क्या कोई हमें बता सकता है कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश (एमपी) और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनाव के वोटों की गिनती राजस्थान और तेलंगाना की वोटिंग खत्म होने के तुरंत बाद शुक्रवार 7 दिसंबर को शाम 5 बजे से क्यों नहीं शुरू की जा सकती थी? अगर यह मान लें कि राजस्थान और तेलंगाना की चुनावी प्रक्रिया पूरी करने के लिए चार दिनों की जरूरत थी तो इनके वोटों की गिनती मंगलवार, 11 दिसंबर को कराई जा सकती थी.
जिन तीन राज्यों में चुनाव पहले हो चुके हैं, उनके वोटों की गिनती में इतनी देरी किसलिए? इसका जवाब मेरे एक सहकर्मी ने मजाकिया अंदाजा में दिया. उन्होंने कहा कि वोटों की गिनती में इतना गैप इसलिए है, ताकि अथॉरिटीज को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को‘चांद तक ले जाकर वहां से लाने’ के लिए पर्याप्त समय मिल सके. बहरहाल, मेरा सवाल अभी भी वही है कि वोटों की गिनती में इतनी देरी क्यों? इसकी वजह क्या है?
तीन सरकारों और 10 करोड़ जनता को बंधक बनाया गया
क्यों तीन राज्यों और 10 करोड़ लोगों को कई हफ्तों तक बंधक बनाकर रखा गया. इससे इतने कामकाजी घंटे बर्बाद हुए, जिससे अरबों की आमदनी हो सकती थी. वो भी फिजूल की गॉसिप और उत्तेजक वीडियो डाउनलोड में? क्या इसकी वजह यह है कि हम समय की कद्र नहीं करते? क्या हमारे थके हुए नीति-निर्माताओं के लिए गुजरा हुआ कल और आने वाला कल एक ही है? या हमें टीवी पर एग्जिट पोल का तमाशा देखने में मजा आता है? अगर शुक्रवार शाम 5 बजे से वोटों की गिनती शुरू हो जाती, तो कम से कम छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और मिजोरम के एग्जिट पोल का तमाशा तो नहीं होता.
मुझे तो लगता है कि हमें इस तमाशे में मजा आता है. टेलीविजन एंकरों, किसी न किसी पार्टी की तरफ झुकाव रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों और ट्रेनी पॉलिटिशियंस 75 घंटे तक देश पर जो फिजूल का ज्ञान थोपते हैं, शायद हमें उसमें आनंद आता है. इधर, अलग नतीजों का दावा करने वाले एग्जिट पोल सबकुछ उलझाकर रख दिया है. 9 एग्जिट पोल में से तीन ने कांग्रेस, तीन ने बीजेपी की और तीन ने अन्य की जीत की भविष्यवाणी की है! इसलिए आंकड़ों के इस मायाजाल से कोई भी नतीजा निकाला जा सकता है. इसका एक मतलब यह भी है कि एग्जिट पोल के आधार पर कोई भी नतीजा निकालना मुनासिब नहीं होगा.
वोटों की गिनती के दिन विजेता के बारे में मेरी भविष्यवाणी: हिंदी भाषी क्षेत्रों में 3-0 रहेगा स्कोर
- मैंने इसके लिए तीन भरोसेमंद एग्जिट पोल एजेंसियों- सीएसडीएस, एक्सिस और सी-वोटर के आंकड़ों की मदद ली है. इस आधार पर मुझे लगता है कि कांग्रेस राजस्थान और मध्य प्रदेश में आसानी से चुनाव जीत जाएगी.
- इसके बाद मैं ‘मिस्टर चाणक्य’ पर भरोसा करना चाहूंगा. उसने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बहुमत मिलने का दावा किया है. चाणक्य ने 2014 में आक्रामक, लेकिन सटीक ( नरेंद्र मोदी को लोकसभा में 291 सीटें) भविष्यवाणी की थी. 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी (बीजेपी को 302 सीटें) उसका पूर्वानुमान सही साबित हुआ था. इसलिए मुझे लगता है कि हिंदी भाषी राज्यों में रिजल्ट 3-0 से कांग्रेस के पक्ष में रहेगा.
- मैं तजुर्बे के आधार पर कह सकता हूं कि अगर सैंपल में ट्रेंड बदलता हुआ दिख रहा है तो वास्तविक आंकड़े कहीं मजबूत होंगे. इसलिए, अगर पोल में कांग्रेस के पक्ष में 5 पर्सेंट का वोट स्विंग दिख रहा है तो यकीन मानिए कि असल में यह 6-8 पर्सेंट साबित होगा. इसका कारण यह है कि एग्जिट पोल में कई लोग खुलकर यह नहीं बताते कि उन्होंने सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ वोट डाला है. एक के बाद एक चुनावों में हम ऐसा होते हुए देख चुके हैं. एग्जिट पोल में छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को अच्छी बढ़त मिलती दिख रही है तो यह कहने में हर्ज नहीं है कि वास्तविक स्विंग कहीं बड़ा होगा. इसलिए इन राज्यों में कांग्रेस 3-0 से जीत हासिल करेगी.
- तेलंगाना और मिजोरम में गोवा/मणिपुर मॉडल को दोहराया जा सकता है. इसका मतलब यह है कि मोदी-शाह की जोड़ी केसीआर और एमएनएफ को सरकार बनाने के लिए समर्थन देगी. इन राज्यों में कांग्रेस को मजबूत विपक्ष की भूमिका से संतोष करना पड़ सकता है.
अगर ये अनुमान गलत हुए, तब क्या होगा?
हम भले ही कितना भी साइंटिफिक दिखने की कोशिश करें, सच तो यह है कि मैंने जो नतीजा निकाला है, वह सिर्फ एक अंदाजा है. सचाई मंगलवार को ईवीएम से निकलेगी. अगर वह इस अनुमान से अलग हुई, तब क्या होगा?ऐसी अनिश्चित स्थिति के लिए आप खुद को कैसे तैयार करेंगे?
हममें से कुछ के लिए यह काल्पनिक और ऐसी कंटीन्जेंसी है, जिससे किसी को नुकसान नहीं पहुंचने वाला. हालांकि, कुछ के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न है. जरा उन टेलीविजन न्यूजरूम का ख्याल करिए ( हम सब जानते हैं कि यहां किनकी बात हो रही है), जो मौजूदा शासकों का हुक्म बजा रहे हैं. मंगलवार, 11 दिसंबर को जो भी नतीजा आए, वे अपने आकाओं के लिए उसके हिसाब से कौन सा झूठ गढ़ेंगे? उन्हें इसके लिए प्लान ए और प्लान बी दोनों तैयार रखना चाहिए.
प्लान A: अगर हिंदी पट्टी में कांग्रेस को जीत मिलती है
- मोदी का बचावः वे इस पर जोर दें कि प्रधानमंत्री ने इन राज्यों में बहुत कम रैलियां की थीं. उन पर तो जी-20 सहित अलां-फलां जैसी बड़ी जिम्मेदारियां थीं. इसलिए वे धुआंधार प्रचार नहीं कर पाए. अगर मोदी आखिरी वक्त में जोर न लगाते तो हार का अंतर और बड़ा हो सकता था. वे हार के लिए उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कसूरवार ठहराएं. उसके बाद वे प्लांटेड डेटा का हवाला देते हुए कहें कि भले ही इन राज्यों में अभी कांग्रेस को जीत मिल गई हो, लेकिन 2019 में जनता मोदी का ही समर्थन करेगी. इसलिए, अगले साल चुनाव में मोदी के जीतने की संभावना बनी हुई है.
- जीत में राहुल की भूमिका कम करके दिखाएं: राहुल की रैलियां का एक कलरफुल मैप बनाएं. इनके जरिये दिखाया जाए कि रैली वाले किन क्षेत्रों में पार्टी की हार हुई, भले ही उसका कोई जमीनी आधार न हो. उसके बाद वे चीख-चीखकर कहें: ‘देखिए, राहुल गांधी राजनीतिक बोझ हैं.’ प्रदेश कांग्रेस नेताओं की जीत में भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाएं. बताया जाए कि कितनी मेहनत से इन नेताओं ने हार की मुट्ठी से जीत छीनी है. यह दावा भी करें,‘कांग्रेस जीती नहीं है, बल्कि सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री हार गए हैं.’
- कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को यह कहकर घेरने की कोशिश करें, ‘जब जनता आपके साथ है तो आप हाई कमांड के कहने पर किसी और को नेता क्यों मान रहे हैं?’ आखिर में, सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा विजेताओं को लेकर उन्माद का माहौल बनाएं और एक काल्पनिक बहस शुरू करें कि ‘राहुल गांधी उन्हें कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाएंगे क्योंकि वह पार्टी में ऐसे करिश्माई नेता नहीं चाहते, जो उन्हें टक्कर दें.’ जी हां, भारतीय टेलीविजन के कठपुतली एंकर आपसे यही कहने वाले हैं.
- आखिर में, कांग्रेस के ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ को ‘कमजोर, मौकापरस्त और छद्म हिंदुवाद’ बताने की कोशिश करें. दरअसल, आरएसएस-बीजेपी के लिए राहुल और कांग्रेस का उदारवादी-गांधीवादी हिंदुत्व सबसे बड़ा खतरा है. यह दिखाता है कि राइट विंग हिंदुत्व कितना जहरीला है और यह हिंदू धर्म की भावना के भी खिलाफ है. अगर राहुल और कांग्रेस इस मामले में जीत गए तो आरएसएस-बीजेपी का तुरुप का इक्का हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा. इसलिए इसकी जितनी आलोचना हो सके, वे करेंगे.
प्लान B: अगर BJP का प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा
- इसका पूरा श्रेय मोदी को दें. किस तरह से प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में जोर लगाने से पार्टी वर्षों की सत्ताविरोधी लहर से उबरने में सफल रही, इस पर जोर दें. कठपुतली एंकर बताएं कि बीजेपी के निकम्मे मुख्यमंत्रियों को इसके लिए मोदी का आभारी होना चाहिए. 2014 से कहीं बड़ी जीत मोदी 2019 में हासिल करने जा रहे हैं.
- राहुल की रैलियों वाले जिन क्षेत्रों में कांग्रेस की हार हुई है, उन्हें बार-बार दिखाया जाए. ऐसी स्थिति में कांग्रेस के सीनियर और युवा नेताओं का जिक्र न हो. बार-बार चीख-चीखकर यही कहा जाए कि ‘मोदी जीत गए, राहुल की हार हुई.’
- कांग्रेस को उदारवादी-गांधीवादी हिंदुत्व की राह छोड़ने के लिए डराएं. यह दिखाएं कि ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ के चलते कैसे कांग्रेस के हाथ से मुसलमानों और हिंदुओं का समर्थन निकल गया. कांग्रेस का यह रास्ता आरएसएस-बीजेपी के लिए घातक हो सकता है, इसलिए उसे इससे हटाने की कोशिश करें.देश के ‘पोस्ट-ट्रूथ न्यूजरूम्स’ में आपका स्वागत है, जहां सच की हत्या हो चुकी है. इस पोस्ट-ट्रूथ दौर में मंगलवार, 11 दिसंबर का मजा लेने के लिए तैयार हो जाइए.
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