा दें.

मॉल, बाजार, दुकानें फिर से सज गई हैं. हर सुबह दरवाजे पर पड़े अखबारों को उठाते ही अंदर से कई रंग-बिरंगे फ्लायर्स निकलकर, ऊंची आवाज में हमें याद दिला रहे हैं कि मदर्स डे आने वाला है और अगर मां से प्यार जताने का ये मौका हम चूके, तो मातृभक्ति साबित करने की अगली बारी बावन हफ्तों बाद ही आएगी, और वक्त का क्या भरोसा.

तो मां के नाम की सेल में कपड़ों, गहनों, मोबाइल फोन्स से लेकर किचन के बर्तनों तक, सब पर छूट जारी है. अपनी श्रद्धा और हैसियत के हिसाब से उठा लो, ना हो तो मां को कैंडल लाइट डिनर के लिए ही ले जाओ.

इधर वेलेंटाइन डे को मातृ-पितृ दिवस बनाने की मुहिम छेड़ने वाले लोग गर्मी के मारे थोड़े सुस्त से हैं. थोड़ा कोंच कर पूछो तो कांखते हुए कहेंगे, ये तो विदेशी चोंचले हैं भाई, हमारे लिए तो पूरा साल ही मातृ दिवस है. सच में? जीते भी तो रोज हो, हैप्पी बर्थ डे भी रोज ही मना लेते.

लब्बो-लुआब ये कि मदर्स डे पर सरकार, बाजार सबकी बात सुनी जाएगी, नहीं पूछा जाएगा तो मां से. क्योंकि हम तो माओं को लेकर सिनेमा के भारी-भरकम डोज पर पले-बढ़े हैं, त्याग की मूर्ति, बच्चों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढने वाली, परिवार को जोड़ कर रखने वाली. मां दरवाजा खोलेगी, आप गिफ्ट उसकी ओर बढ़ाएंगे और उसकी आंखों में खुशी और कृतज्ञता के तारे झिलमिलाने लगेंगे.

वैसे भी उनके जमाने में कहां होते थे ये सब, उनके बच्चे देखो तो कैसे व्यस्तता के बीच भी समय निकालकर पहुंचे हैं. नहीं भी पहुंचे तो ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स और होम डिलीवरी सिस्टम तो है ही तत्परता से आपकी कमी पूरी करने को आतुर. हम मां को इकाई तो मानते ही नहीं, मान लेते हैं कि वो मां बनी तो गढ़ दी गई एक ही सांचें में, एक सा सोचने, एक सा करने वाली.

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बकवास छोड़ो, बाकी की बात करने से पहले एक क्विज खेलते हैं.

  • मां की पसंदीदा सब्जी कौन सी है और क्या है ऐसा जो मां को हाथ लगाना भी पसंद नहीं?
  • कौन सा हीरो जिसकी फिल्में देखकर मां की धड़कनें आज भी बढ़ जाती हैं?
  • कौन सा एडवेंचर स्पोर्ट्स मां एक बार जरूर ट्राई करना चाहती है?
  • वो कौन सा काम है जिसे मां बाकी की जिंदगी करते हुए बिताना चाहती है?

मां हमेशा वो नहीं होती, जिसे देखते हम बड़े हुए हैं. मां ने दबा रखा होता है खुद को सोशल एक्सेप्टेंस की कई परतों के भीतर. जैसे कभी उनके संस्कार और कर्तव्य उन पर थोपे गए थे, आज अपना तोहफा उन पर मत थोपिए. त्याग और महानता के नाम पर शहादत का तमगा पहनाकर सैनिकों और माओं से उनकी जिंदगी की बहुत बड़ी कीमतें वसूलते आए हैं हम. इस मदर्स डे, चलिए अपेक्षाओं और उपेक्षाओं की कई परतों के भीतर छुपी अपनी मां को ढूंढ निकालते हैं.

‘अच्छा बताइए, अगर आपकी शादी ना करके, आपको पढ़ने दिया जाता तो आप क्या बनतीं?’ कल शाम की चाय पीते-पीते मैंने सासू मां से पूछा. मां दसवीं की परीक्षाएं छोड़कर सोलह साल की उम्र में पत्नी बनीं और उसके अगले साल मां. अपना आश्चर्य छुपाती मां को कई मिनट लगे सोचने में, ‘वैसे तो उसके लिए अब बहुत देर हो गई है, लेकिन मैं बनती जज.’

‘वकील क्यों नहीं?’

‘ना, वकील लोग बहुत झूठ बोलते हैं, जज ठीक है, न्याय करता है. लेकिन अब बोल कर क्या फायदा, समय तो निकल गया.’

‘अच्छा, अब अगर कोई शौक पूरा करना हो तो?’

उम्र के 73वें पायदान पर खड़ी मां ने बिना एक सेकेंड सोचे जवाब दिया, ‘बस गाते रहने का मन करता है, बिना रुके.’ बारह सालों में मैंने मां को आरती के अलावा कुछ भी गुनगुनाते नहीं सुना. सुना है तो अपने सबसे छोटे बेटे को बारबार गाने के लिए आग्रह करते जाना. लेकिन अब मां ने वादा किया है कि मदर्स डे पर वो कैरिओके में अपने पंसदीदा गाने गाकर हमें सुनाएंगी. वो गाने जिनकी फेहरिस्त उनकी बच्चों को भी नहीं मालूम.

इस मदर्स डे चलो अपनी मांओं को ये विश्वास दिलाते हैं कि उनकी ख्वाहिशों के लिए अभी भी देर नहीं हुई है.

58 की उम्र में मेरी मां बेसब्री से इंतजार कर रही है अपनी पीएचडी की डिग्री का. पूछने पर मासूमियत से मुस्करा देती है, पैंसठ साल है रियटरमेंट की उम्र, 6-7 साल तो अभी भी काम कर सकते हैं.

मां को सब पता होता है, रसोई के किस डब्बे में कितनी दाल, बेटे की पीठ पर चार हफ्ते पहले हुई फुंसी का हाल, आने वाली एकादशी की तारीख, पड़ोस के लड़के की सुंदर स्वेटर में कितने फंदे सीधे और कितने उल्टे, कपड़ों की आलमारी को कब धूप की है जरूरत, रिश्तेदारों के आने-जाने की तारीख.

मां ढूंढ सकती है घर में खोए कागज के एक छोटे से टुकड़े को भी, बस नहीं ढूंढ पाती खुद को. घर के कोने-कोने से धूल झाड़ती मां उदासीन ही रह जाती है अपनी हसरतों पर जमी लाचारी की मोटी परतों से. इस मदर्स डे क्यों न अपनी मां को वो विश्वास दें कि वो अपने ऊपर के तमाम आवरणों को हटाकर खुद को वापस पा ले.



इस मदर्स डे चलो अपनी मांओं को ये विश्वास दिलाते हैं कि उनकी ख्वाहिशों के लिए अभी भी देर नहीं हुई है.
(फोटो: iStock)

माएं अधूरी ख्वाहिशों का मेला हैं, मां बनने का मतलब किसी और की नींद से सोई, किसी और की जरूरत से जागी, सोई तो उसके सपने भी उसके अपने नहीं रहते. जीभ भूल जाती है अपने ही स्वाद की पहचान और समय गुजर जाने के बाद सपने भी डर जाते हैं वापस आने में या क्या पता तब तक दम ही तोड़ दिया हो उन्होंने. एक बार टटोलकर देखें तो सही, क्या पता कुछ हसरतों में सांस और उम्मीद बाकी हो अभी.

इस मदर्स डे चलो अपनी मां को तोहफा नहीं, सपने देते हैं. और देते हैं उसे पूरा कर पाने की आजादी और हौसला. ताकि नाप सकें वो अपने हिस्से का आसमान और समेट लें अपनी पसंद की हंसी.

हर साल मां को ये क्यों बताना कि हम कितना प्यार करते हैं उनसे, एक बार, बस एक बार, क्यों ना मां को खुद से भी प्यार करना सिखा दें?

इस मदर्स डे, चलो मां के लिए उनकी वो उंगलियां बन जाएं जो उसके मन की सारी गांठें खोल दे, और मिला दे उनको अपने आप से.

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