[ये आर्टिकल क्विंट हिंदी पर पहली बार 25 अप्रैल, 2017 को पब्लिश किया गया था. हिंदी दिवस (14 सितंबर) पर हम फिर से इसे पाठकों के लिए पेश कर रहे हैं ]
क्या आपकी मातृभाषा हिंदी है? अगर हां, तो क्या आप अभिप्रेत, अंतर्सत्रावधि, विधेयक पुर:स्थापित, व्यपगत, अनुपलभ्य जैसे शब्दों के मतलब जानते-समझते हैं?
हम यहां आपकी भाषा का टेस्ट नहीं ले रहे हैं. हम सिर्फ ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि हिंदीवालों ने हिंदी का क्या हाल बना रखा है.
हाल के दिनों में हिंदी में अंग्रेजी शब्दों के इस्तेमाल का चलन तेजी से बढ़ा है. यहां तक कि हिंगलिश का मार्केट भी खूब जोर पकड़ रहा है. जो लोग हिंदी के पुराने स्वरूप को जस का तस बनाए रखने के पक्ष में हैं, उनकी तकलीफ समझी जा सकती है. लेकिन ऐसे लोगों की तकलीफ कहीं ज्यादा बड़ी है, जो यहां-वहां हर तरफ हिंदी देखते हैं, पर वैसी हिंदी, जो शायद ही किसी की समझ में आए.
ट्रांसलेशन के दौरान होता हिंदी का कबाड़ा
हिंदी का सबसे भयानक चेहरा तब दिखता है, जब हिंदी परोसने की मजबूरी में इसका भारी-भरकम अनुवाद कर दिया जाता है. वैसा ट्रांसलेशन, जो हर किसी की समझ से परे हो.
खांटी हिंदी बेल्ट का पढ़ा-लिखा शख्स भी हिंदी के जिन शब्दों को देखकर चकरा जाए, उनका इस्तेमाल पब्लिक प्लेस के बोर्ड पर करना कहां की समझदारी है?
आम लोगों के काम की वेबसाइटों पर तमाम ऐसे कंटेंट मिल जाते हैं, जिसका इस्तेमाल न तो बोलचाल में होता है, न ही साहित्य में. वैसे शब्द सीधे-सीधे किसी डिक्शनरी से उठाए मालूम पड़ते हैं.
देखें वीडियो - डिजिटल होते देश में कैसे छा सकती हैं हमारी भाषाएं?
कई सरकारी विभागों में ट्रांसलेटर से लेकर राजभाषा अधिकारी तक के पद होते हैं. इनका एक काम होता है अंग्रेजी में लिखी सरकारी चिट्ठी या आदेश को हिंदी में ट्रांसलेट करना. उधर अंग्रेजी का शब्द देखा, इधर डिक्शनरी या गूगल ट्रांसलेट से चेप दिया. किसके लिए लिख रहे हैं, इस बात से कोई मतलब नहीं.
चुनाव आयोग की वेबसाइट का हाल
चुनाव के दौरान हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर क्या चल रहा है. चुनाव आयोग आम लोगों को ये सब कुछ बताता भी रहता है, लेकिन किस भाषा में, कैसी हिंदी में? आयोग की वेबसाइट में इस्तेमाल की गई हिंदी का हाल देखिए:
अनुपलभ्य प्रतीक, अप्रसन्नता, निरूपण, सदृश्यता जैसे शब्दों का इस्तेमाल किए बिना भी बड़ी आसानी से प्रेस नोट निकाला जा सकता था. यह सोचकर हैरानी होती है कि इस तरह के शब्द चुनने के पीछे आखिर आयोग की कौन-सी मजबूरी है?
संसद की तस्वीर भी जुदा नहीं
हमारी संसद की वेबसाइट के हिंदी वर्जन का हाल भी जुदा नहीं है. यह बात मानने में किसी को हिचक नहीं हो सकती है कि संविधान और कानून से जुड़े कई शब्द मूल रूप से बेहद कठिन होते हैं.
संसद के कामकाज से जुड़े कई शब्द इतने भारी-भरकम होते हैं, जिन्हें मिट्टी, पानी, धूप या हवा जैसे आसान शब्दों से नहीं बदल सकते. पर यहां सवाल बस इतना है कि उन भारी शब्दों का इस्तेमाल किनके लिए किया जा रहा है, जिसे समझने वाला इस पूरे महाद्वीप पर न मिले.
क्या ये उचित नहीं होगा कि एक शब्द के बदले चाहे कुछ ज्यादा ही शब्द खर्च कर लिए जाएं, पर मेहरबानी करके उसका मतलब तो साफ कर दिया जाए. अंतर्सत्रावधि, विधेयक पुर:स्थापित, विधेयक व्यपगत जैसे शब्दों का मतलब जानने के लिए लोग कहां-कहां जाएं?
राजभाषा विभाग में क्या चल रहा है?
हिंदी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी जिस विभाग पर है, वह भी लोगों के बड़े समूह से बतियाने को तैयार नहीं है. बस यों समझ लीजिए कि जो रामगोपाल वर्मा की फिल्मों के भूत-प्रेत से भी न डरे, वो इसकी साइट के अभिप्रेत, पठित धारा, उपधारा, प्रवृत, शासकीय प्रयोजन से जरूर डर जाए. एक नजर डालिए:
मेट्रो की सवारी कीजिए, पर नोटिस मत पढ़िए
दिल्ली में हर रोज लाखों लोग मेट्रो से आते-जाते हैं. यहां भी कई जरूरी जानकारी जिस तरह की हिंदी में दी जाती है, वह भी बेकार ट्रांसलेशन से लुटी-पिटी मालूम पड़ती है. मशीनी ट्रांसलेशन का आलम ये है कि Train Coaches की हिंदी दिखती है रेल डब्बों.
वैसे जीवन-परिवर्तनीय चोट और कर्षण क्षेत्र से बचकर रहने में ही भलाई है. आते-जाते आपने न जाने कितनी बार कोच समाप्ति स्थल के दर्शन किए होंगे.
दिल्ली के लोगों को भी उलझाती है हिंदी
बेहद कठिन तो छोड़िए, हिंदी के थोड़े आसान शब्द भी दिल्ली में ज्यादातर लोग नहीं समझते.
हिंदी की हालत बयां करता ये खास वीडियो देखिए, जिसे हमने हिंदी दिवस पर पेश किया था.
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