पूरी दुनिया इस वक्त बाचा खान के नाम को याद कर रही है. लेकिन आतंकियों ने बाचा खान की 28वीं पुण्यतिथि को आतंकी हमले के लिए चुनकर, बाचा खान के मुरीद कहे जाने वाले खैबर पख्तून इलाके के लोगों को शर्मिंदा किया है.
पाकिस्तान के खैबर पख्तून इलाके में चरसद्दा जिले की बाचा खान यूनिवर्सिटी पर बुधवार को हुए आतंकी हमले में कम से कम 21 लोगों की मौत हो गई है.
आपको बता दें कि खान अब्दुल गफ्फार खान (1890–1988) उर्फ बाचा खान अपने शांतिवादी, सूफी और कठोर विचारों के लिए जाने गए. उन्होंने पूरा जीवन अमनपसंद ढंग से जिया. ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक विरोध में वह महात्मा गांधी के साथ रहे.
आध्यात्मिक नेता थे बाचा खान
बाचा खान ने भारत-पाकिस्तान के बंटवारे की भी मुखालफत की थी. हालांकि बंटवारे के बाद खान साहब पाकिस्तान में बस गए और खैबर पख्तून इलाके के लोगों के हकों की लड़ाई लड़ते रहे. खैबर पख्तून इलाके के लोग उन्हें न सिर्फ राजनैतिक, बल्कि एक आध्यात्मिक नेता के तौर पर याद करते हैं.
भारत के लिए खास हैं बाचा खान
भारत के लिए बाचा खान हमेशा एक सम्मानित शख्सियत रहे. साल 1987 में वह पहले गैर-भारतीय बने, जिन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. 1988 में उनका निधन हो गया और उन्हें जलालाबाद में दफन किया गया.
बाचा खान की याद में देखें यह वीडियो...
सम्मान में युद्ध रोककर निकाला गया था ‘खान साहब’ का जनाजा
उल्लेखनीय है कि जब बाचा खान का देहांत हुआ, तब अफगानिस्तान युद्ध चल रहा था और देश के हालात नाजुक थे. लेकिन बाचा खान को शांतिपूर्ण ढ़ंग से दफनाने के लिए युद्ध को विराम दिया गया.
बेहद शर्म की बात है कि जिस आदमी को साल 1985 में पूरी दुनिया में शांति का पैगाम देने के लिए नोबल प्राइज के लिए नोमिनेट किया गया हो, उसकी पुण्यतिथि को आतंकियो ने बच्चों के खून से रंग दिया.
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