“मैं अमेजन के जंगलों में लगी आग से बहुत चिंतित हूं. जब दुनिया एक क्लाइमेट क्राइसिस (संकट) से जूझ रही है, उस वक्त हम ऑक्सीजन और जैव-विविधता के इतने बड़े स्रोत की तबाही नहीं झेल सकते. अमेजन को हर हाल में बचाना चाहिए.”
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने पिछले हफ्ते यह ट्वीट किया, जिसमें उनकी चिंता के साथ दुनिया के लिये चेतावनी भी है. पिछले एक साल के भीतर पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी रिसर्च बॉडी, आईपीसीसी की दो महत्वपूर्ण रिपोर्ट कह चुकी हैं कि गर्म होती धरती अब तबाही लाने वाली है और इसे टालने के लिए अधिक वक्त नहीं बचा है.
ऐसे कठिन समय पर 'दुनिया का फेफड़ा' कहे जाने वाले अमेजन के जंगलों में आग लगने की 73,000 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं. पिछले साल के मुकाबले इस साल आग की घटनाओं में 85% की रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई है. आज धू-धूकर जलते अमेजन के जंगलों से उठता धुआं, वन-सम्पदा के नष्ट होने के साथ विरल प्रजातियों और प्राणियों के अस्तित्व पर छाये संकट की गवाही है.
यही वजह है कि G-7 सम्मेलन में फ्रांस में सोमवार को दुनिया के सात देशों ने अमेजन की आग बुझाने के लिये करीब 2.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद का ऐलान किया.
WWF ने अमेजन के जंगलों में लगी आग की नई तस्वीरें जारी की हैं. यह तस्वीरें ब्राजील के रोन्डोनिया क्षेत्र की हैं. इन तस्वीरों के अलावा भी कई न्यूज वेबसाइट और सोशल मीडिया पर भी अमेजन के जंगलों में लगी भयानक आग की तस्वीरें देखी जा सकती हैं.
- 01/02WWF ने अमेजन के जंगलों में लगी आग की नई तस्वीरें जारी की हैंफोटो: WWF के ट्विटर हैंडल से ली गई तस्वीर
- 02/02यह तस्वीरें ब्राजील के रोन्डोनिया क्षेत्र की हैंफोटो: WWF के ट्विटर हैंडल से ली गई तस्वीर
बेपरवाह हैं ब्राजील के राष्ट्रपति!
ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सनारो घोर दक्षिणपंथी हैं और पर्यावरण वैज्ञानिकों, संगठनों और कार्यकर्ताओं का मजाक उड़ाते रहे हैं. बोल्सनारो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरह ग्लोबल वॉर्मिंग का झूठ-मूठ का हौवा बताते रहे हैं और उन्होंने सत्ता में आने से पहले ही कह दिया था कि वह अमेजन के जंगलों को औद्योगिक कंपनियों के लिए खोलेंगे.
दुनियाभर के जंगलों में आग लगना कोई असामान्य घटना नहीं, बल्कि एक निरंतर प्रक्रिया मानी जाती है. मिसाल के तौर पर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2017 में जंगल में आग की 35,888 घटनाएं हुईं. लेकिन अमेजन की विनाशलीला सामान्य नहीं है. बोल्सनारो के पर्यावरण विरोधी रवैये को देखते हुए आरोप लग रहे हैं कि इस आग की पीछे जान-बूझकर की गई इंसानी करतूत है, ताकि इन घने जंगलों में ‘आर्थिक गतिविधि’ शुरू हो सके.
इसके अलावा बोल्सनारो के राज में जंगलों के कटने की रफ्तार भी तेजी से बढ़ रही है. उपग्रह से मिली तस्वीरें बताती हैं कि अमेजन के जंगलों पर पिछले 10 सालों की सबसे अधिक मार पड़ी है.
साल 2017-18 में करीब 8000 वर्ग किलोमीटर जंगल काट दिया गया. इस साल मई में अमेजन के जंगलों में 739 वर्ग किलोमीटर जंगल कटे, जो कि एक रिकॉर्ड है. पिछले एक दशक में महीनेभर के भीतर इतनी बड़ी तबाही अमेजन में कभी नहीं हुई
ब्राजील के राष्ट्रपति की नीतियों के चलते नॉर्वे ने वन संरक्षण के लिये ब्राजील को मिलने वाली 3.32 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सालाना मदद रोक दी, लेकिन बोल्सनारो को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. उन्होंने पूरे यूरोप पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि नॉर्वे यह पैसा वृक्षारोपण के लिए जर्मन चासंलर एंजेला मार्केल को दान कर दे.
बीबीसी के मुताबिक, बोल्सनारो ने अमेजन के जंगलों में लगी आग के लिए पहले एनजीओ संगठनों को जिम्मेदार ठहराया. हालांकि उन्होंने इसके कोई सबूत पेश नहीं किए, फिर बाद में कहा कि उन्होंने कभी ऐसे कोई आरोप नहीं लगाये.
क्यों महत्वपूर्ण है अमेजन?
अमेजन के वर्षा-वन (रेनफॉरेस्ट) दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के करीब 55 से 60 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं. ये जंगल जीव-जंतुओं की लाखों प्रजातियों के साथ दुर्लभ जैव विविधता का अनमोल भंडार है.
दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के कई देशों में फैले अमेजन का सर्वाधिक हिस्सा ब्राजील में है, जो कि इस देश के 40% क्षेत्रफल के बराबर है.
अमेजन में जानवरों और पेड़-पौधों की 30 लाख से अधिक प्रजातियां हैं और करीब 10 लाख आदिवासी यहां रहते हैं. दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने में अमेजन के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि ये जंगल अकेले ही दुनिया की कुल 20% ऑक्सीजन रिलीज करते हैं. जंगलों के रूप में इतना बड़ा कार्बन सिंक पूरी दुनिया में कहीं और मौजूद नहीं है.
अमेजन की आग से क्यों डरें हम?
अमेजन की आग जो तबाही कर रही है, उसके असर से भारत भी अछूता नहीं रह सकता. दुनिया की 18% आबादी भारत में रहती है, जबकि हमारे पास केवल 2.5% ही जमीन है. हिमालयी क्षेत्र में फैले 10 हजार छोटे-बड़े ग्लेशियर और 7500 किलोमीटर लम्बी समुद्र तट रेखा यह बताने के लिये पर्याप्त है कि भारत में ग्लोबल वॉर्मिंग का क्या असर होगा.
अमेजन जैसे समृद्ध जंगलों के विनाश से ग्लोबल वॉर्मिंग की रफ्तार निश्चित रूप से बढ़ेगी और भारत की कृषि, जैव विविधता और समुद्री व्यापार, सब कुछ प्रभावित होगा. करीब 25 से 30 करोड़ लोग समुद्र तट रेखा पर रहते हैं और ज्यादातर अपनी जीविका के लिये समुद्र पर निर्भर हैं.
अमेजन जैसे विशाल कार्बन सोख्ता (कार्बन सिंक) नष्ट होगा, तो समुद्र का तापमान तेजी बढ़ सकता है और चक्रवाती तूफानों की मार और बढ़ेगी.
भारत के संकटग्रस्त हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र स्तर के बढ़ने और तटीय इलाकों के डूबने का डर है. सुंदरवन जैसे समृद्ध मैंग्रोव के जंगल, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर में हैं, वे पहले ही वजूद के संकट का सामना कर रहे हैं.
विकास दर और जीडीपी के लिए खतरा
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर (यानी 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर) की इकनॉमी बनाने का वादा किया है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की मार से इस रास्ते में भारी अड़ंगे पैदा होंगे. बाढ़, सूखा, अकाल और विस्थापन और आपदा प्रबंधन पर खर्च से देश की विकास दर और जीडीपी को बड़ी चोट पहुंच सकती है.
एक अमेरिकी साइंस जर्नल में 1961 से 2010 तक के आंकड़ों के बारीक अध्ययन के आधार पर छपी रिपोर्ट में बताया गया कि भारत जैसे देशों के लिये जलवायु परिवर्तन का असर कितना खतरनाक है. कुल 165 देशों पर किये गये अध्ययन से पता चलता है कि अगर जलवायु परिवर्तन की मार न होती, तो भारत की जीडीपी आज 30% अधिक होती.
साफ है कि एक ऐसे वक्त में जब भारत में मंदी छाई है, नौकरियां गायब हैं, कारोबार डूब रहा है और सरकार लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को संभालने के रास्ते तलाश रही हो, तो अमेजन के जंगलों की आग भारत में संकट की आंच को बढ़ाने का ही काम करेगी.
(हृदयेश जोशी पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े विषयों पर रिपोर्टिंग करते हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इससे क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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