ऐसा माना जाता है कि जो सबक बचपन में किसी के दिमाग में अच्छी तरह, बेहद मजेदार ढंग से बिठा दिया जाता है, वो ताउम्र याद रहता है. देश की एक बड़ी आबादी ने दूरदर्शन के एकाधिकार वाले जमाने में एक सबक सीखा था. इतना मजेदार कि रामायण सीरियल के इंतजार में दूरदर्शन खोलकर बैठना कभी खलता न था. तब एक एनिमेशन स्टोरी आती थी एक, अनेक और एकता. कोई भी इसे मिस नहीं करना चाहता था. क्या बच्चे, क्या बड़े, सबकी जुबान पर एक चिड़िया...अनेक चिड़िया.
दूरदर्शन के इस एनिमेशन को बनाने वाले भीमसेन इस दुनिया में नहीं रहे. अफसोस की बात ये कि इस दुनिया में रहते हुए और यहां से विदा लेते हुए भी उन्हें एक बात पर बड़ी हैरानी होती होगी. हैरानी इस बात पर कि एकता का जो संदेश उन्होंने इतने रोचक ढंग से दिया, उसे देश ने कैसे भुला दिया?
आज के दौर में मेनस्ट्रीम की खबरों में क्या चलता है? पूरे दिन, पूरे महीने और पूरे साल... कभी हिंदू, कभी मुस्लिम के बहाने बहकाने की राजनीति. अपनी कुर्सी की खातिर, वोट के जुगाड़ के लिए कभी हिंदू कार्ड, कभी मुस्लिम कार्ड. समुदायों को बांटने के लिए कभी अगड़ा, कभी पिछड़े का टंटा. कभी दलितों का अपमान, कभी दलित बस्ती में भोज और सेल्फी. कभी महिलाओं का छद्म गुणगान, कभी सरेआम अपमान.
सोशल मीडिया का हाल भी वैसा ही है. कभी बंद की अपील, कभी विरोध प्रदर्शन के लिए हंगामे की अपील. हैरानी की बात ये कि अलग-अलग बंटा दिखने की खातिर एकजुट होने की अपील!
ऐसे में जरा भीमसेन के उस एनिमेशन को याद कीजिए. हम सभी एक हैं, पर भाषा अनेक हैं. एक भोला-भाला बच्चा अपनी बहन से पूछता है, 'ये अनेक क्या है दीदी?'
दीदी बड़े प्यार से बताती है कि एक क्या होता है, अनेक क्या होता है. सूरज, चंदा और तारों के जरिए. चिड़िया की कहानी के जरिए, जिससे ये समझ आ सके कि एकता में कितनी ताकत है. 'हो गए एक, बन गई ताकत, बन गई हिम्मत...'
इसके पीछे छुपे बड़े मैसेज को महसूस करने के लिए इसे एक बार फिर से देखना जरूरी है.
दूरदर्शन के करीब 7 मिनट के इस शो को डिजाइन और एनिमेशन के जरिए लाजवाब बनाने वाले भीमसेन को अगर आज किसी पात्र से एक और अनेक समझाना पड़ता, तो उन्हें शायद ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती.
भाई पूछता, 'ये अनेक क्या होता है दीदी?'
दीदी बोलती, 'जैसे हम सब, हमारे यहां के लोग'
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